मध्याह्न भोजन (Mid Day Meal Scheme) केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजना है, जिसके तहत समय-समय पर सरकारों ने अपने हिस्से की वाहवाही लूटी। 15 अगस्त 1995 में स्थापित की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्टूडेंट्स में पोषण आहार की कमी को पूरी करना और उनके स्कूल छोड़ने के प्रतिशत को कम करना है।
योजना के तहत सरकार द्वारा संचालित प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूली बच्चों को मध्यान भोजन दिया जाता है। अगस्त 2019 से मध्यप्रदेश सरकार ने इसमें सरकारी अनुदान से चलने वाले मदरसों को भी शामिल किया है।
ऐसे बच्चे जो गरीबी और भुखमरी के लिए शिक्षा जैसे मूल अधिकारों को सरलता से छोड़ देते हैं, उन्हें बहुत हद तक मध्याह्न भोजन द्वारा शिक्षा की ओर आकर्षित किया गया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) इसका वार्षिक कार्यक्रम तय करता है, जिसका आंकड़ा राज्य सरकारें सर्व शिक्षा अभियान, नगरीय प्रशासन एवं विकास निदेशालय द्वारा एकत्रित करती हैं। इसे ज़िले में स्कूल स्तर पर, ब्लॉक रिसोर्स कॉर्डिनेटर (BRCs) और क्लस्टर रिसोर्स कॉर्डिनेटर (CRCs) द्वारा एकत्रित किया जाता है। इन आंकड़ों को मुख्य कार्यकारी अधिकारी, ज़िला पंचायत (CEO, ZP) द्वारा स्वीकृति दी जाती है।
राज्य, ज़िला और ब्लॉक स्तर पर इसकी प्रक्रिया अलग-अलग है, जिन्हें शहरी क्षेत्रों में NGO और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता केंद्र (SHGs) द्वारा संचालित किया जाता है।
मध्यप्रदेश में मध्याह्न भोजन के दावे खोखले साबित हो रहे हैं
मध्यप्रदेश के रायसेन ज़िले के गैरतगंज ब्लॉक के कुछ विद्यालयों में पहुचकर जब मैंने मिड डे मील योजना की हकीकत जानने की कोशिश की, तब कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। मध्यान भोजन बनाने और बांटने की प्रक्रिया तो वही हैं, जो अन्य स्कूलों में हैं मगर उनकी क्वालिटी बेहद निम्न है या यूं कहिए कि बस किसी तरह से खानापूर्ति की जा रही है।
कक्षा 8वीं की छात्रा रौशनी और मौसम से बात करने पर पता चला कि उनकी थालियों में भोजन पाया तो जाता है लेकिन उनमें स्वाद नदारद होता है। मध्याह्न भोजन की एक हकीकत यह भी है कि भोजन के चार्ट को बस निभाया जा रहा है। यदि दाल-सब्ज़ियों की यह स्थिति है, तो आप खीर और पुलाव की स्थिति के बारे में अंदाज़ा लगा सकते हैं।
मध्याह्न भोजन प्रक्रिया का एक चरण यह है कि भोजन तैयार होने के बाद सबसे पहले प्रधानाध्यापक और शिक्षक उसे चखेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि इसकी क्वालिटी ठीक है या नहीं, लेकिन जहां स्टूडेंट्स को ही दाल-सब्ज़ियां सीमित और स्वादहीन मिलती हों, वहां शिक्षकों से यह प्रश्न करना भी निरर्थक है।
ब्लॉक CEO से सम्पर्क करने पर उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से उत्तर ना देते हुए कहा कि आप प्रतिवेदन भेजिए हम एक्शन लेंगे।
सुदूर इलाके के स्कूलों की हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है
जब मुख्यधारा से जुड़े स्कूलों की ऐसी हालत है, तो पहुंच से दूर होने वाले संस्थानों में मध्याह्न भोजन की क्या हालत होगी! जहां एक ओर मध्याह्न भोजन की तस्वीरें स्टूडेंट्स को पोषित करती नज़र करती आती हैं, वहीं दूसरी ओर विद्यालय के रसोईघर के दरवाज़े के ठीक बाहर बहता नालीनुमा दृष्य आपको परेशान कर सकती है।
गौरतलब है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय, स्कूल एवं साक्षरता विभाग द्वारा राष्ट्रीय पोषण माह, किचन ऑर्गेनिक गार्डन और स्कूल न्यूट्रीशियन गार्डन जैसे प्रोग्राम के साथ-साथ रैलियां भी की जा रही हैं।
स्थानीय लोगों का क्या कहना है?
स्थानीय लोगों से जब इस विषय पर बात की गई, तो उनका कहना था कि हम इस वास्तविकता से पूरी तरह अवगत हैं। प्रशासन हमारे बच्चों के लिए जिन सुविधाओं का दावा करती है, उन्हें बहुत हद तक स्थानीय स्वयं सहायता समूह, अध्यक्ष और सचिवों द्वारा पचा लिया जाता है।
बहरहाल, एक तरफ हम उन्हें मध्याह्न भोजन उपलब्ध करवाकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर इस तरह के कृत्य हमारी असमर्थता और स्टूडेंट्स के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करती दिखाई पड़ रही है।
स्कूलों में गैस सिलेंडर के दावे भी फेल
हमने कई दफा इस तरह के दावे सुने हैं कि मध्यप्रदेश के मंदसौर और विदिशा में मध्याह्न भोजन पूरी तरह एलपीजी गैस द्वारा तैयार की जा रही है। वहीं, दूसरी ओर मध्याह्न भोजन सहायिकाओं से बात करने पर जानकारी मिली कि एलपीजी गैस सिलेंडर उपलब्ध है लेकिन गैस चूल्हे की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
प्रश्नचिन्ह्न लगा देने से प्रश्नों के निदान नहीं खोजे जा सकते हैं। मध्याह्न भोजन एक कारगर योजना है, जिसे बेहतर तरीके से चलाने की ज़रूरत है। हाल ही में दिल्ली के दो सरकारी स्कूलों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालय घोषित किए गए हैं।
स्वाभाविक है कि मध्याह्न भोजन भी इसका एक चरण होगा और यदि आप दिल्ली के सरकारी स्कूलों के आंकड़े और थाली देखेंगे, तो आप इसकी सफलता पर गर्वित हो सकते हैं लेकिन लगता है जैसे मध्यप्रदेश सरकार के लिए दिल्ली अभी दूर है।
नोट: सृष्टि तिवारी Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।