पिछले दिनों मैंने कई ऐसे लेख पढ़ें, जिनमें फिल्मों के ऊपर हिन्दू-मुसलमान विवाद उठाया गया, जिसे देखकर काफी तकलीफ हुई। बॉलीवुड में धर्म और जाति के नाम पर कभी भी भेदभाव नहीं हुआ है। आज भले ही राजनीति की वजह से बॉलीवुड कुछ मुद्दों पर बंटा हुआ दिखे मगर सांप्रदायिक कभी भी नहीं दिखाई दिया है।
यह सारा विवाद शुरू तो काफी पहले हुआ पर ओम राउत की फिल्म ‘तानाजी’ और आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘पानीपत’ को लेकर यह विवाद और ज़्यादा गरमा गया। हालांकि कहने को तो इससे पहले ‘ओह माय गॉड’, ‘पीके’ और ‘पद्मावत’ पर भी इसी तरह का विवाद हो चुका है।
‘पद्मावत’ और ‘पीके’ जैसी फिल्मों पर उठा था विवाद
मुझे याद आता है कि ‘पद्मावत’ के समय तो कट्टरपंथियों ने पूरे देश में हिंसा फैला दी थी। फिल्म देखे बिना ही कह दिया गया कि यह फिल्म राजपूतों के खिलाफ है। फिल्म देखने के बाद कहा गया कि नहीं भाई इसमें गलत कुछ नहीं है।
‘पीके’ और ‘ओह माय गॉड’ जैसी फिल्मों को भी सांप्रदायिक कहा गया पर असल में उन फिल्मों में धर्म का धंधा करने वालों को दुनिया के सामने लाया गया था। मुझे याद है कि आमिर खान साहब पर ‘पीके’ के वक्त कुछ कट्टरपंथियों ने यह आरोप लगाए थे कि वह मुसलमान हैं इसलिए उन्होंने ‘पीके’ बनाई है।
हालांकि मैंने पीके फिल्म देखी तो बतौर हिन्दू उसमें मुझे कुछ भी हिन्दू धर्म के खिलाफ नहीं दिखा, बल्कि मैं यह कहूंगा कि उस कहानी के किरदार ने वे बातें उठाई थीं, जिसपर बात करना बेहद ज़रूरी है।
कमल हासन की फिल्म ‘हे राम’ पर विवाद
उसी तरह कुछ लोग तमिल अभिनेता कमल हासन की फिल्म ‘हे राम’ को भी हिन्दू विरोधी साबित करने में लगे हुए थे, क्योंकि यह कहानी साकेत राम नाम के एक हिन्दू की है, जिसकी बीवी को कुछ कट्टरपंथी मार डालते हैं। इसके बाद वह अपनी बीवी समेत तमाम हिन्दुओं की मौत का ज़िम्मेदार गॉंधी जी को मानकर उनकी हत्या करने जाता है। मगर जब उसे एहसास होता है कि गॉंधी जी एक नेक इंसान हैं, तो वह उनसे माफी मांगने का फैसला करता है लेकिन उससे पहले नाथूराम गोडसे गॉंधी जी को मार डालता है।
हालांकि इस कहानी में तब के भारत मैं फैली हुई राजनीतिक साज़िश की सच्चाई दिखाई थी कि कैसे सांप्रदायिक दंगों में भारत के कई वासी हत्यारे बन गए थे, इसमें कोई हिन्दू-मुसलमान नहीं था।
अब ‘पानीपत’ और ‘तानाजी’ पर लग रहा है सांप्रदायिकता का आरोप
अभी सांप्रदायिकता का आरोप हालिया दो फिल्मों पर लगा है, एक ‘पानीपत’, जो 1761 के पनीपत के युद्ध पर बनी है और दूसरी ‘तानाजी’, जो 1670 में सिंहगढ़ किले में हुई लड़ाई पर बनी है।
इन दोनों ही फिल्मों को कुछ लोगों ने एंटी मुस्लिम कहा था, हालांकि इसमें एंटी मुस्लिम कुछ था ही नहीं। ‘तानाजी’ फिल्म जिस सिंहगढ़ की जंग पर बनी है, उसमें एक तरफ जहां मराठा फौज का नेतृत्व सूबेदार तानाजी मालुसरे कर रहे थे, तो दूसरी तरफ मुगल फौज का नेतृत्व उदयभान राठौर कर रहे थे, जो औरंगज़ेब के सबसे भरोसेमंद राजा जय सिंह के सबसे काबिल सेनापति थे। मतलब कहानी का नायक भी हिन्दू और खलनायक भी हिन्दू, तो यह मुस्लिम विरोधी कहां से हुई?
दूसरी बात ‘पानीपत’ फिल्म 1961 की पानीपत की जंग पर बनी है, उस जंग में सदाशिव भाऊ के सबसे 2 करीबी योद्धा यानि उनके भाई शमशेर बहादुर और उनके सेनापति इब्राहिम खान गर्दी दोनों मुसलमान थे।
हालांकि इन सब मुद्दों पर पहले भी फिल्म, टीवी सीरियल बन चुके हैं, जिनमें खुद ग्रेट मराठा वॉरियर नाम का भी एक धारावाहिक था मगर कभी उनपर इतना हंगामा नहीं हुआ, जितना आज हो रहा है।
‘सीक्रेट सुपरस्टार’ तक को बता दिया गया था सांप्रदायिक
एक बार किसी लेख में ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ नाम की फिल्म को लेकर किसी ने यह आपत्ति जताई थी कि यह इस कहानी में ज़ायरा वसीम के किरदार को मुसलमान क्यों रखा गया है, क्योंकि उसके मुसलमान पिता उसे सिंगर बनने से रोकते हैं। मतलब एक तरीके से उस कहानी को भी सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई।
पिछले दिनों कुछ लोगों ने अक्षय कुमार की फिल्म ‘केसरी’ पर भी यही आरोप लगाया कि वह हिन्दू बनाम मुस्लिम करती है।
बॉलीवुड ने कभी भी समाज को हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से नहीं देखा है, जैसे कि कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं। पहले बॉलीवुड पर इस तरह के इल्ज़ाम नहीं लगते थे लेकिन हाल के दिनों में बॉलीवुड को ऐसे इल्ज़ामों का सामना करना पड़ रहा है।
क्या ऐसे इल्ज़ाम लगाना सही है? जवाब है नहीं, इसलिए लोगों को चाहिए कि फिल्में देखने जाएं ना कि इसमें सांप्रदायिकता ढूंढने। मुझे फिल्म ‘मुल्क’ बहुत पसंद आई और उसमें मुझे ऋषि कपूर का वह डायलॉग भी काफी पसंद आया था, “अगर आप मेरी दाढ़ी और ओसामा बिन लादेन की दाढ़ी मैं फर्क नहीं कर पा रहे हैं, तो भी मुझे हक है मेरी सुनत निभाने का”।
यह बॉलीवुड सबकी इज्ज़त करता है, किसी बेइज्ज़ती में यकीन नहीं रखता है।