9 दिसम्बर को जारी UNDP की रिपोर्ट के अनुसार मानव विकास सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन से भारत एक पायदान ऊपर 130 से 129 पर पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यानी कि यूएनडीपी की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2005-06 से 2015-16 के दौरान 27.1 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया।
क्या है UNDP
लगभग 170 देशों में गरीबी उन्मूलन और असमानता तथा बहिष्करण में कमी के लक्ष्य हासिल करने में मदद करने वाली संस्था का नाम UNDP है। वह देशों को नेतृत्व कौशल, भागीदारी की क्षमताएं, संस्थागत क्षमताएं और आपदा सहने की क्षमता विकसित करने में मदद करती है ताकि सतत विकास परिणाम हासिल हो सके।
UNDP भारत में
यूएनडीपी ने 1951 से मानवीय विकास के लगभग सभी क्षेत्रों में भारत में काम किया है। इनमें लोकतांत्रिक प्रशासन से लेकर गरीबी उन्मूलन, संवहनीय ऊर्जा और पर्यावरणीय प्रबंधन तक सब शामिल हैं। यूएनडीपी के कार्यक्रम राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप होते हैं। इनकी हर वर्ष समीक्षा करने के बाद इनमें फेरबदल किया जाता है।
UNDP ने भारत के किन-किन हिस्सों में काम किया?
कोई शक नहीं कि भारत की बेहतर हुई इस स्थिति को देखकर एक भारतीय होने के नाते सर गर्व से ऊंचा हुआ है। गर्व के इन लम्हों से जब हम बहार निकलते हैं, तो कुछ सवाल उठते हैं कि UNDP की यह रिपोर्ट आखिर कितनी साफ-सुथरी है? नहीं, बिलकुल नहीं, हम UNDP पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, सवाल तो इस बात पर है कि UNDP ने भारत के किन-किन हिस्सों में काम किया?
जानकारी के अनुसार UNDP ने भारत में गुवाहाटी, चंडीगढ़, भोपाल, मुंबई, नई दिल्ली और रांची में काम किया। अब बताइए कि इनमें किस शहर की स्थिति खराब है? इन नामों में झारखंड के चतरा, लातेहार जैसे नाम तो हैं नहीं, जिनके निवासियों की स्थिति वाकई बदतर है, जहां UNDP द्वारा काम करने की ज़रूरत है।
देश में गिनती के कुछ समाज को छोड़कर बचे सभी समाज की हालत चिंताजनक है, वह चाहे दलित हों, ट्राइबल हों या अल्पसंख्यक। बात अगर अल्पसंख्यकों की हो, तो मुस्लिम वर्ग सबसे दयनीय स्थिति में है।
भारत के मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन की हालत को जानने के लिए पूर्व जस्टिस राजेंद्र सच्चर के नेतृत्व में गठित कमेटी की रिपोर्ट देखिए। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर है।
सच्चर कमेटी द्वार दी गई 403 पेज की रिपोर्ट क्या कहती है?
एक बात पहले ही साफ कर देनी चाहिए कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई थी 2006 में, अभी 2020 चल रहा है। यानी लंबे अरसे में भी हालत नहीं बदले मुस्लिमों के। तो सच्चर कमेटी की रिपोर्ट स्वतंत्र भारत में पहली रिपोर्ट थी, जिसमें मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक हालात पर किसी सरकारी कमेटी द्वारा की गई पड़ताल को रिपोर्ट के रूप में संसद में पेश किय गया।
- मुस्लिम परिवारों और समुदायों के लिए तय फंड और सेवाएं उन इलाकों में भेज दी जाती हैं, जहां मुसलमानों की संख्या कम या ना के बराबर हैं।
- स्कूल, आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र, सस्ते राशन की दुकान, सड़क और पेयजल सुविधा जैसे संकेतकों के डाटा से ज़ाहिर होता है कि एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों की आबादी वाले गाँवों और आवासीय इलाकों में इन चीज़ों की काफी कमी है।
- मुस्लिम समुदाय को अनुसूचित जाति एवं जनजाति से पिछड़ा बताया गया।
- उस वक्त देश की प्रशासनिक सेवा में मुसलमानों की भागेदारी 3 फीसदी आईएएस और 4 फीसदी आईपीएस था। पुलिस बल में मुसलमानों की भागेदारी 7.63 फीसदी, रेलवे में केवल 4.5 फीसदी, जिनमें से 98.7 फीसदी निचले पदों पर हैं।
- सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्व सिर्फ 4.9 प्रतिशत बताया गया है।
- मुसलमानों की साक्षरता की दर भी राष्ट्रीय औसत से कम है।
मुस्लिम समाज की स्थिति सुधारने के लिए सच्चर कमेटी की अहम सिफारिशें
- शिक्षा: 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा उपलब्ध कराना, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सरकारी स्कूल खोलना, स्कॉलरशिप देना, मदरसों का आधुनिकीकरण करना आदि।
- रोज़गार: रोज़गार में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ाना, मदरसों को हायर सेकंडरी स्कूल बोर्ड से जोड़ने की व्यवस्था बनाना।
