ऐसा कहा जाता है कि डॉक्टर, वकील और पुलिस से जितनी दूरी बनाई जाए जीवन उतना ही सरल रहता है। मगर देश के वर्तमान हालातों को देखते हुए यह संभव नहीं है। हालात आए दिन बद-से-बदतर होते जा रहे हैं, कहीं रेप हो रहा है, तो कहीं मर्डर, तो कहीं विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, ऐसी स्थिति में इन तीनों की ज़रूरत सबसे ज़्यादा पड़ रही है।
डॉक्टर और वकील अपना काम सही तरीके से कर रहे हैं लेकिन पुलिस और उनकी व्यवस्था पर इन दिनों काफी उंगलियां उठाई जा रही हैं।
2012 में दिल्ली के बाद पिछले साल हैदराबाद में बलात्कार की भयावह घटना हुई, जिसने पूरे देश का दिल दहला दिया और लोगों ने पुलिस पर तरह-तरह के कमेंट्स करने शुरू कर दिए।
वहीं जब पुलिस ने उस देश की बेटियों का इंसाफ करते हुए उन दोषियों को सज़ा-ए-मौत दी तब भी लोगों ने उनपर जमकर उंगलियां उठाईं। तब भी सभी ने पुलिस व्यवस्था पर खेद जताते हुए कहा ऐसा नहीं करना चाहिए था।
आखिर पुलिस को करना क्या चाहिए?
अब JNU, AMU और जामिया में जो हो रहा है, उसको लेकर भी पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठाए जा रहे हैं। तो, आपके हिसाब से आखिर पुलिस को क्या करना चाहिए? ये सवाल मैं पूछना चाहती हूं उन लोगों से, जो हर हालात में चाहे वे सही हो या गलत केवल पुलिस पर सवाल खड़े करते हैं।
सबसे पहला मुद्दा था CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) और NRC (नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर) को लेकर, जहां बवाल शुरू हुआ असम से लेकिन जामिया तक पहुंच गया। स्टूडेंट्स को पढ़ाई और पेपर छोड़कर देश की याद कैसे आई इस बारे में अभी तक किसी ने नहीं सोचा है?
वहां तोड़फोड़ की गई, जिसकी वजह से आम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। बसों में आग लगा दी गई, पत्रकारों पर हमाला किया गया और अगर इस बीच पुलिस ने बचाव किया तब उन पर उंगलियां खड़ी हो गईं।
जामिया की घटना में जो जामिया के स्टूडेंट्स नहीं थे, वे भी प्रदर्शन में अपनी भूमिका निभा रहे थे, वह किसी को नज़र नहीं आया। आया तो केवल इतना कि पुलिस ने स्टूडेंट्स पर हमाला क्यों किया?
उन स्टूडेंट्स का क्या जिन्होंने पुलिस पर पथराव किया? वे देशभक्त थे और पुलिस स्टूडेंट्स विरोधी? इससे ज़्यादा गिरी हुई मानसिकता और कुछ नहीं हो सकती है कि आप अपने देश के पीएम, सरकार और दिनरात आपकी मदद के लिए तत्पर रहने वालों पर भी उंगलियां उठाते रहें।
ऐसा ही कुछ हाल में JNU में देखने को मिल रहा है। मॉं-बाप बच्चों को घर से दूर इसलिए भेजते हैं, ताकि बेटा-बेटी पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़े हो सके, उनके लिए ना सही कम-से-कम खुद के लिए कुछ करने योग्य हो जाएं लेकिन पढ़ाई छोड़कर हर चीज़ करने का समय है JNU के इन स्टूडेंट्स के पास।
जामिया में पुलिस ने हर रोकथाम की कोशिश की, तब पुलिस गलत थी। अब जब पुलिस ने पहल नहीं की, तब भी पुलिस ही गलत है। अब जनता जज है, जो पुलिस को फैसला सुनाए कि आप हर हाल में गलत हैं। मुझे नहीं पता इन स्टूडेंट्स और बुद्धिजीवियों की नज़रों में अपने ही देश की सरकार और पुलिस क्यों गलत है?
मेरी दोस्त को दिल्ली और यूपी पुलिस का मिला था पूरा सहयोग
अगर आप मुझसे पूछें तो मेरा अभी तो कोई मामला सामने आया नहीं है, जहां मुझे पुलिस की ज़रूरत पड़ी हो। हां, मेरी एक दोस्त के साथ कुछ ऐसा हुआ था कि उसको पुलिस की ज़रूरत थी और उसको दिल्ली, यूपी पुलिस की तरफ से पूरा सहयोग मिला था और मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि आगे भी ऐसा ही बना रहेगा।
मुझे ऐसा लगता भी है कि एक बार बिना पुलिस व्यवस्था के कोई भी राजनीतिक पार्टी यह देश नहीं चला चला सकती है, इसलिए मुझे पुलिस व्यवस्था पर पूरा भरोसा है।