भारत, हिंदुस्तान या फिर इंडिया, चाहे कितने ही नामों से आप अपने देश को बुला लीजिए, है तो यह अनमोल ही। राम, गौतम बुद्ध और बाबासाहेब से लेकर चंद्रशेखर आज़ाद के इस देश में अब तक बहुत कुछ बदला है।
यहां की आबोहवा बिल्कुल बदल चुकी है। 71वां ‘गणतंत्र दिवस’ कैसा हो? देश की ज़रूरतें क्या हैं, मैं बताने जा रहा हूं। जी हां, मेरे सपनों का भारत कैसा हो? यह लिख रहा हूं।
पौराणिक काल से सीखने की क्यों है ज़रूरत
रामायण में भगवान राम ने समुद्र पर सेतु बनाने से पहले समुद्र देव की 7 दिन तक पूजा की थी। कभी सोचा है क्यों भगवान ने पूजा की? वह तो साक्षात श्री हरि थे, उन्हें ऐसी क्या ज़रूरत पड़ी कि उन्हें पूजा करनी पड़ी समुंद्र की?
वो चाहते तो एक तीर से पूरे सागर को सुखाकर यूं ही लंका की ओर कूच कर देते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने समुद्र देव से प्रार्थना की कि आप हमें सेतु बनाने के लिए जगह दें, जिससे जलीय जीवन प्रभावित ना हों। उन्होंने समुद्र के नीचे बसे जलीय संसार की सोची।
इसी प्रकार से महाभारत में यक्ष ने युधिष्ठिर से जो पहला प्रश्न किया, वो यह था कि बताओ धरती से भारी क्या है? और आकाश से ऊंचा कौन है? इस पर उत्तर देते हुए युधिष्ठिर बोले, “धरती से भारी माँ है और आकाश से ऊंचा पिता हैं।”
इससे यह पता चलता है कि पौराणिक काल से ही धरती को माँ का दर्ज़ा दिया गया है। देव कथाओं में भी पृथ्वी के संरक्षण की बातें की गई हैं।
औद्योगिकरण के नाम पर पर्यावरण दोहन
तो क्या आज हम अपने ही आराध्यों की बात पर चल रहे हैं? नहीं, आज हम हर जगह गंदगी देखते हैं, विकास व औद्योगिकरण के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, पानी का स्तर शून्य तक पहुंचना, प्लास्टिक का धरती को जकड़ना, जनसंख्या विस्फोट, आदि।
चलिए इस 71वें गणतंत्र दिवस हम अपने मूलभूत अधिकारों को सही से प्रयोग करने की शपथ लें, संकल्प करें। आइए इसी संदर्भ में हम अपने कुछ अधिकारों की बात कर लेते हैं।
इन अधिकारों को नए तरीके से अपनाना होगा
राइट टू एजुकेशन- एजुकेशन अर्थात शिक्षा। शिक्षा ऐसी कि यदि कहीं हम घूमने जा रहे हैं, तो वहां की स्वच्छता बनाए रखें। शिक्षा ऐसी कि हर कार्य को अपना समझकर करें।
राइट टू इक्वलिटी- इक्वलिटी यानी समानता। समानता ऐसी कि यदि रास्ते में कहीं कुछ पड़ा है, तो हम उसे उठाकर कूड़ेदान में डालें। हम यह ना सोचें कि स्वच्छता केवल सफाईकर्मियों का कार्य है, बल्कि स्वच्छता हम सभी का संकल्प होना चाहिए।
राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलिजियन- धर्म के प्रति आज़ादी यानी हम ऐसे कार्य करें, जिससे हमारी धार्मिक मान्यताएं खंडित ना हों और हमारी प्रकृति भी बनी रहे। इस 71वें गणतंत्र दिवस हम यह शपथ लें कि जिस तरह मंदिर देखते ही घंटा देखते ही हमारे हाथ उठ जाते हैं, इसी प्रकार यदि कहीं पानी बह रहा हो, तो हमारे हाथ उस पानी को बचाने हेतु भी उठें।
राइट टू फ्रीडम- फ्रीडम यानी आज़ादी ऐसी कि हम खुलकर बिना डरे “जलवायु परिवर्तन” जैसे गंभीर मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद कर सकें।
इस बार इन संकल्पों को यदि हमने ले लिया, तो पर्यावरण संरक्षण की बात डंटे की चोट पर पूरे विश्व में की जा सकती है। नागरिकों को छोड़ सरकार भी इस 71वें राष्ट्रीय पर्व पर यह निश्चित करे कि अब फाइलों में नहीं, ज़मीन पर काम हो।
अर्थात कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए शीघ्र ही सकारात्मक कदम बढ़ाए। पवन ऊर्जा को बढ़ावा दें। मेरा ऐसा मानना है कि यदि इन बातों पर हमने गौर किया, तो हमारी संविधान की शपथ पूरी हो जाएगी।