ज़ीरो कार्बन एमिशन का मतलब पूरी तरह से कार्बन का उत्सर्जन खत्म कर देना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि गाड़ियां चल रही हैं तो उन्हें बंद कर दीजिएगा। इसका मतलब है कि देश में जितना कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है, उतना ही ऑक्सीजन वातावरण में वापस भेजी जाए।
भारत कब तक ज़ीरो कार्बन एमिशन के लक्ष्य पर जाएगा इसका फिलहाल अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि, भारत में कुछ कस्बे कार्बन न्यूट्रल होने के लिए काफी कोशिश कर रहे हैं और केरल का मीनानगडी कस्बा भी इसी का एक उदहारण है, जहां स्थानीय प्रशासन कार्बन उत्सर्जन ज़ीरो करने के लिए काफी प्रयास कर रहा है।
इन्फोसिस इस मामले में काफी अच्छे प्रयास कर रही है और संयुक्त राष्ट्र ने कंपनी को जलवायु को लेकर किए गए बेहतर प्रयासों के लिए सम्मानित भी किया है।
वैश्विक स्तर पर बात की जाए तो स्वीडन ने 2045 तक देश को कार्बन न्यूट्रल करने का लक्ष्य तय किया है, जिसके लिए वह सार्वजनिक परिवहन पर काफी काम कर रहा है। फ्रांस, नॉर्वे, न्यूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम ने भी देश को 2050 तक कार्बन न्यूट्रल करने का लक्ष्य रखा है।
हवाई (अमेरिका) स्थित मौना लोवा ऑब्ज़र्वेटरी के मुताबिक,
- 1959 में वायुमंडल में कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा का वार्षिक औसत 315.97 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) था, जो कि 2018 में 92.55 अंक बढ़कर 408.52 पीपीएम पर पहुंच गया।
- यह स्तर मई, 2019 में वायुमंडल में कार्बन डायऑक्साइड का स्तर 415.26 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) पहुंच गया और मानव इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है।
- 2016 में कार्बन डायऑक्साइड का स्तर 400 पीपीएम जबकि 2017 में 410 पीपीएम था।
भारत पर कार्बन उत्सर्जन का असर
पृथ्वी के वायुमंडल में जिस तरह से कार्बन डायऑक्साइड बढ़ रही है वह पूरी दुनिया के लिए घातक है और इसका असर भारत पर भी पड़ेगा।दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश भारत है और दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहर भी भारत में ही हैं, जिनमें भारत की राजधानी नई दिल्ली भी शामिल है।
सेंटर फॉर साइंस के अध्ययन के मुताबिक,
- 20वीं सदी की शुरुआत के बाद से भारत के वार्षिक औसत तापमान में लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है।
- अनुमान के मुताबिक, 2050 तक भारत का तापमान 1-4°C तक बढ़ सकता है, जिसका सबसे अधिक प्रभाव किसानों पर पड़ेगा।
जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से बात की जाए तो भारत इसके प्रति काफी संवेदनशील है। ग्लेशियर पिघलने और समुद्री जलस्तर बढ़ने का सीधा प्रभाव भारत के तटीय शहरों पर पड़ेगा।
भारत कार्बन उत्सर्जन से निपटने के लिए क्या प्रयास कर रहा है और पेरिस जलवायु समझौता क्या है, क्या भारत जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर वैश्विक नेता बन रहा है? भारत किस तरह से कोयला संचालित ऊर्जा संयंत्रों को कम करेगा? ये सवाल सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं जिन्हें समझना बहुत ज़रूरी है।
कार्बन उत्सर्जन और प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के मामले में भारत की क्या स्थिति है?
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी वैश्विक ऊर्जा और कार्बन डायऑक्साइड स्थिति रिपोर्ट के अनुसार,
- भारत ने 2018 में 2,299 मिलियन टन कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन किया, जो 2017 की तुलना में 4.8% (105 मिलियन टन) अधिक है। भारत का कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन, ऊर्जा खपत करने वाले अन्य देशों के मुकाबले तेज़ी से बढ़ रहा है।
- 2018 में ऊर्जा की बहुत अधिक मांग के कारण वैश्विक स्तर पर कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन 2017 के मुकाबले 1.7% बढ़कर रिकॉर्ड स्तर पर 33.1 गीगा टन हो गया।
- 2018 में जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि हुई और उत्सर्जन बढ़ोतरी के 2/3 हिस्से के लिए ऊर्जा क्षेत्र ज़िम्मेदार रहा।
- ऊर्जा के क्षेत्र में कोयले का इस्तेमाल 10 गीगा टन पार कर गया, जिसमें सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी एशियाई देशों की रही।
- 2018 में ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की बढ़ोतरी के 85% हिस्से के लिए भारत, चीन और अमेरिका ज़िम्मेदार रहें, जबकि जर्मनी, जापान, मेक्सिको, फ्रांस और ब्रिटेन का कार्बन उत्सर्जन घट गया।
- 2018 में भारत की उत्सर्जन वृद्धि दुनिया में दो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों अमेरिका और चीन की तुलना में अधिक थी। इसका मुख्य कारण कोयले की खपत में वृद्धि बताया गया है।
- अगर 2018 में कार्बन डायऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में भारत के अलावा अन्य देशों की बात की जाए तो 2017 के मुकाबले चीन और अमेरिका में कार्बन बढ़ोतरी दर क्रमश: 3.1% और 2.7% रही।
भारत की सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन दर के बावजूद प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन वैश्विक औसत 40% से नीचे रहा और भारत का कुल कार्बन उत्सर्जन (एब्सेल्यूट टर्म) भी अमेरिका व चीन से कम रहा। हालांकि, 2018 में वैश्विक स्तर पर हुए कार्बन डायऑक्साइड गैस के उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी केवल 7% थी जबकि अमेरिका की 14% रही।
क्या है पेरिस जलवायु समझौता और भारत का इस लिहाज़ से कैसा है प्रदर्शन?
