स्वतंत्रता पश्चात भारत की आज़ादी को असल मुहर तब लगी, जब 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ। हर वर्ष पूरा भारत इस यादगार दिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में बड़े धूमधाम से मनाता है। मनाए भी क्यों नहीं, आखिर उस दिन भारत को गणतंत्र के रूप में स्वीकृति मिली थी।
तो भारत इस 26 जनवरी को अपना 71वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रह है। एक रोज़ पहले से ही देशभक्ति का आलम सर चढ़कर बोलने लगेगा। यही नहीं, संविधान पर एक से बढ़कर एक भाषण होंगे मगर भाषणों का असर किस पर कितना होगा, यह सवाल है? यह सवाल इसलिए है कि आए दिन कहीं ना कहीं से संविधान जलाने से लेकर उसके अपमान के मामले आते रहते हैं।
संस्कृतियों के संगम से उपजा भाईचारा संविधान की रीढ़ है
माइनोरिटी कम्युनिटी से होने के नाते मैं इस गणतंत्र दिवस पर अपने समाज की बात रखना चाहूंगा। देश जानता है कि गुज़रे कुछ सालों में देश का अल्पसंख्यक वर्ग खौफ की स्थिति में जी रहा है। आज के इन हालातों में यह समझना होगा कि हम देशवासी गणतंत्र दिवस के आलावा साल के 365 दिनों में आखिर कितने दिन संविधान की बात करते हैं? साल में सिर्फ एक दिन संविधान पर बात करने से हम देशवासी देश के प्रति कैसे और कितने ईमानदार साबित हो सकते हैं?
बस यहीं से एक आपराधिक मानसिकता का दीमक देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को खोखला करने में लग जाता है। संविधान के कर्तव्य पथ के प्रति ईमानदार नहीं रहना ही इसका मुख्य कारण है।
अब सवाल उठता है कि संविधान को लेकर मुझे क्यों ऐसा कहना पड़ रहा है? इस देश की दो सबसे बड़ी खूबियों में एक नंबर पर संविधान है, तो दूसरे नंबर पर विभिन्न संस्कृति के संगम से उपजा भाईचारा है, जो सम्पूर्ण विश्व के लिए मिसाल है।
नहीं होती लिंचिंग जैसी घटनाएं, यदि हम संविधान के प्रति ईमानदार होते
अखलाक से लेकर सुबोध सिंह तक हुई एक के बाद एक मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर नज़र डालिए, हर एक दिल दहला देने वाली घटना आपकी सोच पर सवाल खड़े करती है। लिंचिंग की हर घटना संविधान के प्रति आपकी समझ पर सवाल खड़े करती है।
चलो मान लिया जाए कि लिंचिंग एक ऐसा अपराध है, जो जज़्बात में आकर भेद अंजाम दे जाती है। ज़ाहिर सी बात है कि भीड़ में हम भारतीय ही हैं। सवाल यह है कि ऐसी भीड़ जज़्बाती होती क्यों हैं? ऐसे जज़्बात का तूफान आता कहां से है? ज़ाहिर है कि लिंचिंग करने वाले कम पढ़े-लिखे होते हैं, जो कुछ पल के लिए संविधान से गाफिल हो जाते हैं।
संविधान से क्यों गाफिल हो जाते हैं लिंचिंग करने वाले? क्योंकि इन कम पढ़े-लिखे लोगों को देश के चंद सूट-बूट लेकिन खुद को बुद्धिजीवी जताने वाले पत्रकार टीवी पर रात दिन हिन्दू-मुस्लिम की बहस में उलझाए रखते हैं। यहीं से लिंचिंग जैसे घिनौने अपराध का अंकुर जज़्बात की अफीम में तब्दील हो जाता है और जब तक जज़्बात की अफीम का नशा उतरता है, देश में एक नई लिंचिंग हो जाती है।
लिंचिंग एक दरार पैदा कर रही है, जो संविधान के प्रति बढ़ती गफलत को ही साबित करती है। यहीं से अल्पसंख्यकों में असुरक्षा घर कर रही है। संविधान पर जब सारे देशवासी चलने लगेंगे, तब जाकर 26 जनवरी को मनाए जाने वाले गणतंत्र दिवस की महानता के प्रति हम ईमानदार बनेंगे। मेरे लिए गणतंत्र दिवस की सार्थकता तभी होगी, जब लिंचिंग जैसी घटनाएं बंद होंगी।