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“मैं 90 के दशक की आवारगी वाला प्यार ढूंढ़ती हूं”

इश्क अगर इक आग एक दरिया है, तो इसे पार करने के पहले बस इतना सा दिलासा मिल जाए कि दूसरे किनारे पर साथी खड़ा है, तो सफर उसे पाने के अरमान में आसान हो जाए।

आजकल तो लोग चंद कदम साथ चलकर कब हाथ छोड़ देते हैं, पता ही नहीं चलता। हम पूरी तरह समझ भी नहीं पाते और ये रिश्ते आधे अधूरे में ही दम तोड़ देते हैं। उम्र भर का वादा तो दूर, कुछ साल साथ निकल पाएं, उसके लिए भी बड़ी मेहनत लगने लगी है। जैसे कोई जंग छिड़ी हो।

दीवानगी वाला प्यार ढूंढ़ती हूं

टिंडर और व्हाट्सप्प के ज़माने में मैं वह दीवानगी वाला प्यार ढूंढ़ती हूं। मैं 2020 में 90 के दशक की आवारगी वाला यार ढूंढ़ती हूं। प्यार से सरल कोई भाव ही नहीं पर प्यार से फिर क्यों डरता है दिल? प्यार से बड़ी कोई इबादत नहीं लेकिन क्यों इतनी सी बात समझता नहीं दिल?

उम्र भर कोई तुम्हे चाहे और तुम्हारे साथ अपनी ज़िन्दगी बिताए इस बार पर यकीन नहीं होता। तुम जैसे हो उसे अपनाते हुए कोई तुममे खुद थोड़ा ढ़ले और थोड़ा तुम्हे अपने रंग में रंगाये, इस बात पर यकीन नहीं होता।

एक धोखे से ये नज़रें हर दिल को उसी टूटे दिल से आंकती हैं, तो बस हर रूह में दरारे ही नज़र आती हैं। यह वह डर ही तो है, जो तुम्हें आगे बढ़ने नहीं देता और अपनी दिल की करने नहीं देता।

समाज, जाति, मज़हब, रुपया-पैसा, रंग-रूप तो बस माया है लेकिन तेरा इश्क अपने आप में ही एक अलौकिक काया है। तो इन सबमें दिल की भावनाओं से बैर कैसा? हाथ थाम कर तो देख जिसपर दिल को यकीन है। उसके यानी कि अपने यकीन को मिलाकर तो देखो शायद आग का दरिया भी हंसते हुए पार कर जाओ तुम की दिल में यह मलाल ना रह जाए कि मंज़िल सामने थी, कुछ कदमों का फासला था। बस दिल के हाथों मजबूर हुए कुछ इस तरह की दिल हाथों दिल के टुड़के हज़ार हुए।

 

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