5 जनवरी की रात JNU में कुछ नकाबपोश गुंडे-मवालियों द्वारा हमला किया जाता है। इस हमले को हिंदुत्ववादी विचारधारा जिसे कहीं ना कहीं सत्ता पर काबिज़ राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन प्राप्त है, उनके द्वारा ही अंजाम तक पहुंचाया गया होगा। जिस राजनीतिक दल की तरफ इशारा है, उस इशारे का कारण सत्ता दल के कुछ नेताओं द्वारा एक के बाद एक दिए गए विवादस्पद बयान हैं।
यह हमला असल में JNU पर नहीं है, बल्कि यह तो मुल्क की मेहनकश आवाम की लड़ाई लड़ने वालों से लेकर, जल-जंगल-ज़मीन को लूटने वाले लुटेरे पुंजीपतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों पर है। क्या यह हमला शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार पर सरकार से सवाल पूछने का परिणाम नहीं है? क्या यह हमला मुल्क के संविधान पर नहीं है?
इस हमले के पीछे हिंदुत्ववादी ताकतें ही नहीं, बल्कि इस हमले में सत्ता का विशेष अंग यानी दिल्ली पुलिस भी हमलावरों के साथ खड़ी प्रतीत होती है। ये आंतकवादी गिरोह आज़ादी के दौर से ही देशहित के खिलाफ होने वाली गतिविधियों में संलिप्त रहा है।
अब सवाल जायज़ है कि क्या ये संगठन लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने के बजाए हिटलर-मुसोलिनी की फासीवादी विचारधारा में विश्वास रखता है? आज़ादी की लड़ाई में वे अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के बजाए अंग्रेज़ सरकार की नीति “फुट डालो-राज करो” के लिए काम करते रहे। इतिहास इनके माफीनामों और क्रांतिकारियों के खिलाफ मुखबरी व गवाहियों से भरा पड़ा है।
योगेंद्र यादव पर भी हमला हुआ
नकाबपोश दस्ते ने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स और टीचर्स पर हमला किया। यही नहीं, स्वराज इंडिया के संस्थापक व प्रोफेसर योगेंद्र यादव जब इस हमले का विरोध करने गए, तो उन पर भी हमला किया गया।
यहां तक कि घायल स्टूडेंट्स को अस्पताल ले जाने वाली एम्बुलेंस पर भी इन्होंने हमला किया। अस्पताल में एडमिट घायलों से मिलने वालों पर भी हमला किया गया। ऐसा इसलिए है क्योंकि ABVP को सत्ता से समर्थन मिल रहा है। चाहे भले ही इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है कि हमला ABVP वालों ने किया था या नहीं, मगर चीज़ें सभी को समझ आती हैं।
गौरतलब है कि शुक्रवार को दिल्ली पुलिस के PRO एमएस रंधावा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि हिंसा में बाहरी स्टूडेंट का हाथ होना मुश्किल है। पुलिस ने कहा कि JNUSU के सदस्यों ने पेरियार हॉस्टल पर हमला किया था।
प्रोटेस्ट से होगा क्या?
जिस रोज़ यह हमला हुआ उस रोज़ रात को ही स्टूडेंट्स ने सड़कों पर निकलकर विरोध प्रदर्शन किया। वहीं, दिल्ली में नागरिकों और स्टूडेंट्स ने सर्द रात में ही दिल्ली पुलिस मुख्यालय का घेराव करके साफ-साफ सत्ता को चेतावनी दी कि हम आपकी इस गुंडागर्दी से डरने वाले नहीं हैं।
यह रोष आवाम को रास्ता दिखाने का काम कर रहा है। इसी रोष से फासीवादी सत्ता डरी हुई है। अगर देश के आवाम को मुल्क बचाना है, तो इस संगठन के खिलाफ वैचारिक तौर पर मज़बूती से सामना करना होगा। इनके आंतकवादी हमलों का जवाब भगत सिंह के क्रांतिकारी रास्ते से देना होगा। यह तय है कि मुल्क बचाने के लिए हमें साझी लड़ाई लड़नी होगी।
संघ की विचारधारा से बचने की ज़रूरत
आरएसएस के इशारे पर देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या को नाथूराम गोडसे ने अंजाम दिया था। देश की अज़ादी के बाद जब देश का बंटवारा हुआ, उस दौरान देश में दंगे भी हुए। उन दंगों में इस संगठन के आतंकवादियों ने लाखों निर्दोष मासूम बच्चों, महिलाओं और पुरुषों की हत्या कर दी।
देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल और प्रधानमंत्री नेहरू ने इस संगठन को देश के लिए खतरा मानते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया था लेकिन इस संगठन की गतिविधियां निरन्तर जारी रहीं। हमें संघ की विचारधारा से बचने की ज़रूरत है।
ये संगठन कभी भी उन हमलों की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है, जो इसने किए। पूरे मुल्क में जहां भी मज़दूरों और किसानों ने अपने हकों के लिए संघर्ष किया, यह संगठन इनके संघर्ष के खिलाफ मालिकों के पक्ष में खड़ा रहा। इस संगठन को आज़ादी से अब तक लाखों निर्दोष लोगों की हत्याओं के लिए ज़िम्मेदार क्यों नहीं माना जाए?
पूरे मुल्क में जहां भी मुस्लिमों, आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों पर सवर्णों ने हमले किए, तब इस संगठन ने सवर्णों का साथ देना उचित समझा। 2014 में भाजपा के सत्ता में आते ही इस संगठन ने जगह-जगह अल्पसंख्यक मुस्लिमों को निशाना बनाया। इसके प्रमाण शायद ही कहीं मिले मगर “भारत माता की जय” के नाम पर हाथ में भगवा झंडा लेकर अगर किसी को पीटा जाए, तो इससे क्या संदेश जाएगा?