उत्तरप्रदेश स्थित इटावा के जेपी सिमेंट में बड़े मामा जी की जब नौकरी लगी थी, तब मैं आठवीं क्लास में था। सालाना परीक्षा से मुक्ति पाकर जब इटावा जाने का कार्यक्रम बना, तो मामा जी ने फोन पर कहा,
आ रहे हो तो एसिड की एक-दो बोतल बढ़िया से पैक कराकर रख लेना।
मैं सोच रहा था कि मामा जी एसिड की बोतल क्यों मंगा रहे हैं? यह तो कहीं भी उपलब्ध हो जाती है। उन दिनों हार्पिक, लायज़ॉल आदि का नाम-ओ-निशान मार्केट में कोई नहीं जानता था। इटावा स्टेशन में उतरने तक मेरे दिमाग में यही बात गूंज रही थी।
घर पहुंचते ही मैंने मामा जी से सबसे पहले यही पूछा, “मामाजी, आपने एसिड की बोतल क्यों मगवाई?” मामा जी ने कहा, “लाए हो, तो निकालो।” मैंने उन्हें दो बोतल पकड़ाई जो बहुत ही एहतियात से पैक की गई थी।
मैंने जाना कि लड़कियों पर एसिड अटैक होता है
पैकिंग खोलते समय हल्की चूक से थोड़ा एसिड फर्श पर गिर गया। जहां एसिड गिरा, वहां झाग बना और फर्श का उतना हिस्सा जल गया। फर्श साफ करते हुए मामा जी ने बताया कि मनचले लड़के एसिड का इस्तेमाल लड़कियों के चेहरे पर फेंकने के लिए करते हैं।
लड़कियों पर एसिड अटैक की सबसे अधिक घटना उत्तरप्रदेश में होती है। इसलिए उत्तरप्रदेश में नियंत्रण रखने के लिए एसिड खरीदना-बेचना दोनों गुनाह है। मैं इस बात से ही सिहर गया कि कोई किसी के चेहरे पर एसिड डालने वाला अमानवीय कार्य कर कैसे सकता है?
भारत में हर साल एसिड अटैक की कितनी घटनाएं होती हैं?
बहरहाल, एसिड अटैक के विषय में भारतीय समाज की सच्चाई यह है कि भारत में हर साल करीब 1000 एसिड अटैक की घटनाएं होती हैं। सुप्रीम कोर्ट के तमाम प्रतिबंधों के बावजूद एसिड कम कीमतों पर दुकानों में आसानी से मिल जाते हैं।
दुनियाभर में एसिड अटैक की ज़्यादातर घटनाएं महिलाओं के साथ होती हैं। लंदन स्थित समाजसेवी संस्था एसिड सर्वाइवर ट्रस्ट इंटरनैशनल के अनुसार हर साल दुनिया भर में करीब 1,500 लोगों पर तेज़ाब के हमले होते हैं।
एसिड अटैक सर्वाइवर के जीवन संघर्ष की सच्ची कहानी है छपाक
एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन संघर्ष पर आधारित दीपिका पादुकोण की फिल्म “छपाक” रिलीज़ हो चुकी है। लक्ष्मी अग्रवाल स्वयं भी एसिड अटैक सर्वाइवर रही हैं, वह एसिड के खरीदने-बेचने पर सख्ती करवाने हेतु संघर्ष करती रही हैं।
एसिड अटैक के मुद्दे पर बनी छपाक भारत की ऐसी फिल्म है, जो रोज़-रोज़ नहीं बना करती हैं। लक्ष्मी अग्रवाल ने 2013 में दायर PIL लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में एसिड अटैक सर्वाइवर्स के मुफ्त इलाज के लिए सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष किया था।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा,
तेज़ाब हमले के शिकार लोगों को कम -से-कम तीन लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए। साथ ही सर्वाइवर के पुनर्वास का खर्च सरकार उठाए।
भारत में एसिड अटैक की घटनाएं जिस तरह से बढ़ रही हैं, उन्हें देखते हुए सरकार को चाहिए कि “छपाक” फिल्म पूरे भारत में टैक्स फ्री कर दिया जाए, ताकि एसिड अटैक से सर्वाइव करने वाली महिलाओं को दुनिया और समाज से लड़ने का हौसला मिले। साथ ही इलाज कराने के लिए सरकार से आर्थिक सहायता भी मिल सके।
छपाक फिल्म की अभिनेत्री दीपिका का JNU जाना
“छपाक” फिल्म की अभिनेत्री JNU में हुई घटना के बाद अपनी संवेदना अभिव्यक्त करने वहां उस वक्त पहुंचीं, जब पूर्व JNU छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार आज़ादी के नारे लगा रहे थे। मीडिया में “छपाक” को लेकर #बायकॉटछपाक और #हमदेखेंगेछपाक ट्रेंड करने लगा।
काँग्रेस शासित राज्यों ने “छपाक” फिल्म पर राजनीतिक माइलेज लेने के लिए फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग कर दी। एसिड अटैक की घटनाओं पर वे सच में कितने संवेदनशील हैं, इसकी पोल तो इन राज्यों में एसिड अटैक की घटनाओं से ही हो सकती है। हालांकि “छपाक” के बहिष्कार को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने कदम पीछे हटा लिए हैं।
प्रकाश जावड़ेकर ने कहा,
भारत का स्वतंत्र नागरिक होने के नाते दीपिका पादुकोण कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं। सिर्फ कलाकार ही नहीं, बल्कि हिंदुस्तान का हर स्वतंत्र नागरिक कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र है। हम उनकी फिल्म के बहिष्कार का समर्थन नहीं करते हैं। यह हमारी संस्कृति के खिलाफ नहीं है।
हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक अपने शासित राज्यों में इस फिल्म को टैक्स फ्री नहीं किया है।
पूरे भारत को देखनी चाहिए “छपाक”
फिल्म को पूरे भारत के लोगों को देखनी चाहिए, क्योंकि आप बायकॉट करने के चक्कर में दुनिया के कुछ सबसे जुझारू लोगों के संघर्ष और सफलता को सम्मान देने से चूक जाएंगे।
भारतीय समाज को ज़रूरत इस बात की है कि अपने राष्ट्रवाद की तयशुदा परिभाषा से बाहर निकलकर देश की उन महिलाओं के सम्मान में संवेदना व्यक्त करें, जिनके संघर्ष और सफलता का सम्मान पूरी दुनिया कर रही है।
छपाक फिल्म से मुंह मोड़ना यानी समाज के उस सच से मुंह मोड़ना है, जो देश की करोड़ों महिलाओं के प्रति समाज के एक बड़े हिस्से की सोच और उस सोच से उनके हर दिन के संघर्ष को दिखाता है। अगर सिर्फ इस फिल्म का बायकॉट केवल दीपिका के नाम पर करना है, तो तय है कि तेज़ाब समाज पर नहीं बल्कि आपकी सोच पर पसर गया है।