इस बार 26 जनवरी को हमने अपना 71वां गणतंत्र दिवस मनाया। 71 साल के गणतंत्र का मतलब है कि हमें प्राप्त हमारे अधिकार और संविधान भी 71 साल के हो गए हैं। इस गणतंत्र दिवस को गत वर्षों की भांति ही बड़े धूमधाम से मनाया भी गया।
देश के लिए ऐतिहासिक दिन है 26 जनवरी
विदित हो कि 26 जनवरी का दिन वास्तव में बड़ा ऐतिहासिक दिन है, इस दिन को ही पहली बार 1930 में ‘पूर्ण स्वराज’ अर्थात दमनकारी सत्ता से मुक्ति के दिवस के रूप में मनाया गया। इस प्रकार हज़ारों वर्ष के शोषणकारी, असमानतावादी व्यवस्था को फेयरवेल देकर नए संविधानवादी, मानव मूल्य आधारित मानवतावादी समाज व्यवस्था और राष्ट्र राज्य की नींव रखी गई।
सभी नागरिकों को सात सूत्रीय मौलिक अधिकारों (हालांकि अब 6 ही है, संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकारों से बाहर कर दिया गया) के साथ ही उनके साथ सामाजिक और आर्थिक न्याय करने की बात कही गई।
“द आइडिया ऑफ इंडिया”
यहां कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि भारत की औपनिवेशिक गुलामी से आज़ादी के लिए संघर्षशील सभी योद्धाओं, विचारकों, नेताओं की सामूहिक अभिव्यक्ति “भारत के संविधान” के रूप में स्थापित की गई और इसी को हम भारत का विचार “द आइडिया ऑफ इंडिया” की संज्ञा समय-समय पर देते रहते हैं।
हालांकि हमेशा से देश में ज़रूर एक ऐसा गुट रहा है, जिसे यह साझा संस्कृति और साझा वैधानिक नियम कभी भी रास नहीं आएं, यह उस समय भी द्वि-राष्ट्र सिद्धांत, नस्लीय-धार्मिक-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मनुवादी कानून कायदे की बात गाहे-बगाहे किया करते थे और दुर्भाग्यवश आज वही लोग सत्तासीन भी हैं। खैर छोड़िए, यह सब लौट आइए।
क्या 70 वर्ष बाद भी हम आज़ादी और अधिकार, सामाजिक और आर्थिक न्याय, मान-सम्मान के लिए लड़ रहे हैं? इस खूबसूरत कहे जाने वाले संविधान के लागू हुए 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह सवाल जीवंत है और लगातार देश की सिविल सोसायटी द्वारा समय-समय पर उठाया जाता रहा है।
अब तो सवाल करना भी देशद्रोह है
हालांकि अब तो सवाल करना भी कथित तौर पर देशद्रोह के ज़ुर्म के समतुल्य घोषित किया जा रहा है लेकिन फिर भी मेरे हिसाब से “आपका भारत कैसा हो?” यह सवाल सिर्फ एक गणतंत्र दिवस के दिन ही नहीं बल्कि यह सवाल और ख्याल हमारे अंदर रोज़ उमड़ना चाहिए।
एक मज़बूत देश बनाने के लिए बुलंद आवाज़ में सवाल ज़रूर पूछे जाने चाहिए-
यह कैसी आज़ादी है, जहां सवाल पूछना कथित देशद्रोह घोषित किया जा रहा हो, लगातार दलितों और अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न और लिंचिंग, लूटपाट-भ्रष्टाचार, बलात्कार, नरसंहार, महंगाई, बेरोज़गारी, आर्थिक असमानता घोर-चरम पर हो, अर्थव्यवस्था चरमरा गई हो और इन सब नाकामियों को छिपाने के लिए नागरिकता संशोधन कानून, NPR, NRC का बखेड़ा खड़ा करके नागरिकों को उलझा देना और उस पर भी सवाल पूछने वालों पर देशद्रोह का ठप्पा लगा देना सही मायनों में आइडिया ऑफ इंडिया के खिलाफ है।
जिस तरह से CAA विरोधी जन आंदोलनों को बर्बरता पूर्वक कुचला जा रहा है, वह गणतंत्र विरोधी है। ‘गणतंत्र’ का अर्थ सही मायनों में एक ऐसे राष्ट्र से है, जिसकी सत्ता जनसाधारण में समाहित हो। इस तरह यह दिन प्रचलित शासन पद्धति व व्यवस्था के आंकलन के पश्चात उसको सेलिब्रेट करने का दिन है। वह दिन है, जहां संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता और भारत भूमि में निहित विश्वास की परीक्षा के परिणामों को आंकलन के पश्चात स्वीकार करें व आने वाले दिनों के लिए उद्देश्य तय करके उन्हें प्राप्त करें, जिससे राष्ट्र निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे।
अंत में बाबा नागार्जुन की कविता का एक अंश-
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बर्बादी है
ज़ोर-ज़ुल्म है, जेल-सेल है, वाह खूब आज़ादी है।