- ऋण सुविधा: प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के मुसलमानों को ऋण सुविधा उपलब्ध कराना और प्रोत्साहन देना, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में और बैंक शाखाएं खोलना, महिलाओं के लिए सूक्ष्म वित्त को प्रोत्साहित करना आदि।
- कौशल विकास- मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कौशल विकास के लिए आईटीआई और पॉलिटेक्निक संस्थान खोलना।
- वक्फ- वक्फ संपत्तियों आदि का बेहतर इस्तेमाल।
- विशेष क्षेत्र विकास की पहलें: गाँवों, शहरों और बस्तियों में मुसलमानों सहित सभी गरीबों को बुनियादी सुविधाएं, बेहतर सरकारी स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना। चुनाव क्षेत्र के परिसीमन प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना कि अल्पसंख्यक बहुल इलाकों को एससी के लिए आरक्षित ना किया जाए।
- सकारात्मक कार्यों के लिए उपाय: इक्वल अपॉर्च्युनिटी कमीशन, नैशनल डेटा बैंक और असेसमेंट और मॉनिटरी अथॉरिटी का गठन। मदरसों की डिग्री को डिफेंस, सिविल और बैंकिंग एग्ज़ाम के लिए मान्य करने की व्यवस्था करना।
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों को मिले विशेष अधिकार पर एक नज़र
ज्ञात हो कि भारतीय संविधान में धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को अनुच्छेद-29 और 30 में विशेष अधिकार दिए हैं।
अनुच्छेद 29 (1) के अनुसार किसी भी समुदाय के लोग, जो भारत के किसी राज्य मे रहते हैं या कोई क्षेत्र जिसकी अपनी आंचलकि भाषा, लिपि या संस्कृति हो, उस क्षेत्र को संरक्षित करने का उन्हें पूरा अधिकार होगा। ये प्रावधान जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत है ।
अनुच्छेद 30 (1) के तहत सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के आधार पर अपनी शैक्षिक संस्था को स्थापित करने का अधिकार है।
मदरसा शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए वित्तीय सहायता योजना
- यह योजना पूरी तरह स्वैच्छिक है। इसको वित्तीय सहायता केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त है ।
- इसमें शिक्षा विभाग द्वारा प्राचीन संस्थानों में गणित, अंग्रेज़ी, हिंदी आदि जैसे विषय लागू हैं।
- इस योजना को ग्रहण करना मदरसों की इच्छा पर निर्भर करता है ।
- इसका उद्देश्य प्राचीन संस्थानों जैसे मकतबा, मदरसों में आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता देना है।
- इस योजना से संबंधित जानकारी के लिए मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय (शिक्षा विभाग), नई दिल्ली से संपर्क करें।
अल्पसंख्यक समाज की मौजूदा स्थिति
भले ही हम भारतीय 130 से 129वें स्थान पर विराजमान होकर खुश हैं लेकिन सच बहुत कड़वा है। अगर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई, तो इसे लागू क्यों नहीं किया गया? मदरसा बोर्ड पर हर साल बेतहाशा पैसे खर्च किए जाते हैं, फिर भी आज तक कितने IAS, IPS, IIT, जुडीशियरी, डॉक्टर आदि मदरसे से पढ़कर निकले हैं?
क्या सरकार को इल्म नहीं? अगर मदरसे के बच्चे IAS, IPS, IIT, जुडीशियरी, डॉक्टर नहीं बन सकते, फिर पूरे देश में गली-गली खुले हुए मदरसों से क्या लाभ हो रहा है, क्या सरकार बताएगी?
सरकारी अधिकारी भले ही UNDP की रिपोर्ट पर इतरा रहे हों लेकिन सच यह है कि अल्पसंख्यक सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति पर पिछड़े हुए हैं। उनके पिछड़ेपन के लिए सामाजिक असमानता क्यों ज़िम्मेदार नहीं है, यह ना तो भारत की सरकार बताएगी और ना ही UNDP?
पिछले 5 सालों में लगातार हुई मॉब लिंचिंग की घटनाएं चीख चीखकर सवाल कर रही हैं कि एक धर्म विशेष के लोगों की भीड़ द्वारा हत्या सामाजिक असमानता क्यों नहीं है? किसी भी क्षेत्र में हुई मॉब लिंचिंग पर गौर तो कीजिए, साफ पता चलेगा कि उन क्षेत्रों का विकास 20 साल पीछे चला गया।
झारखंड में रघुवर सरकार द्वारा लाया गया मोमेंटम झारखंड क्यों फेल हुआ? क्यों निवेशक नहीं ला सकी भाजपा सरकार? दिमाग पर ज़ोर डालिए तो पता चलेगा कि झारखंड को भाजपा सरकार के दौरान लिंचिंग प्रदेश कहा जाने लगा, यह स्थिति क्यों उत्पन्न हुई? ज़ाहिर है सामाजिक असमानता के कारण। इसे UNDP ने अध्यन क्यों नहीं किया?
कोई शक नहीं कि “सबका साथ सबका विकास” का यह नारा कागज़ों तक सीमित रह गया। सरकार यदि धरातल पर इस नारे को उतारकर विश्व के सामने उदाहरण बनना चाहती है, तो उसे सामाजिक असमानता पर काम करना होगा। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर अमल करना होगा। मदरसों में शिक्षा का स्तर बदलना होगा ताकि वहां से भी IAS, IPS, IIT, जुडीशियरी, डॉक्टर से लेकर वैज्ञानिक की पौध निकलने लगे।