केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में इस्लामोफोबिया के प्रति लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आ रही है। अब तो किसी व्यक्ति को मात्र दाढ़ी या टोपी लगाए या किसी महिला को बुरखा पहने देखकर ही लोग उनके प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बना लेते हैं।
अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और इज़राइल समेत कई देशों ने इस्लाम के कई धार्मिक नियम-कायदों पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। यहां तक कि एयरपोर्ट पर मुस्लिम व्यक्ति को इस्लामोफोबिया की वजह से काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है मगर उन देशों का प्रयास मात्र आतंकवाद को रोकना है।
उनका मानना यही है कि मुसलमान जितना कट्टर धार्मिक होगा, वह उतनी ही आसानी से आतंकवादी बनाया जा सकता है मगर भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इस्लामोफोबिया फैलाए जाने का मकसद सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ मात्र है।
इस्लामोफोबिया के नाम पर हिन्दुओं को बरगलाया जा रहा है
भारतीय जनता पार्टी अपने सिद्धांत पर आगे बढ़ रही है और उसका सिद्धांत सिर्फ अपने पितामाह विनायक दामोदर सावरकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वप्न ‘हिंदू राष्ट्र’ का निर्माण करना है। हिंदुओं को एकजुट कर वह अपने लक्ष्य में आगे बढ़ती जा रही है। सत्ता प्राप्त करने के पश्चात ना तो उसे देश के विकास की कोई फिक्र है, ना ही देश की बर्बादी पर उसे कोई अफसोस होगा।
भारतीय जनता पार्टी को ना तो गिरती अर्थव्यवस्था की चिंता है ओर ना हीअशिक्षा, बेरोज़गारी, बलात्कार और भ्रष्टाचार जैसी अति गंभीर समस्याओं से देश को उभारने की चिंता है। उसे बस इस्लामोफोबिया के आधार पर देश के लगभग 80 करोड़ हिंदुओं को बरगलाकर अपने पितामाह के संकल्प की प्राप्ति करनी है।
2014 में बीजेपी की सरकार बनते ही लव जिहाद, गाय का मांस, आदि मुद्दों से इस्लामोफोबिया की शुरुआत की गई और असल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाया गया। क्या बीजेपी, आर.एस.एस के कई बड़े नेताओं की लड़कियों की शादी मुसलमान से नहीं हुई?
क्या फाइव स्टार होटल के मेन्यू कार्ड में बड़े शान से जो गाय का मांस लिखा जाता है, उसे किसी ने नहीं देखा? सच्चाई तो यह है कि राजनीतिक स्वार्थ की आड़ में सत्ताधारी सरकार धार्मिक भावना भड़काकर वोट की राजनीति करने में सफल हुई, जिसमें गरीब मुसलमानों को लव जिहाद, गाय का मांस,आदि मुद्दों से बलि का बकरा बनाया गया।
माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात से बुलाया ही इसलिए गया था, क्योंकि उस समय बीजेपी के पास प्रधानमंत्री हेतु कोई उचित चेहरा ही नही था और गुजरात दंगों के हीरो नरेंद्र मोदी जी ने 2014 का लोकसभा चुनाव सिर्फ ओर सिर्फ इस्लामोफोबिया के आधार पर जीता था।
बीजेपी के थिंक टैंक के पास विदादित मुद्दों का कैलेंडर है
इसी तरह साल-दर-साल नए-नए मुद्दे उजागर होते रहे, जिनमें इस्लाम के हरेक निजी पहलू जैसे अज़ान (लाउड स्पीकर), बकरा ईद पर जीव हत्या, नवरात्रि के डांडिया में मुस्लिम व्यक्ति पर प्रतिबंद, ट्रिपल तलाक, जेएनयू, कश्मीर, पाकिस्तान आदि मुद्दों से मुस्लिम समुदाय पर उंगली उठाकर असल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाते हुए बीजेपी 2019 का चुनाव भी जीतने में सफल हुई।
