गणतंत्र दिवस, यह वो दिन है जिसने आज़ाद भारत की एक नींव में पहली ईंट का काम किया। इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) 1935 को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था।
इसके लिए 26 जनवरी के दिन को इसलिए चुना गया था, क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। भारत ने अपना पहला गणतंत्र दिवस 1950 में मनाया था।
देश के हालात चिंताजनक
गणतंत्र का मतलब है कि एक ऐसी व्यवस्था, जिसमें लोगों का शासन हो मगर क्या सच में हम उन सभी मापदंडों को पा सके हैं, जो हमने 71 साल पहले तय किए थे? बेहतर देश, अच्छी राज्य व्यवस्था, अच्छा कानून? शिक्षा के बेहतर इंतज़ाम? बेहतर रोज़गार व्यवस्था?
महिलाओं के लिए बेहतर सुरक्षा व्यवस्था? इतने सारे मुद्दे हैं, जिन पर हम बात कर सकते हैं। आज कल देश के हालात बता रहे हैं कि राज व्यवस्था के हालात क्या हैं। JNU और जामिया के हालात भी बता चुके हैं कि कानून व्यवस्था कैसी है।
हक के लिए बैठीं शाहीन बाग की महिलाओं की आज़ादी कहां है?
पिछले वर्ष के आकंड़े बता रहे हैं कि बेरोज़गारी के कारण किस हद तक आत्महत्याएं हुईं। शाहीन बाग की औरतें, जो अपने हक के लिए बैठी हैं, ये बताती हैं कि महिलाओं के क्या हालात हैं देश में।
पिछले दिनों उन्हीं औरतों को सोशल मीडिया ने यह कहकर बदनाम किया है कि 700 रुपये देकर भीड़ में इकट्ठी की गई हैं। ये हालात है देश में औरतों की!
मैं जब से समझने लायक हुई हूं, तब से बेहतरीन देश और बेहतरीन हालात की उम्मीद की है। ऐसा देश जिसमें औरतें खुलकर सांस ले पाएं। क्या सच में भारत वैसा गणतांत्रिक देश है? नहीं, नहीं है। भारत वह देश है, जहां औरतें सुरक्षित हैं। आसिफा याद है आपको? उन्नाव रेप केस याद है? कठुआ रेप केस? निर्भया रेप केस?
विज़न 2020 कहां है?
हमें मेक इन इंडिया के ख्वाब दिखाए थे। याद है आपको? चंद साल पहले विज़न 2020 के ख्वाब दिखाए थे। देखिए 2020 में हम कहां खड़े हैं। जिस 26 जनवरी पर हम गीता और संजय चौपड़ा जैसे बहादुरी के पुरस्कार देते हैं, उसी 26 जनवरी पर हम निर्भया को इंसाफ भी नहीं दिला पाए।
देश अब भी रंगा बिल्ला और सेंगर जैसों के आतंक में गिरफ्तार है। क्या ऐसा तन्त्र चाहा था हमने? एक औरत होने के नाते अगर बात करूं तो देश को महज़ महिला दिवस पर इक्कठा करके भाषण देने की बजाय उन तक पहुंचिए, जिन्हें एक सिरे से जरूरत है आपकी।
सोचिए जो आपका भाषण सुनने आ जाती हैं, वे कहीं ना कहीं जागरूकता के पहले पायदान पर खड़ी हैं। आपकी ज़रूरत उनको है, जो घर से निकलने की हिम्मत भी नहीं कर पा रही हैं या यूं कह लीजिए कि देश ने उनको ऐसा महौल दिया ही नहीं जिसमें वे हिम्मत करके निकल पाएं।
लचर व्यवस्था में हम कहां खड़े हैं?
कहां हैं हम? देश में खुले में बच्चे को स्तनपान कराने पर उसकी तौहीन है, पीरियड्स के मुद्दे पर बात करने की आज़ादी नहीं है। आज भी देश के अधिकांश सरकारी अस्पताल बिना व्यवस्था के लचर हैं। डिलीवरी के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
मेरे आस पास कितने ही केस ऐसे हैं, जिनमें जच्चा या बच्चा अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। कितनी ही महिलाएं आज भी माहवरी से होने वाली बीमारियों से जूझती नज़र आती हैं, जिनके लिए हम कुछ नहीं कर रहे हैं। पड़ताल करनी हो तो कभी पैड बदलने पब्लिक टॉयलेट हो आइए, वे या तो बंद होते हैं या उनमें सफाई ही नहीं होती है।
हमारे सामने विज़न 2020 के तहत आर्थिक रूप से विकसित और सामाजिक रूप से खुशहाल देश की कल्पना रखी गई थी। क्या हम हैं सामाजिक रूप से खुशहाल? बीते साल का हैदराबाद केस हमें बताकर गया है कि हम कितने सशक्त और खुशहाल हैं।
अगर आकड़े उठाकर देखें, तो हर रोज़ 92 महिलाओं के साथ रेप होता है। अगले गणतंत्र दिवस बस यही उम्मीद है कि हमें एक बेहतरीन भारत मिले।
बड़ी शर्म आती है, जब बहन की 7 साल की बेटी पूछती है, “मासी रेप क्यों करते हैं लोग?” सांस लेने और जीने की आज़ादी दीजिए, शासन बेशक जनता का ना हो मगर उज्जवल और सुरक्षित भारत का सपना हकीकत में बदलिए, क्योंकि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।’