पीरियड्स एक नैसर्गिक प्रक्रिया है लेकिन क्या हमारा समाज उसे उस तरह से देखता है? एक पुरुष होने के नाते यह सवाल मेरे मन में आता है। पीरियड्स को लेकर समाज में कई तरह की गलत धारणाएं बनी हुई हैं। जब अक्षय कुमार की पैडमैन फिल्म आई थी, इस विषय को लेकर काफी चर्चा हुई। अक्षय कुमार को इस बीच खुद को चमकाने का मौका भी मिला।
क्या ज़मीनी हकीकत में कोई बदलाव हुआ है?
यही सवाल पूछा जाना चाहिए। पैडमैन मूवी आने के बात पीरियड्स को लेकर कितने लोगों में सकारात्मक बदलाव हुएं? मुझे व्यक्तिगत तौर पर पैडमैन, दंगल जैसी फिल्में इंडिया और भारत का टकराव नज़र आती हैं।
ऐसी फिल्में देखकर शहर में रहने वाले इंडिया के लोग खुश हो जाते हैं, उन्हें लगता है अब परिवर्तन हो रहा है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले भारत के लोगों के जीवन में इसका कोई महत्व नहीं है या यूं कहें उनके जीवन में ये फिल्में परिवर्तन नहीं ला सकती हैं।
फिल्में काफी कम समय के लिए चर्चा का माहौल बनाती हैं। सामाजिक बदलाव फिल्मों के द्वारा होंगे, इस भ्रम में हमें नहीं रहना चाहिए। तारे ज़मीन पर, 3 इडियट्स जैसी फिल्मों से हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था ही बदल जाती लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सरकार कहां है?
जब GST व्यवस्था लागू की गई तब सैनेटरी पैड पर टैक्स लगाया गया था। देशभर में महिलाओं के विरोध के बाद सरकार ने सैनेटरी पैड से टैक्स हटा दिया है। अब सैनेटरी पैड पूरी तरह से टैक्स फ्री है। विडंबना देखिए भारत कि 62 फीसदी महिलाएं पीरियड्स के दौर में सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं।
हर साल 23 मिलियन लड़कियां पीरियड्स की वजह से छोड़ती हैं स्कूल
भारत में हर साल 23 मिलियन लड़कियां पीरियड्स शुरू होने पर स्कूल छोड़ देती हैं। सरकार ने बड़े ज़ोर-शोर से जन औषधि केंद्र में एक रुपए में सैनेटरी नैपकिन देने की योजना प्रारंभ की थी। उस योजना का सकारात्मक प्रभाव क्या हुआ, सरकार नहीं बता पाई है। जन औषधि केंद्र चलाने वाले लोगों का कहना है कि उसमें कोई मार्जिन ही नहीं है। अगर कोई ग्राहक आ भी जाता है, तो हम उन्हें अन्य कंपनियों के प्रोडक्ट्स बेचते हैं।
ग्रामीण इलाके में जन औषधि केंद्र नहीं हैं। सरकारी अस्पताल की सुविधा भी 10-12 गॉंव को मिलाकर एक बड़े गॉंव में होती है। ऐसी स्थिति में ग्रामीण घरों की औरतों तक पीरियड्स के दौरान सैनेटरी प्रोडक्ट्स कैसे पहुंचेंगी?
जैसा कि हम सब जानते हैं, पीरियड्स के दौरान ग्रामीण इलाकों में औरत को घर में अलग रखा जाता है, खासकर किसी भी धार्मिक विधि से दूर रखा जाता है। ऐसे में पीरियड्स को लेकर उनमें जागृति लाना सिर्फ NGP का काम नहीं है। NGO इस कार्य को व्यापक रूप में कर भी नहीं सकते हैं।
ग्रामीण इलाकों में पीरियड्स की समस्या से निपटने के लिए सरकार के पास क्या प्लान हैं? अलग-अलग राज्यों में राज्य सरकार को इसके लिए ज़िम्मेदार रहना पड़ेगा। पीरियड्स को लेकर आप कितने संवेदनशील हैं, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप महिलाओं को किस दर्जे का मानते हैं?
कभी आपने महिलाओं की समस्या को समझने की कोशिश की है? आपको आपके स्कूल में जेंडर इक्वालिटी के बारे में कुछ पढ़ाया गया है, जिसका आपके मन पर एक गहरा प्रभाव हो?
पीरियड्स को कैसे आसान बनाया जा सकता है?
- स्कूलों में इस विषय को लेकर जागरूकता अभियान चलाए जाएं, बहुत बार ये चीज़ें किताबों में ही सिमट कर रह जाती हैं।
- आशा एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को पीरियड्स के विषय में विशेष प्रशिक्षण दिया जाए, जिससे ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता लाई जा सके।
- रेलवे स्टेशन और अन्य सार्वजनिक ठिकानों पर वेडिंग मशीन लगाई जाए।
- केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों मिलकर इस विषय में साझा कार्यक्रम तय करें।
ये सभी चीज़ें करते वक्त एक बात का ध्यान रखा जाए कि ये सारी प्रक्रियाएं किस तरह से इको-फ्रेंडली रहें। इस वक्त बाज़ार में मिलने वाले सैनेटरी नैपकिन पर्यावरण के लिए घातक हैं।