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“हाथ में धारदार हथियार लेकर नकाबपोश गुंडे आखिर JNU में कैसे घुस गए?”

जेएनयू में हिंसा

जेएनयू में हिंसा

दिल्ली के ठंडे मौसम के मिजाज़ को नकाबपोश अपराधियों ने गरमा दिया है। जिस संस्थान से विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री जैसे होनहार स्टूडेंट्स आज देश के अहम पदों पर काबिज़ हैं, उसी संस्थान की लहूलुहान तस्वीरें भारत का मुस्तकबिल लिखने को तैयार हैं।

इन महान विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के अभिभावकों को ये तस्वीरें ध्यान से देखनी चाहिए। नकाब की आड़ में जान लेने पर उतारू कहीं उनके बच्चे तो नहीं हैं? आखिर कहां चूक हुई कि इतनी नफरत की मॉकटेल स्टूडेट्स को परोसी जा रही है?

क्यों खामोश थी दिल्ली पुलिस?

दिल्ली पुलिस हमेशा की तरह इस बार भी सवालों के घेरे में है। कैंपस के अंदर बने मैदान-ए-जंग के बीच मुख्य दरवाज़े के पास मूकदर्शक बनी पुलिस किसका इंतज़ार कर रही थी? हिंसा कवर कर रहे मीडियाकर्मियों और समाजसेवियों को पीटा जा रहा था। तरह-तरह की भद्दी-भद्दी गालियां दी जा रही थीं। ऐसे नारे का उपयोग हो रहा है जिसके सुनते ही कानों से खून निकलने लगें।

हिंसा से जुड़ा एक वीडियो सामने आता है जिसमें मौजूदा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्र संघ अध्यक्ष आयशी घोष के सर से खून निकल रहा होता है और वह बोलने तक की स्थिति में नहीं होती हैं। पीछे से एक आवाज़ आती है, “ठीक है बाद में बात कर लेना जाओ अभी।”

हिंसा करने वाले धारदार हथियार लेकर सड़कों पर घूम रहे थे

नकाब पहनकर जेएनयू में हिंसा करते स्टूडेंट्स। फोटो  साभार- सोशल मीडिया

अगर बात करने से बात बन जाती तो स्थिति इतनी हिंसक नहीं होती। मौजूदा छात्रसंघ कह रही है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने इस घटना को अंजाम दिया है। वहीं, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा AFSI, AISA और DSF से जुड़े छात्रों पर आरोप लगाया जा रहा है। इसी बीच कुल 20 स्टूडेंट्स समेत कुछ शिक्षकों को एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया है।

हिंसा के बाद छात्रों के गुट की भीड़ को आराम से हाथों में धारदार हथियार लिए दिल्ली की सड़कों पर चलते देखा जाता जा रहा था। 11 सेकेंड के इस वीडियो में आवाज़ आती है, “निकल लो, निकल लो।” बड़ा सवाल यह भी है कि नकाबपोश गुंडे आखिर JNU में घूस कैसे गए?

आप और हम आखिर कब तक हिंसा के बाद ऐसे लोगों को निकलने की सलाह देते रहेंगे? जेएनयू के बाद और कितने से विश्वविद्यालयों से स्टूडेंट्स के भेष में आए हमलावरों को निकलने की सलाह देंगे?

पिछले कुछ महीनों में हो रही घटनाओं ने शायद दिल्ली को यह सब झेलने की आदत लगा दी है। मेट्रो स्टेशन बंद कर स्टूडेंट्स को रोकने और पुलिस मुख्यालय के बाहर धरना देना जैसे आम बात हो गई है।

118 सालों की रिकॉर्ड तोड़ ठंड के बाद ऐसे हमलों में दिल्ली की हवा में गरमाहट आई है। इतनी गर्माहट से घुटन महसूस होने लगी है, जिससे बचने के लिए नकाबपोश नौजवान धारदार हथियार लिए हिंदुस्तान का मुस्तकबिल लिखने के लिए तैयार खड़े हैं।

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