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गार्गी कॉलेज में पुरुषों की भीड़ ने लड़कियों के साथ की बदसलूकी और उनके सामने किया मास्टरबेट

कुछ महीनों पहले एक लड़की की जली हुई लाश मिलती है। लोकतंत्र रोता है और फिर न्याय के क्रम को दरकिनार करता हुआ एनकाउंटर लोकतंत्र पर पहला प्रहार करता है।

कुछ वक्त बाद भीड़ जो पहले सड़कों पर किसी को मार रही थी वह जेएनयू में नकाब पहनकर घुस जाती है और विद्यार्थियों के हाथ-पैर और सर फोड़कर लोकतंत्र पर एक और प्रहार करती है।

ठीक महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि के दिन इसी देश का एक युवा तथाकथित आज़ादी देते हुए एक दूसरे युवा पर इसलिए गोली चला देता है क्योंकि वह अपने संवैधानिक अधिकार के तहत किसी कानून का विरोध करता है और इस तरह लोकतंत्र पर अगला प्रहार होता है।

लोकतंत्र अपने ही लोगों से हार रहा है। आज देश में एक युद्ध सा है और अगर इतिहास में देखें तो, सदियों से युद्ध का हथियार बलात्कार ही रहा है। दुख की बात यह है कि आज भी यह मानसिकता जीवित है और इसका ताज़ा उदाहरण गार्गी कॉलेज की लड़कियों के साथ उन्हीं के कॉलेज में हुआ यह हादसा है।

क्या हुआ गार्गी कॉलेज की लड़कियों के साथ?

दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेज गार्गी एक गर्ल्स कॉलेज है। यहां 6 फरवरी को कॉलेज के एनुअल फेस्ट का आखिरी दिन था जब एक भीड़ इस कॉलेज में घुस गई और वहां मौजूद लड़कियों के साथ बद्तमीज़ी की।

यहां बद्तमीज़ी या छेड़खानी पर ज़रा गौर फरमाइयेगा। ये लड़के, दरअसल कुछ अधेड़ उम्र के आदमियों ने शराब पी रखी थी। ये कॉलेज में घुसते हैं और इन लड़कियों को दबोचते हैं (दबोचने का अर्थ और आशय ज़्यादातर लड़कियां बेहतर ढ़ंग से समझ पाएंगी)। फिर ये लोग अपने कपड़े उतारते हैं और यहां कि स्टूडेंट्स के सामने मास्टरबेट यानी कि हस्तमैथुन करते हैं और किसी भी लड़की को अंदर तक खौफ से भर देने वाला यह सिलसिला कैंपस के अंदर लगभग 5 घंटे तक चलता है।

सामने आई रिपोर्ट्स में छात्राएं बता रही हैं कि यहां भी पुलिस तमाशबीन बनी रही। सिर्फ इतना ही नहीं कॉलेज प्रशासन का कहना है कि ऐसी किसी भी घटना की सूचना उनके पास आई ही नहीं। लेकिन इन लड़कियों का कहना है कि कॉलेज प्रशासन उनकी सुन ही नहीं रहा है इसलिए वे अब कॉलेज में विरोध प्रदर्शन करेंगी।

अचानक ये सब होता देख फिर से हैदराबाद की डॉक्टर की जली लाश याद आ जाती है और इसपर रमाशंकर विद्रोही की कविता कि एक पंक्ति,

मैं इस औरत की जली हुई लाश पर
सर पटक कर जान दे देता
अगर मेरे एक बेटी ना होती दोस्तों!
और बेटी है जो कहती है
कि पापा तुम बेवजह ही
हम लड़कियों के बारे में
इतने भावुक होते हो
हम लड़कियां तो लकड़ियां होती हैं
जो बड़ी होने पर चूल्हे में लगा दी जाती हैं।

 

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