‘Reverie’ फेस्टिवल के दौरान दिल्ली के गार्गी कॉलेज के कैंपस में कुछ बाहरी लोग शराब पीकर घुस आए और स्टूडेंट्स के साथ इव टीज़िंग की। गार्गी कॉलेज की एक छात्रा ने जानकारी देते हुए कहा कि हमारे साथ बदतमीज़ी की गई है। वे हमारे सामने हस्तमैथुन कर रहे थे।
छात्रा ने ट्वीट करते हुए लिखा,
मुझे तीन बार दबोचा गया और जब मैं चिल्लाई, तो वे हंस रहे थे।
खैर, मीडिया में जो खबरें चल रही हैं, उसके मुताबिक अधेड़ उम्र के वे लोग बाहरी थे। गार्गी कॉलेज दिल्ली में तीन दिवसीय फेस्टिवल के दौरान यह घटना हुई और छत्राओं का कहना है कि जब इस बात की शिकायत कॉलेज प्रशासन से की, तो उनका कहना था, “यदि सुरक्षा की इतनी ही फिक्र है, तो उन्हें यह कार्यक्रम करना ही नहीं चाहिए था।”
वहीं, एक अन्य छात्रा ने कहा,
मैं मास्टरबेट और इव टीज़िंग का नहीं कह सकती हूं लेकिन कुछ लोग शराब पीकर परिसर में घुस आए और बदतमीज़ी कर रहे थे।
चुनाव के दौरान ऐसी घटनाओं के क्या मायने हैं?
बेशक यह एक खबर है और खबर के तौर पर ही इसको पढ़ा जाना चाहिए लेकिन सवाल कई हैं। अभी बीते दिन ही राजधानी में चुनाव हए हैं, ऐसे में यदि ऐसी घटनाएं घटित होती हैं, तो ज़ाहिर तौर पर दिल्ली में महिला सुरक्षा को लेकर कई बड़े सवाल खड़े होंगे।
पिछले कुछ दिनों से यूं भी दिल्ली और देश के अन्य विश्वविद्यालयों पर हमले हो रहे हैं। ऐसे में हम अपने संविधान और कानून की गरिमा की रक्षा कैसे करेंगे? कई ज़िम्मेदार नेताओं की बयानबाज़ियां भी काफी शर्मसार कर रही हैं।
शायद इन्हीं चीज़ों से लोग आंदोलन करने वालों पर गोलियां भी चला रहे हैं और खुलेआम विश्वविद्यालयों में लड़कियों के सामने हस्तमैथुन भी कर रहे हैं।
क्या हम लड़कियां सुरक्षित हैं?
दिल्ली में यह कोई पहली घटना नहीं है और ना ही भारत में। हर मिनट कहीं ना कहीं कोई लड़की या महिला यौन हिंसा का शिकार हो रही हैं। चाहे घरेलू हो या बाहरी, ऐसी घटनाएं हम लड़कियों को खुद से फिर एक बार सवाल करने को मजबूर करती हैं कि क्या हम सुरक्षित हैं?
घटनाओं की फेहरिस्त लंबी है लेकिन जहां कानून को ताख पर रखने की चीज़ मान ली जाए, वहां ये घटनाएं आम हो जाती हैं। जब एक कॉलेज और एक यूनिवर्सिटी में ही सुरक्षा का कोई मानक नहीं रह गया हो, वहां आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट और सड़कों पर मिलने वाली सुरक्षा का अंदाज़ा लगा सकते हैं। वह भी तब, जब आधी से ज़्यादा सड़कें स्ट्रीट लाइट के इंतज़ार में साल- दर- साल बन-बिगड़ रही हों।
दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया कांड से ही कानून और न्यायपालिका का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आश्चर्य तो यह है कि 9 साल बाद भी फांसी के फैसले पर अमल नहीं हो पाया है, क्योंकि न्यायपालिका का अभी भी कहना है कि आरोपियों के पास उनके मानव अधिकार हैं लेकिन जो मानव होने की परिभाषा में ही ठीक ना बैठता हो, उसे इन अधिकारों के दायरे में रखना कितना ठीक होगा।
यह तो हुई दिल्ली की बात लेकिन क्या कभी आपने किसी महिला, लड़की से उसका निजी अनुभव पूछा है? यकीन मानिए ऐसे सैकड़ों अनुभव आपको दिल्ली से लेकर गाँवों के गली-कूचों तक सुनने मिल जाएंगे।
नोट: सृष्टि तिवारी Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।