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“सेक्युलर भारत में शान से पैर जमाता इस्लामोफोबिया”

मुस्लिम

मुस्लिम

इस्लामोफोबिया यानी इस्लाम के प्रति पूर्वाग्रह का स्तर सेक्युलर भारत को बंटे हुए रंगों में तब्दील कर रहा है। बात चाहे कपड़ों से पहचानने की हो, EVM से करेंट लगाने की हो या फिर गैर-मुस्लिमों की बहु-बेटियों की इज्ज़त का हवाला देकर वोट मांगने की हो, सवाल यह उठता है कि भारत का सफर कहीं उस दौर में तो नहीं आ पहुंचा जिसकी कल्पना सावरकर ने कभी की थी?

क्योंकि सरकार ही तो अपने इस्लामोफोबिया को शान से प्रस्तुत करने से बाज़ नहीं आ रही है। जिस इस्लामोफोबिया को महसूस किया जा रहा है, उसकी कल्पना कभी सावरकर ने की थी।

जी हां, बात 1939 की है, जब पाकिस्तान अस्तित्व में नहीं आया था, तब हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने टिप्पणी की थी,

अगर भारत के हिंदू मज़बूत होंगे, तो एक ऐसा वक्त आएगा जब लीग (मुस्लिम) के दोस्त मुस्लिमों की भूमिका जर्मनी के यहूदियों की तरह रह जाएगी।

ज्ञात हो कि सावरकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS का नेता था, जो आज की सत्तारूढ़ भाजपा की पितृ संस्था है।

भाजपा के चुनावी घोषणापत्रों से लेकर नेताओं के भाषणों ने मुसलमानों के प्रति नफरत को हवा दी

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

पिछले 6 सालों में बीजेपी के चुनावी घोषणापत्रों, उनके नेताओं के भाषणों ने मुसलमानों के खिलाफ नफरत और धर्मांधता को ऐसी हवा दी कि घर वापसी, लव जिहाद, गोमांस आदि के नाम पर मुसलामानों के साथ खुली हिंसा करने की आज़ादी मिल गई।

हिंसा की इस आज़ादी से हिन्दू समाज को कतई कुछ लेना-देना नहीं था, बल्कि इस आज़ादी में कथित हिन्दू जो सिर्फ भाजपा समर्थक थे, उन्होंने बार-बार हिंसा कर साहेब का सीना 56 इंची करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

ओपी जिंदल विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर खिंवराज जांगिड़ कहते हैं,

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भारत की कल्पना असाध्य स्तर तक मुस्लिम विरोधी है। 2014 और 2019 में उनकी भारी चुनावी जीतें, उस दृष्टिकोण का चरम बिंदू हैं। यह प्रक्रिया नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजिका पर खत्म ना भी हों, तो यह अंतिम चरणों में गिनी जा सकती है।

गोहत्या से संबंधित हत्याओं में मरने वाले 84 प्रतिशत लोग मुस्लिम हैं

फोटो साभार- सोशल मीडिया

इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2010 से अब तक गोहत्या से संबंधित हत्याओं में मरने वाले 84 प्रतिशत लोग मुस्लिम हैं और 97 प्रतिशत ऐसे मामले 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद घटित हुए हैं।

गज़ब यह है कि दंडहीनता की संस्कृति ने ऐसा उछाल मारा कि उन घृणित अपराधों में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई तो दूर की बात, बीजेपी के नेताओं ने ऐसे अपराधियों को जेल से छूटने के बाद माला पहनाकर ऐसा स्वागत किया मानो आज मेरे लाल ने पाकिस्तान पर कब्ज़ा दिला दिया हो।

ज़ाहिर सी बात है कि पूरे मुस्लिम समुदाय के भीतर खौफ ने घर कर लिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी के लिए मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि  इस्लामोफोबिया दिखाकर मुस्लिम पुरुषों को बदनाम करते रहने की मानो कसम खाली हो भाजपा समर्थकों ने।

मानो अब ओलम्पिक का मेडल तो मिलना ही मिलना है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के उस स्थान पर, जहां पहले बाबरी मस्जिद थी, राम मंदिर निर्माण के बीजेपी के सपने को भी हरी झंडी दे दी लेकिन मुस्लिम समाज ने उफ्फ तक नहीं की।

अब तो इस डबल गेम में स्कूली बच्चों का इस्तेमाल भी हो रहा है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

इस्लामोफोबिया का असर इस उदाहरण के ज़रिये समझिये कि किस तरह से एक मशहूर स्कूल के एनुअल फंक्शन में पुरस्कार पाने वाले दो बेहद करीबी दोस्त मोहम्मद और सुहांस (बदला हुआ नाम) अपने अवार्ड लेने के बाद मिलते हैं।

9 वर्षीय सुहांस ने अपनी माताजी को आवाज़ दी, “मम्मा देखिए ये ही मोहम्मद है, देखिए कितना अच्छा है। आप उसकी अम्मी से मिलिए वो मुसलमान हैं लेकिन खराब नहीं हैं।”

