आज भी अगर किसी मोहल्ले की नुक्कड़ पर बैठकर चाय वाले चाचा से पूछेंगे कि उनके आस-पास के इलाके में दूसरी जाति में शादी होती है या नहीं, तो इस प्रकरण पर आप उस मोहल्ले का कम-से-कम एक प्रकरण ऐसा ज़रूर सुनेंगे, जिसमें या तो लड़के की या लड़की की या फिर दोनों दोनों की हत्या कर दी जाती है।
सिर्फ इस वजह से कि दोनों अलग-अलग जाति या धर्म के थे। ऐसी गलियों और चौराहों पर सुनाई पड़ने वाले किस्सों में से कुछ ही किस्से अखबारों की सुर्खियों तक पहुंचते हैं, कुछ ही टीवी पर टॉप 100 हेडलाइन्स में आते हैं, एकाध पर ही बॉलीवुड में फिल्में बन पाती हैं और पुलिस केस तो दूर की बात।
कैसे प्रेम विवाह के आड़े आता है जातिवाद
प्रेम बिना मनुष्य का तो दूर, पशु -पक्षियों का भी जीना संभव नहीं है। यह स्वत: उपजने वाला एक भाव ही है। वर्तमान की समस्या यह है कि समाज में हर एक प्रेमी-प्रेमिका का मन आतंक का ही शिकार रहता है। अगर प्रेमिका दूसरी जाति-बिरादरी या मज़हब की है, तो प्रेमी की चिंता और अगर प्रेमी दूसरी जाति-धर्म का है, तो प्रेमिका की चिंता का अंजाम आत्महत्या के रूप में होता है।
समाज में डर-डरकर या फिर छिप-छिपकर प्यार करना पड़ता है, जिसकी प्रमुख वजह है जाहिलियत यानी कि अशिक्षा।अशिक्षा ने जातियों और धर्मों के आधार पर असमानता को जन्म दिया है। जब समाज धर्म, जाति या फिर आर्थिक स्तर पर कई हिस्सों में बंट गया, तो अक्सर प्यार में दरारें आईं। वजह थी उनके बीच का रवैय्या जिनका मूल जाहिलियत ही है।
अगर किसी लड़की के ऐसे परिवार की बात करें, तो उनकी रूढ़िवादी विचारधारा यही कहती है कि लड़की को सिर्फ विवाह का अधिकार है, वह भी उसी जाति, धर्म और उनकी औकात से बड़े परिवार से।
“प्यार किया, कोई चोरी नहीं की” जैसे सदाबहार गाने समझाते हैं प्यार के मायने
कुछ ऐसा ही लड़कों के साथ भी होता है। कहने का आशय यह है कि परिवार की उस रूढ़िवादी जाहिलता के चलते प्यार भी छुप छुपकर करना पड़ता है। अधिकांशत: प्रेमी -प्रेमिका आंसू बहाते ही रह जाते हैं और बिछड़ जाते हैं।
ऐसे समय प्रेमी-प्रेमिकाओं के सम्बन्ध में इन बातों को भी नकारा नहीं जा सकता कि वे अपने मूल अधिकारों के प्रति सचेत नहीं होते हैं और प्रेमी-प्रेमिका आंसू बहाते ही रह जाते हैं।
“प्यार किया, कोई चोरी नहीं की, तो छुप-छुप आहें भरना क्या, जब प्यार किया तो डरना..”। ये पंक्तियां भी समाज के उस समुदाय के प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए एकदम सटीक हैं, जिनका परिवार शिक्षित है और रुढ़िवादियों से काफी दूर निकल आया है।
वर्तमान समय में ऐसे वर्ग के लिए धर्मभेद और जातिगत भेद मायने नहीं रखते हैं, चाहे वे किसी भी जाति के हों। चाहे वे सवर्ण हों या पिछड़ी जाति के हों या फिर दलित ही क्यों ना हों। समाज में ऐसे सकारात्मक उदाहरण भी देखने को मिले हैं। प्रेमी-प्रेमिका प्यार करके डरते नहीं है, क्योंकि वे शिक्षित हैं और उन्हें अपने अधिकार पता हैं ।