क्या लड़का-लड़की सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते? करण जौहर की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ इस सवाल को केन्द्र में रख, एक रोचक संघर्ष रचने वाली मुश्किल फिल्मों में से एक है। बहुत हद तक यह फिल्म अपने मकसद में कामयाब भी हो जाती है। अलीजे़ह (अनुष्का शर्मा), अयान (रणबीर कपूर), सबा (ऐश्वर्या), अली (फवाद खान) और ताहिर (शाहरुख खान) के माध्यम से कहानी हम तक पहुंचती है।
जिन्हें करण की ‘कभी अलविदा ना कहना’ पसंद आई थी, वे ‘ऐ दिल है मुश्किल’ को मिस नहीं करना चाहेंगे क्योंकि यहां भी दोस्ती- प्यार का संघर्ष रचा गया है। कुछ आवश्यक कुछ अनावश्यक। अनावश्यक कोशिशें चीज़ों को खराब कर दिया करती हैं। करण जोहर की ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में यही अनावश्यक बोझिल करता है।
प्यार और दोस्ती की कहानी
अयान- अलीजे़ह एक पार्टी में मिलने के बाद गहरे दोस्त बन जाते हैं। लंदन में पला-बढा अयान बेशक अच्छा नहीं गाता लेकिन उसका सपना मोहम्मद रफी जैसा बनना है। हालांकि परिवार के दबाव में मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा है।
अलीजे़ह को अयान की आवाज़ में दर्द नहीं फील होता। रॉकस्टार की तरह दिल टूटने तक का सफर यहां प्रोजेक्ट हुआ है। बहरहाल अयान और अलीजे़ह के सफर में ब्रेकअप की समानता उन्हें दोस्त बना देती है।
अयान की तरफ से दोस्ती धीरे-धीरे रोमांस व आकर्षण में तब्दील होने लगती है, जबकि अलीज़ेह के दिल में दोस्ती का अधिक महत्व है। प्यार -दोस्ती समानांतर चलते हुए भी एक दूसरे का एक्सटेंशन नहीं बल्कि विरोधी दिखाए गए हैं।
भावनाओं को नाम दिया जाना ज़रूरी नहीं होता, वे हालात व मनोस्थिति की उपज होती हैं। भावनाओं को स्वीकार करने का समय तय कर पाना मुश्किल होगा कि वे भावना दरअसल क्या हैं? इनका एहसास हमें बाद में होता है।
प्यार की तलाश
कहानी के किरदारों में मुझे एक समानता नज़र आई, वह थी प्यार की तलाश। तकदीर के फैसले से नाखुश ये लोग अपने-अपने हिसाब से रिश्तों को परिभाषित कर रहे थे ‘ऐ दिल है मुश्किल’।
अलीजे़ह और अली की कहानी की तरह ताहिर और सबा का रिश्ता दूसरा उदाहरण सा है। ताहिर सबा क्यों अलग हुए ? इस सवाल का जवाब करण, ताहिर के शायराना एकतरफा प्यार की फिलॉसोफी में तलाश कर रहा था लेकिन उसका जवाब बाकी रहा।
ताहिर और सबा को फिल्म में थोड़ा अधिक टाईम फ्रेम दिया जाना चाहिए था। अयान को जब अलीजे़ह से बदले में प्यार नहीं मिला तो उसे चोट लगी। काश इसके बाद वह प्यार में चोट खा चुकी सबा के प्यार को पहचान पाता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ताहिर और सबा के किरदार कथा में अलीजेह और अयान की कहानी को संघर्ष देने के लिए, केवल एक पाठ की तरह आए और फिर चले गए। यह आखिर उन दोनों की ही कहानी का विस्तार थी।
भावनाओं की यात्रा
कॉम्पलेक्स किरदारों की कॉम्पलेक्स कहानी में भावनाओं की यात्रा दिखाने की कोशिश हुई है। संगीत व गानों को फिल्म की कथा का हिस्सा देखना सुखद था। लेकिन प्यार व दोस्ती जैसे सरल सुंदर भाव को उलझन बना देना। कभी ना खत्म होने वाली ज़िरह बना देना क्या ज़रूरी था? भावनात्मक रिश्तों को लेकर हमारे भीतर उलझन क्यों पनप जाती हैं? जवाब केवल संकेतों में मिला।
अयान के किरदार में रणबीर कपूर रॉकस्टार का संशोधित एक्टेंशन मालूम पड़ रहे हैं जो कि उनके लिए बेहतर ही रहा। इस किस्म के किरदारों को जीने की उनमें खासियत विकसित हो रही है। लेकिन जल्द ही विकल्प भी तलाशने होंगे।
अयान के दिल में मोहम्मद रफी बनने का ख्वाब था। रफी उनके आदर्श हैं। जिस कथा में नायक को रफी का दीवाना बताया गया, उसी कथा में रफी साहब की गायकी का अपमान कर क्या साबित करना चाहते थे करण?
बढ़िया गायक बनने के लिए ‘दिल टूटने व उसमें दुख होने की फिलॉसोफी एक कॉमन मिसअंडरस्टैंडिंग का विस्तार है। दिल टूटने पर आदमी अच्छा गाए यह कोई ज़रूरी नहीं। यह भावना से अधिक प्रतिभा का सवाल है। शायरा सबा के किरदार में ऐश्वर्या प्रभावित करती हैं।
इस किस्म के किरदार उन्हें अधिक ऑफर होने चाहिए। डायलॉग डिलीवरी करने व भावनाओं को व्यक्त में वो अनुष्का से सधी नज़र आती हैं। केमिओ में ताहिर खान के किरदार में शाहरुख खान की किस्मत में एकतरफा प्यार के संदर्भ में प्रभावी संवाद आए।
ताहिर की आंखों में सबा के लिए प्यार था लेकिन थोडे आंसू का होना कमाल कर सकता था। अलीजे़ह के किरदार से बहुत अधिक जुड़ नहीं पाया, दूसरे हाफ में वह ज़्यादा प्रभावित करती हैं। अली के किरदार में फवाद में अपार संभावनाएं नज़र आईं। सबा व अली की कहानी दिल में कसक छोड़ गई। युवाओं के दिलों का हाल बताती यह फिल्म याद तो की जा ही सकती है।