इस पर 9 वर्षीय मोहम्मद की माता जी ने सब कुछ अनसुना करते हुए सुहांस के माता जी से चहककर मिलीं। अब सोचने की बात है कि 9 साल के बच्चे के ज़हन में मुसलमान खराब होते हैं, यह बात कहां से आई? ज़ाहिर है इस्लामोफोबिया से।

जमशेदपुर स्थित DAV स्कूल, जिसे जमशेदपुर की नाक कहा जाता है, वहां हमारे एक रिश्तेदार का 9 साल का लड़का पढ़ता है। पिछले हफ्ते 10 बजे मैं किसी काम से उनके घर गया और देखा कि उनका बेटा घर पर है।

पूछने पर कि क्यों वह स्कूल नहीं गया है, वो कहने लगा, “मम्मा ने आज स्कूल नहीं जाने दिया।” उसने बताया कि क्लास टीचर ने सभी बच्चों को CAA पर लिखकर लाने के लिए कहा है, जो सबसे अच्छा लिखेगा उसे असेंबली में बोलने का मौका मिलेगा।

मैंने पूछा, “इस बारे में क्या स्कूल ने कोई सूचना दी है?” इस पर अभिभावक ने बताया कि इस तरह के विवादित मुद्दों पर नोटिस नहीं आती है। खैर, अब बताइए कि यह 9 साल का लड़का CAA को क्या समझेगा जो लिखकर ले जाएगा।

ट्रेन में इस्लामोफोबिया की घटना

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

पिछले साल प्रयागराज ट्रेन में दो मुस्लिम बुज़ुर्ग (पति-पत्नी) जिनकी अपर बर्थ थीं, नीचे की बर्थ पर एक हिन्दू भाई साहब दो बेटा और पत्नी के साथ सफर कर रहे थे। मसला यह था कि चार लोगों की सीट होने का हवाला देकर उन्होंने बुज़ुर्ग को बैठने नहीं दिया।

साइड लोअर पर बैठे एक-दूसरे हिन्दू नौजवान ने कहा अंकल आप यहां बैठ जाइए। दोनों मुस्लिम दंपत्ति साइड लोअर में बैठ गए। जब सभी सोने लगे, तो हिन्दू नौजवान ने कहा, “अंकल आप साइड लोअर सीट पर सो जाइए, मैं आपकी अपर सीट में सो जाता हूं।”

खैर, रात में बुज़ुर्ग की पत्नी जो किसी तरह अपर बर्थ में चढ़ी थीं, 2 बजे के आस-पास नीचे आईं। पति से कहने लगीं, उठिए देखिए वे लोग परेशान हैं। पति ने कहा, “पूछिए क्या बात है?”

पूछने पर पता चला कि बेटे के पेट में दर्द हो रही है और वह दर्द से तड़प रहा है। मालूम हुआ कि दवा भी नहीं है। बुज़ुर्ग बड़ी फुर्ती से उठे और अपना छोटा से सूटकेस खोला, दवाओं की खनखनाहट सुनकर हिन्दू नौजवान मुस्कुराने लगा।

मालूम हुआ कि वो तो डॉक्टर साहब हैं। उनकी पत्नी ने बच्चे को गोद लेकर साइड लोअर सीट में बैठा लिया और डॉटर साहब ने उपचार किया। 20 मिनट बाद बच्चा ऊंघने लगा, बुज़ुर्ग महिला ने बच्चे के मता से कहा, “बेटा आप सो जाओ, “हम इसका ध्यान रखेंगे।” इस पर हिन्दू महिला यानी बच्चे की माता रो पड़ीं, बड़े बेटे ने कहा कि माँ ये तो मुसलमान हैं लेकिन अच्छे हैं। आप तो कह रही थीं कि वे अच्छे नहीं होते हैं। इस पर हिन्दू नौजवान ने कहा, “नहीं बेटे वे पहले भारतीय हैं फिर डॉक्टर हैं और उसके बाद मुसलमान हैं। 

बहरहाल, ये जो इस्लामोफोबिया दिखाकर “हिन्दू खतरे में हैं” का राग अलापा जा रहा है, यह देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को डस रहा है। ऐसा लगता है कि 5 अगस्त के बाद की स्थिति के लिए भारतीय राज्य यह मानकर चल रहा था कि कश्मीरी युवक, जिनको लंबे समय से गद्दारों की तरह पेश किया जाता रहा है, सड़कों में उतर आएंगे और मारे जाएंगे।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि सीएए के बाद भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य मुसलमान, जिनसे दक्षिणपंथी संभवतः कश्मीरी मुसलमानों के बाद सबसे अधिक नफरत करते हैं, उनके समर्थन में बड़ी तादाद में सड़कों पर हिन्दू, सिख, ईसाई आदि  उतर आएं, जिसने साबित किया कि हिन्दू नहीं, हिन्दुस्तान खतरे में हैं।

दिल्ली का चुनाव परिणाम यह साबित भी करता है कि भाजपा के लिए बहुसंख्यकवादी वोट बैंक का ठोस ना हो पाना और आप को सत्ता देना बड़ी बात है, यही तो भारत है।

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