कल एक भाई समान दोस्त ने मुझसे कहा कि मैं हिन्दुस्तान विरोधी हूं। उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसे लगता है कि मैं भाजपा का विरोध कर देश से गद्दारी कर रहा हूं। मुझे यह सोचकर काफी तकलीफ हुई कि कैसे उसके जे़हन में भरा गया होगा कि जो भाजपा के साथ नहीं है वह देशद्रोही है।
यह विडंबना है आज के भारत की। जब देश आज़ाद हुआ तब देश में सिर्फ काँग्रेस सरकार थी और कुछ एक वाम दल थे। उस वक्त काँग्रेस के विरोध में जनसंघ बनी और बाद में जनसंघ ही भाजपा बन गई।भाजपा ने काँग्रेस के विपक्ष के रूप में ज़ोरदार भूमिका निभाई। भाजपा जनता की आवाज़ बनकर उभरी, क्योंकि विपक्ष जब सड़क पर होता है तो जनता को लगता है कि उसकी कोई आवाज़ है, जो उठ रही है।
विपक्ष लोकतंत्र की वही कड़ी है जिससे पहचान बनाकर भाजपा सत्ता में आई। पर अफसोस आज भाजपा सरकार की नीतियों पर सवाल करने, लिखने और बोलने पर देशद्रोही, राष्ट्रद्रोही और गद्दार जैसे शब्द बड़े आसानी से बोल दिये जा रहे हैं। जो एक बहुत बुरा संकेत है।
संघ के विद्यालयों में नफरत नहीं देशभक्ति सिखाई जाती थी
हमने संघ के विद्यालय में शिक्षा ली लेकिन वहां देशभक्ति सिखाई जाती थी, नफरत करना नहीं। हमने पहली बार भाषण भी विद्या मंदिर में दिया था लेकिन उस भाषण में पंडित जवाहरलाल नेहरू को सम्मान से पढ़ा था। हमें नेहरू के बारे में कभी गलत नहीं बताया गया।
हमने ABVP में सांगठनिक कार्य किये लेकिन हमें वहां यही बताया गया कि विश्व एक परिवार है। यह बताया गया कि आप किसी भी राजनीतिक दल से राजनीति कर सकते हैं।
मुझे समझ नहीं आता कि वे कौन लोग हैं, जो ना कभी संघ की शाखा गये, ना कभी संघ के विद्यालय गये ना अच्छे स्कूल गये फिर भी वे राष्ट्रवाद की गलत परिभाषा साबित कर रहे हैं। वे कहां से ये सब सीख रहे हैं? उन्हें नफरत करना कौन सिखा रहा है? बंदूक थामना कौन सिखा रहा है?
दरअसल, यह आज के मौजूदा गैरज़िम्मेदराना राजनीति का दुष्प्रभाव है। यह मौजूदा दौर में राजनीतिक फायदे लेने के लिए फैलाया गया फेक न्यूज़ का परिणाम है।
इस माहौल में युवा राजनीति में कैसे आए?
इन सबके बाद जब हम जैसे नौजवान, जो अपने घर की परवाह छोड़कर राजनीति में आना चाहते हैं, वे देश की राजनीति में कदम रखने की कैसे हिम्मत करेंगे। अगर हर आवाज़, लेख या बात को भाजपा का विरोधी बताकर दबा दिया जायेगा, तो लोकतंत्र कैसे बचेगा? यह सत्ता का अन्याय है, जो धर्म के नाम पर जनता को असल मुद्दे से भटका रहा है।
हम हिन्दू हैं लेकिन अगर हम भाजपा के साथ नहीं तो यह एहसास कराया जाता है कि हम हिन्दू विरोधी हैं। यह तो एक प्रकार का ज़ुल्म है। यह किसी की राजनीतिक शक्तियों पर प्रहार है।
आप खुद बताइये क्या यह मेरा कसूर है कि मैं राजनीति में आया? क्या मेरा यह कसूर है कि मैं चुनाव लड़ा? क्या मेरा यह कसूर है कि सात साल संघर्ष करने के बाद मैंने जाति पूछने वालों और टिकट के लिए करोड़ों मांगने वालों को छोड़कर एक ऐसी पार्टी ज्वाइन की जिसने मुझे टिकट दिया और जनीति में स्थान दिया। क्या आम आदमी पार्टी देश के विरोध में है? क्या भाजपा के साथ जो नहीं वे सब अधर्मी हैं। क्या एक राजनीतिक पार्टी यह तय कर देगी कि सच्चा हिन्दू का मतलब भाजपा का समर्थक होना है?
किसी जाति को, किसी धर्म को अपने फायदे के लिए हथिया लेना पाप है। ये आज के उन नए युवाओं के साथ अन्याय है, जो राजनीति में करियर बनाना चाहते हैं लेकिन उन्हें भाजपा के विरोधी होने पर सीधा राष्ट्रद्रोही कह दिया जाता है। विचारधारा जब आपको कट्टर बना दे, तो आप आतंकी भी बन सकते हैं।
आज हर वह विचार जो लोकतंत्र में विपक्ष की ज़ुबान काटना चाहता है, भाजपा के विरोध करने वालों को गोली मारना चाहता है, तपाक से सरकार के विरोधी को देशद्रोही कह देता है और जो भाजपा के साथ नहीं है उसे हिंदुस्तान विरोधी कह देता है। वे सब या तो बीमार हैं या तो लोकतंत्र को समझ नहीं पा रहे हैं या फिर राष्ट्रवाद की गलत परिभाषा समझ बैठे हैं।
मैं उन्हें आतंकवादी नहीं कहूंगा लेकिन हां, इसके लेवल से ऊपर जब बंदूक थामने, हत्या करने जैसी मंशा किसी भी विचार के प्रभाव में आती हैं, तो बेहिचक उन्हें आतंकवादी ही कहेंगे।
यह पोस्ट और मेरा लेख बहस, विमर्श और तर्क करने वाले लोगों को स्थान देगी। बेहुदा कमेंट और व्यक्तिगत कमेंट से आप खुद को बीमार मत साबित कीजियेगा।