मैं रवीश कुमार की किताब ‘इश्क में शहर होने’ से कुछ लिखकर शुरू करना चाहूंगी।
आपने जाति का बंधन ना तोड़ा, धर्म का बंधन ना तोड़ा फिर प्यार क्या किया?
कुछ तो बदलेंगे ना आप समाज में। सदियों से हमें राधा-कृष्ण की कहानियां सुनाई जाती रही हैं कि वे दोनों प्रेमी थे लेकिन प्यार शब्द से हमेशा हम दूर ही रहे हैं।
अगर मैं अपने प्यार की बात करूं तो मेरा प्रेम मुझे बांधता नहीं है, आज़ाद करता है। कहानी बहुत पुरानी नहीं है और कुछ नया भी नहीं है, वहीं पुरानी कहानी लड़का-लड़की मिले प्यार हुआ और बस सोचने लगे कि सब ठीक रहा, तो शादी कर लेंगे।
प्यार के बीच बाधा उत्पन्न करने वाले भी पहुंच ही जाते हैं-
एक रोज़ जब तस्वीर डाली तो सबको पता चल गया कि प्यार हो गया है या किसी लड़के के साथ रिश्ते में है और खुलेआम प्यार का इज़हार भी कर रही है। अब पूरा घर कहने लगा कि या तो तस्वीर हटाओ या घर से निकल जाओ। फिर फैसला लिया कि घर से निकलना ही बेहतर है।
आप प्यार अगर खुलकर नहीं कर सकते तो यकीन मानिए आपके अंदर भाव नहीं है। आप भावनात्मक नहीं हैं।
इसके बाद शादी करने की सोची तो पता चला कि अंतरजातीय विवाह करने जा रहे हैं, सब दोस्त खुश थे लेकिन मेरा परिवार नहीं और जब शादी कर ली तो सब बधाई दे रहे थे लेकिन बड़ा अजीब लग रहा था कि हमने ऐसा क्या बड़ा कारनामा कर दिया है।
ये प्रेम कहानियां सिर्फ फिल्म और नाटकों में देखना पसंद करते हैं हम
तभी लोगों को यह बड़ा काम लग रहा था। हमने सब तय कर रखा है, सबके नियम हैं। एक लड़का और लड़की की प्रेम कहानी ही फिल्म और नाटकों में दिखती है। लड़का-लड़का के बीच का प्रेम हमें दिखाया ही नहीं गया और ना ही समझाया गया है, इसलिए हम इसे पाप कहते हैं। लड़का-लड़की दोस्त से ज़्यादा भी कुछ हो सकते हैं। यह प्रेम कहानियां भी अधूरी रह गईं।
फरवरी के महीने में आपको प्यार करने से रोकने वाले भी मिल जाएंगे
फरवरी प्रेम का महीना है, यह भी तय कर लिया गया है और तमाम लोग इसे मनाते भी हैं, तो उसी दिन बजरंग दल जैसी मानसिकता रखने वाले लोग भी हैं, जो प्यार करने वालो को मारते हैं और भगाते भी हैं।
हर तरफ आपको प्यार करने से रोका जाता है। बड़े शहरों में तो प्यार शब्द सुनाई तो दे जाता है लेकिन छोटे शहरों ने आज भी प्यार शब्द से कोसों की दूरी बनाई हुई है। इसकी वजह ढूंढने जाएंगे तो कई वजहें मिल जाएंगी।
हमने कितनी ऐसी कहानियां सुनी हैं, जो अंतरजातीय या इंटर रिलिज़न रही हो?
वैसी कितनी कहानियां हमने सुनी हैं, जहां अंतरजातीय विवाह होने पर परिवार खुश रहा हो। इससे भी ज़रूरी, जिसमें परिवार ने आगे बढ़कर पहल की हो कि हम शादी किसी भी धर्म या जाति में करवा लेंगे।
दो लोगों को प्यार में मार दिया जाता है और इसका उदाहरण सिर्फ हीर-रांझा या लैला-मजनू नहीं है, क्योंकि इज्ज़त के नाम पर हत्याओं से आंकड़ें भरे पड़े हैं। हमारे समाज ने अन्य प्रेम कहानियां या तो मार दी या कभी पनपने ही नहीं दी।
समाज को बस फिल्म में हैप्पी एंडिंग अच्छी लगती है। असल ज़िन्दगी में केवल इज्ज़त नाम की दीवार खड़ी है। हम समाज के रूप में बेहद कमज़ोर हैं। हम कभी प्रेम कहानियां दे नहीं पाए हैं। समाज को बेहतर करना भी हमें ही सीखना होगा। नई पीढ़ी कुछ तो बदलेगी, बेहतर बनाएगी। यह समाज प्रेमियों के लिए कभी तो प्रेमानकूल बनेगा।