पेरिस जलवायु समझौते का मतलब, दुनिया में हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है, ताकि इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान वृद्धि को प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके और वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक ना बढ़े।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक,
- वर्तमान में ईयू और 186 देशों ने पेरिस समझौते को रेक्टिफाई कर दिया है और इस संधि पर कुल 196 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं।
- इस समझौते से अमेरिका बाहर निकल चुका है, जबकि वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है।
- पेरिस संधि के लक्ष्यों के तहत हर एक हस्ताक्षरकर्ता देश को हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे।
भारत ने इस समझौते पर 2016 में हस्ताक्षर किया था
भारत ने कार्बन कटौती के निर्धारित (INDC) में ‘उत्सर्जन की तीव्रता’ {जीडीपी (प्रति इकाई जीडीपी के मुकाबले ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन) के आधार पर} को 30%-35% तक कम करने का प्रण लिया है और 2030 तक अतिरिक्त वन व वृक्ष क्षेत्र बढ़ाने के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन CO2 के बराबर अतिरिक्त कार्बन ह्रास सृजित करना (एक तरह से कार्बन न्यूट्रल करना) का लक्ष्य निर्धारित किया है।
भारत ने यह भी कहा है कि वह 40% बिजली का उत्पादन गैर-जीवाश्म ईंधनों से करेगा और देश में बिजली की मांग बढ़ती ही जा रही है। सेंट्रल इलेक्ट्रिकसिटी अथॉरिटी (सीईए) के मुताबिक,
- भारत की ऊर्जा क्षमता का करीब 37% हिस्सा गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से आता है तो इस लिहाज़ से 2030 के पेरिस समझौते (COP21) के प्रण को वह आसानी से पा लेगा।
- क्लाइमेट ऐक्शन ट्रेकर ने पेरिस जलवायु समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को लेकर कहा है कि भारत जिस तरह से वर्तमान में ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर है, उस लिहाज़ से इस सदी के अंत तक वह 2 डिग्री सेल्सियस तक के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा ना कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के।
नवंबर, 2019 में रिलीज़ हुई संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम की एमिशन्स गैप रिपोर्ट के मुताबिक,
भारत उन चुनिंदा देशों में है, जो नीति निर्धारण के माध्यम से पेरिस जलवायु समझौते के तहत तय किए गए लक्ष्यों को पाने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं।
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के उत्सर्जन भविष्य को लेकर कुछ अनिश्चितताएं भी हैं। सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि देश की अर्थव्यवस्था किन माध्यमों से आगे बढ़ेगी? क्या ये माध्यम कोल पावर प्लांट्स होंगे या कुछ और? हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2019 में पेरिस में कहा था कि 2030 तक के पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को भारत अगले डेढ़ साल में पूरे कर लेगा।
भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन कितना है और इस मामले में अन्य देशों का क्या हाल है?
चीन, अमेरिका और ईयू के बाद भारत ग्रीनहाउस गैस (GHGs) का उत्सर्जन करने वाला विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश है। इन सभी आंकड़ों के बावजूद, अगर दुनिया के औसत प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन से तुलना की जाए तो भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन औसत काफी कम है।
2015 में भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन की मात्रा 2.7tCO2e थी, जो अमेरिका (20.4tCO2e) से 7 गुना कम और दुनिया के औसत 7.0tCO2e से आधी थी।
अगर इस मामले में अन्य देशों की बात की जाए तो इंडोनेशिया का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन 9.2tCO2e है, जबकि चीन का 9.0tCO2e, ईयू28 का 8.1tCO2e, ब्रिटेन का 7.8tCO2e और ब्राज़ील का 5.6tCO2e है।
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