तन की खूबसूरती निखारते-निखारते हम कुदरती खूबसूरती देखना भूल गए हैं। आज शुरुआत कुछ आंकड़ों से-
- सौंदर्य प्रोडक्ट्स तकरीबन 100 वर्षों में अपघटित होते हैं।
- ज़हरीले रसायन पानी में बहकर अंततः समंदर में मिल जाते हैं, जिसकी वजह से उसमें रहने वाले जीव-जंतु अपने अस्तित्व को तरसते हैं।
- सबसे ज़्यादा नुकसान पाम तेल से होता है, जिसका सीधा संबंध कार्बन उत्सर्जन से है। यूं समझिए कि पाम की खेती के प्रति घंटा 300 फुटबॉल मैदान के बराबर इलाका साफ कर दिया जाता है।
- 1 हेक्टेयर जंगल की कटाई से अंदाजन 6000 टन कार्बन उत्सर्जित होता है।
- इंडोनेशिया के जंगलों की कटाई से सबसे अधिक नुकसान है, क्योंकि संपूर्ण विश्व में सबसे ज़्यादा कार्बन सोखने वाले वृक्ष यहीं पाए जाते हैं।
- मलेशिया व इंडोनेशिया में इनकी वजह से विस्थापन भी होता है, जो जाने अनजाने में कार्बन उत्सर्जन का बड़ा कारण बनता है।
ये आंकड़े क्या हैं? किस ओर इशारा कर रहे हैं?
असल में ये आंकड़ें सौंदर्य प्रोडक्ट्स की वजह से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की तरफ इशारा कर रहे हैं। मसलन, शैम्पू, डेओड्रेंट, तेल, साबुन, क्रीम, लिपस्टिक, आई लाइनर, हेयर क्रीम, हेयर डाई इत्यादि, मोटे तौर पर इनमें इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों को दो भागों में बांटा जा सकता है- प्लास्टिक व रसायन और दोनों ही पर्यावरण के लिए बेहद नुकासनदेह है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शुरू हुआ सौंदर्य प्रोडक्ट्स का मार्केट
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अमेरीका, सौंदर्य प्रोडक्ट्स का बड़ा बाज़ार बनकर उभरने लगा। वहीं यूरोपीय क्षेत्र अभी संभल ही रहा था।
पहले साबुन की टिकिया आती थी, सुगंध व इत्र कांच के जार में आते थे और बालों के पदार्थ पाउडर के रूप में।
प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात सैनिकों से महामारी फैलने का डर था, तो उन्होंने घर वापसी पर अपने आपको साफ रखने के तमाम जतन खोज निकाले, जिनमें बाल काटना, दाढ़ी बनाना और दांत मांजना प्रमुख था।
1920 तक पर्सनल केयर का एक बाज़ार खड़ा होने लगा। 1926 में लीवर (जो आगे चलकर बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनीलीवर बनी) ने प्रचार तंत्र का सहारा लेकर शारीरिक दुर्गन्ध को अपना हथियार बनाया। इसका सीधा प्रभाव लोगों के सामाजिक व आर्थिक जीवन पर पड़ा।
सौंदर्य प्रोडक्ट्स के ज़रिए कैसे होता है कार्बन उत्सर्जन
अगर गौर से देखा जाए तो सौंदर्य प्रोडक्ट्स में उपयोग होने वाले हर छोटे-बड़े उत्पाद का निर्माण व परिवहन कार्बन पैदा करता है। मिसाल के तौर पर इनके निर्माण में सबसे ज़्यादा उपयोग होने वाला पदार्थ प्लास्टिक है। अमूमन हर डिब्बे या पैकेट या ट्यूब में हम प्लास्टिक पा ही जाएंगे।
प्लास्टिक का निर्माण उच्च तापमान पर होता है। एक पाउंड PET (polyethylene terephthalate) के निर्माण में तीन पाउंड कार्बन का उत्सर्जन होता है। इसके साथ ही इन प्रोडक्ट्स की वितरण प्रक्रिया में जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों का प्रयोग होता है, जो बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करता है।
अकेले अमेरीका में प्लास्टिक के निर्माण व जलाकर भस्म करने की प्रक्रिया में 2050 तक 56 गीगा टन कार्बन का उत्सर्जन हो सकता है। यह अमेरीका के सभी कोयला संयंत्रों के सालभर के कार्बन उत्सर्जन से भी 50 गुना अधिक है। इसके बाद भी कहानी यही नहीं रूकती है। प्लास्टिक का निस्तारण सबसे बड़ी समस्या है। ये सैकड़ों वर्षों तक समाप्त नहीं होता है, जिसकी वजह से प्रदूषण फैलता रहता है।