सेरेब्रल पाल्सी से लड़ रही बेटी की माँ होने के नाते मैं अकसर कई रिपोर्ट्स पढ़ती रहती हूं, ताकि विकलांगता के अधिकारों के बारे में लगातार जान सकूं। यूएन खुद 2030 तक एक महत्वपूर्ण एजेंडे पर काम कर रहा है जो कहता है, #LeaveNoOneBehind अर्थात ‘कोई भी पीछे ना छूटने पाए’।
इस एजेंडे के तहत विकलांग व्यक्ति का विकास भी शामिल है जो भारत जैसे देश के लिए एक महत्वकांक्षी लक्ष्य है। अगर हमारे देश की बात करें, तो यहां एक आम नागरिक को ही उसकी मूलभूत सुविधाएं मुहैया नहीं हो पाती है। ऐसे में विकलांग लोगों की बात करें तो उनके हक और उनके प्रति संवेदनशीलता आज भी दूर की कौड़ी है।
इसी फहरिस्त में 10 दिसंबर को मानव विकास रिपोर्ट भी जारी हुई जिसमें मैंने विकलांग व्यक्तियों के लिए बहुत कुछ पढ़ा लेकिन असल ज़मीनी सच्चाई महत्वकांक्षी लक्ष्यों से बहुत बड़ी है। इस बात को आप मेरे कुछ अनुभवों से शायद समझ सकें।
लोगों ने चेंजिंग टेबल का नाम तक नहीं सुना
कुछ वक्त पहले हम दिल्ली से देहरादून लौट रहे थे। यह दूसरी बार था जब मेरी बेटी आद्या इतना लम्बा सफर कार से कर रही थी। रास्ते में मिडवे नाम से कुछ नामी रेस्त्रां के आउटलेट्स हैं, हम वहां रुके। आद्या का डायपर लीक होने लगा था और हमारे ड्राइवर भैया अपना फोन कार में छोड़कर टहलने निकल गए थे।
मैंने रेस्त्रां के मैनेजर से पूछा कि क्या आपके रेस्ट-रूम्स में चेंजिंग टेबल है? उसे इस बारे में पता ही नहीं था। मैंने कहा कि बच्चे को चेंज करवाना है, तो कहता है कि यहीं दो चेयर पर लिटाकर करवा दीजिये। मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उसे कहा कि क्या आप सबके सामने चेंज कर सकते हैं? उसके पास नज़रें झुकाने के अलावा कोई जवाब नहीं था।
“विकलांग पार्क में आते ही कहां हैं”
आद्या को लेकर देहरादून के एक पार्क में गए। मुख्य द्वार तक ही कार जा सकती थी और उसके बाद काफी दूरी तक का रास्ता पथरीला था। इतना ऊबड़-खाबड़ कि प्रैम उसपर नहीं चल सकती थी। सिक्योरिटी ऑफिसर से पूछा कि विकलांगों के लिए क्या सुविधा है, तो उसका जवाब था कि विकलांग पार्क में आते ही कहां हैं।
इस तरह के वाकये हमें लगभग हर दिन झेलने होते हैं। मैंने देहरादून के लगभग सारे प्राइवेट और सरकारी स्कूल देखे हैं। किसी में भी व्हीलचेयर के लिए रैंप नहीं था। बड़े से बड़े होटल के वाशरूम्स में चेंजिंग टेबल नहीं होती।
ये उन बहुत सारे कारणों में से एक है कि आपको पार्कों और अन्य सार्वजानिक जगहों पर स्पेशल बच्चे बहुत कम दिखते हैं और जब हम जैसे माता-पिता हिम्मत करके अपने बच्चों के साथ बाहर निकलें भी तो आप सबकी दया भरी, प्रश्नवाचक नज़रें हमें असहज कर देती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार विकास हो रहा है
10 दिसंबर को UNDP द्वारा मानव विकास रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार, मानव विकास सूचकांक में भारत 189 देशों में एक स्थान ऊपर चढ़कर 130वें स्थान पर पहुंच गया है। आपको बता दूं कि 2016 में भारत का स्थान 131 था।
बड़ी खुशी की बात है कि विकास के मामले में हम आगे बढ़ रहे हैं लेकिन क्या हर एक हिस्से में विकास हो रहा है? मुझे विकलांग लोगों के लिए इस रिपोर्ट में कहीं कोई खास बात या एक्शन नज़र नहीं आया। हां, कुछ लक्ष्य निर्धारित किए गए, स्वास्थ सुविधाओं, शिक्षा और सुरक्षा पर बात की गई लेकिन मैं तो ज़मीनी हकीकत जानती हूं। ऐसे में मेरी कोई खास उम्मीदें नहीं जगी।
आज भी हमारे देश में व्हीलचेयर के लिए रैंप नहीं होते। शायद ही कोई पब्लिक टॉयलेट मिल जाए जो डिसेएबल फ्रेंडली हों। ऐसे में बड़ी-बड़ी बातें बस सेमिनार हॉल्स तक सीमित रह जाती हैं।
2018 में पहली बार विकलांगता पर हुई बात