इस्लामोफोबिया के आधार पर इस कदर नफरत फैलाई गई कि ज़ोमैटो जैसे ऑनलाईन ऐप्प पर मुस्लिम व्यक्ति का नाम पढ़कर किसी व्यक्ति ने अपने खाने का ऑर्डर केंसल कर दिया।
मगर अब बारी है 2024 चुनाव की। इस्लामोफोबिया के आधार पर फिर असल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाते हुए माननीय गृह मंत्री अमित शाह उर्फ मोटा भाई उर्फ चाणक्य (नकली) द्वारा राम मंदिर पर फैसला लाया गया। ट्रिपल तलाक खत्म किया गया, धारा 370 एवं धारा 35 ‘A’ कश्मीर से हटाई गई, ‘देश का हिन्दू खतरें में है’ ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालो को’ आदि स्लोगन से इस्लामोफोबिया की आड़ में देश को आंतरिक रूप से बांटा जा रहा है।
ऐसा लगता है कि बीजेपी के थिंक टैंक के पास कोई विदादित मुद्दों का कैलेंडर है, जिसमें कब और किस वर्ष कौन-सा मुद्दा उठाकर उसका चुनावी फायदा उठाया जाए, ये फिक्स है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में नहीं काम आया इस्लामोफोबिया
इस्लामोफोबिया की युक्ति उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी अपनाई ओर शाहीन बाग को गाली दे देकर, शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट पर गोली चलवाकर जनता को इस्लामोफोबिया से डराने का प्रयास किया तथा वोट की मांग की।
मगर दिल्ली की जनता ने केजरीवाल के विकास पर वोट दिए और बीजेपी की बकवास पर उन्हें मुहतोड़ हार का सामना करना पड़ा लेकिन 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने का पैंतरा CAA ओर NRC अभी जीवित है। गृह मंत्री कहते हैं आप क्रोनोलॉजी समझिए मगर काश वह देश के विकास की क्रोनोलॉजी समझते।
अब तो नागरिकता भी छीन ली जाएगी
हद तो यह हो गई है कि 1971 के बाद के सभी भारतीय निवासियों की नागरिकता छीन ली जाएगी। मतलब लगभग 50 साल देश मे निवास करना भी हमें देश का नागरिक होने का अधिकार नही देता है। मतलब 50 साल रहने वाला मुसलमान भारत का नागरिक नहीं होगा और पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे देशों से CAA द्वारा गैर मुस्लिम समुदाय जैसे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई सब देश के नागरिक होंगे?
वह देश प्रेमी कहलाएंगे? मतलब 50 साल देश की सेवा करना ‘गद्दारी’ कहलाएगी ओर दुश्मन देश के गैर-मुस्लिम नागरिक वफादार होंगे? इसकी क्या गारंटी है? मगर बात घूम फिरकर वहीं आ जाती है कि सरकार और उसकी अंधभक्त जनता को देश के 20 करोड़ मुस्लिम से 80 करोड़ हिन्दू खतरे में ही दिखते हैं।
देश के असल मुद्दे जाए भाड़ में हम हिटलर वाली जर्मनी की दहलीज़ पर खड़े है और इस्लामोफोबिया की आड़ में हमारे देश को बर्बादी के अंधकार में धकेला जा रहा है। लगता है यह देश हिन्दू राष्ट्र बन भी जाएगा, क्योंकि देश की अंधभक्त जनता का पेट ‘धर्म’ से भरता है, रोटी से नहीं।
वैसे कब तक यह चलेगा? जैसे आज जर्मनी में वहां की जनता द्वारा हिटलर को गाली दी जाती है, वैसे ही एक दिन हमारी भूखी-नंगी, अशिक्षित और बेरोज़गार नस्लें देश के विकास के बजाए इस्लामोफोबिया के बकवास रूपी छलावे में आकर लिए गलत फैसलों पर हमें गालियां देंगी।
जय हिन्द।