सव्वे जीवा वि इच्छति, जीविउं ण मरिज्जिउं॥
अर्थात संसार में सभी प्राणी जीना चाहते हैं, मरना नहीं चाहते इसलिये प्राणी, वध को घोर समझकर निग्रंध उसका परित्याग करते हैं। भगवान महावीर ने अहिंसा का यह संदेश दिया था।
भगवान महावीर ही उस काल के एक ऐसे महापुरूष थे, जिन्होंने पूरे विश्व को अहिंसा से रूबरू कराया और जियो और जीने दो का पहला संदेश प्रसारित किया। महावीर के इसी संदेश को महात्मा गाँधी ने जनांदोलन बनाया था।
धर्म और अहिंसा के प्रतीक महावीर
धर्म और अहिंसा का मतलब समझने के लिये महावीर को अपनाना तो पड़ेगा ही। महावीर ने विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाने के लिये कम जतन नहीं किए थे। जब महावीर त्याग और तपस्या के बाद अपने अंदर के ज्ञान को शिक्षा के माध्यम से पूरे विश्व को जगाने निकले थे, तब उन्हें भी जटिल परेशानियों से निकलना पड़ा था।
असल में त्याग और तपस्वी बनने के लिये यायावर (घुमक्कड़) होना पड़ता है। महावीर को किसी ने पागल समझा, किसी ने उनको डडों से पीटा, तो किसी ने कुछ और किया लेकिन महावीर तो वीर थे, धैर्य था उनके अंदर। वे डटे थे उस रास्ते पर जो उन्हें पूरे विश्व को दिखाना था। फिर जो हुआ उसे पूरी दुनिया ने ऐसे कट्टर युग में देखा था, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
लाखों लोग उसी रास्ते पर चले और अहिंसा और त्याग के एक धर्म का भरपूर उदय हुआ। आज देश और विश्व में अहिंसा का भरपूर तांडव दिख रहा है, तो जानने की कोशिश करता हूं कि क्या महावीर का वह संदेश कहीं से कुंद पड़ गया है? अगर महावीर को हम भूल गये हैं, तो लाशों के ढेर उसी तरह लगते जाएंगे और सत्ता को हटाने और बिछाने का खेल चलता रहेगा।
हिंसा की एक क्रांति लिखने की कोशिश
व्यवस्था कैसे बदली जा सकती या एक युग में कैसे परिवर्तन होता है, इसके लिये कोई बंदूक उठाने से पहले महावीर को क्यों नहीं समझता? भगवान महावीर की शिक्षाएं असल में इतनी गहराईयों से भरी हैं कि उसे एक जीवन में समझना मुश्किल लगता है।
अहिंसा का जो संदेश भगवान महावीर ने सदियों पहले दिया था, उसको ही अपनाकर गाँधी महात्मा और बापू बने थे। उन्होंने महावीर के अहिंसात्मक संदेश को ही प्रसारित किया और देश की आज़ादी की दिशा मे कदम बढ़े थे।
आज देश का जो दौर है, उसमें बढ़ते क्रूर बातों से हिंसा की एक क्रांति लिखने की कोशिश की जा रही है। कुछ लोग बापू को याद करते हैं, महावीर को नमन करते हैं लेकिन ना तो मन में अहिंसा की बात है और ना ही शकल पर अहिंसात्मक चिंतन।
सत्ता को उठाने और गिराने की पदवी पर हावी इस हिंसात्मक कृत्यों की आड़ में दिमाग का ब्रेनवॉश एक नई पीढ़ी को तबाही की ओर ले जा रहा है। उस तबाही की ओर जिसे मिटाने के लिये महावीर दिंगबर अवस्था में जंगलों में निकले थे, घर-घर गये थे, लोगों के ताने सुने थे लेकिन बदलाव का वो जज़्बा ऐसा था, जिसने समाज को जगाया था। खैर, आज हम महावीर को याद करते हैं, तो चलिए उनके दिये विचारों को भी बार-बार याद करें।