2018 में दिसंबर में पहली बार विकलांगता और विकास के विषय पर यूएन में एक रिपोर्ट जारी हुई थी। ‘आम लोगों की सुरक्षा’ से जुड़ी पहली रिपोर्ट में पिछले एक दशक में पहली बार विकलांगता के शिकार लोगों की स्थिति पर भी जानकारी दी गई थी। इसके ज़रिए विकलांग लोगों के लिए तीन मुख्य चुनौतियों को सामने रखा गया,
- गरीबी का असंगत स्तर,
- शिक्षा,
- स्वास्थ्य सेवाओं,
- रोज़गार तक पहुंच ना होना,
- निर्णय लेने की प्रक्रिया और
- राजनीति में हिस्सेदारी ना होना।
महासचिव गुटेरेस ने भरोसा दिलाया कि वे सदस्य देशों, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली, नागरिक समाज संगठनों, विकलांगों के लिए काम करने वाले संगठनों, निजी क्षेत्र और शिक्षा जगत में सहयोग मज़बूत करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। उनका लक्ष्य समाज को सभी के लिए समावेशी, सुलभ और टिकाऊ बनाना है।
सिर्फ यही नहीं उन्होंने परिवहन, बुनियादी ढांचे और सूचना और संचार तकनीक से जुड़े क्षेत्र में कदम उठाने की भी बात की थी ताकि शहरों, ग्रामीण क्षेत्रों और समाजों को समावेशी बनाया जा सके।
महासचिव गुटेरेस ने उस वक्त सीरिया के अलेप्पो शहर से आई शरणार्थी नुज़ीन मुस्तफा का ज़िक्र किया जो 20 साल की हैं और सेरेब्रल पाल्सी का शिकार होने की वजह से व्हीलचेयर पर हैं।
नुज़ीन के ज़रिये हिंसा के दौरान विकलांग लोगों की समस्या और उनकी चुनौतियों के बारे में बात हुई। जिसके तहत उनकी सुरक्षा के मुद्दे को जगह मिल पाई।
विकलांग लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं सबसे बड़ी चुनौती
सारी चर्चा और रिपोर्ट को मद्देनज़र रखते हुए महासचिव गुटेरस ने संयुक्त राष्ट्र विकलांगता समावेशन रणनीति को शुरू करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह शब्दों की रणनीति नहीं है बल्कि कार्रवाई की रणनीति है जिसके ज़रिए संयुक्त राष्ट्र प्रदर्शन के मानकों को ऊपर उठाने का प्रयास करेगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा हो रहा है?
इस सवाल का जवाब मानव विकास रिपोर्ट 2019 खुद दे देती है। जो कहती है कि असमानता भारत के लिए चुनौती बनी हुई है। यूएन की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक, विश्वभर में एक अरब लोग यानी लगभग हर सात में से एक व्यक्ति किसी ना किसी रूप में विकलांग हैं। इनमें से 80 फीसदी लोग विकासशील देशों में रहते हैं और आधी से ज़्यादा आबादी के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का इस्तेमाल खर्चीला है।
सिर्फ अलग कैटेगरी बनाने से कुछ नहीं होगा
विकलांग के रूप में जीवन जीने वालों को भेदभाव और अज्ञानता का सामना करना पड़ता है और उन्हें सामाजिक सहारा भी नहीं मिल पाता है। इन्हीं कारणों से उनके साथ हिंसा होने का जोखिम ज़्यादा होता है। उदाहरण के तौर पर, सामान्य बच्चों की तुलना में विकलांग बच्चों को चार गुना ज़्यादा हिंसा का अनुभव करना होता है।
विकलांगों, खासकर महिलाओं और बच्चों के प्रति भेदभाव को रोकने और उन्हें अलग-थलग ना होने देने के लिए और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
स्कूलों, स्वास्थ्य सेवाओं, कार्यस्थलों, मनोरंजन गतिविधियों, खेलकूद और जीवन के हर क्षेत्र में उनकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए हमें बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है। जिसमें हमारे समाज का रवैया भी अहम हिस्सा है।
विकलांग व्यक्ति के प्रति सहानुभूति रखिये लेकिन उन्हें लाचार मत महसूस कराईए। इसके बदले उन्हें सुविधाएं और मौके उपलब्ध कराए जाएं तो तस्वीर बदलेगी। महज़ एक कैटेगरी बना देने से कुछ नहीं होगा, उस कैटेगरी तक पहुंचने के लिए भी एक विकलांग व्यक्ति और उसका परिवार जो संघर्ष करता है वह हर कोई नहीं समझ सकता।