अखबार के किसी कोने में 10 लाइन की एक छोटी सी खबर, जो कुछ दिन बाद भुला भी दी जाती है पर संघर्ष इतना छोटा नहीं है, रोज़ लड़ना पड़ता है, समाज से, कानून व्यवस्था से, लोगों की नज़रों से और अपने आप से भी।
मैं बात कर रही हूं, एसिड अटैक की घटनाओं की। एसिड अटैक करने वालो को सज़ा मिलती है, ज़्यादा-से-ज़्यादा 10 साल की। कहा भी जाता है कि नासमझ लोग मर्डर करते हैं और समझदार लोग एसिड अटैक। वजह, यहां गुनहगार आसानी से छूट जाता है या कई बार पकड़ा ही नहीं जाता है, वहीं जिस पर अटैक हुआ है, उसे रोज़ अपने घावों से जूझना पड़ता है।
ना जाने कितने ही दिन ट्रीटमेंट चलते हैं और ना जाने कितनी ही दवाइयों का सिलसिला चलता है। ट्रीटमेंट भी इतने महंगे होते हैं कि ज़रूरी नहीं कि सभी उसका खर्चा उठा पाएं। ट्रीटमेंट महंगे होने का साथ ही लंबे चलते हैं और हर कोई इतना सक्षम नहीं होता कि उसे पूरा करवा सके। एसिड अटैक सर्वाइवर्स इस बारे में मांग भी रख चुके हैं कि सरकार की तरफ से अच्छे अस्पताल में इलाज की व्यवस्था हो पर फिलहाल उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई है।
सिर्फ चेहरा ही नहीं बदलता और भी कई शारीरिक समस्याओं का करना पड़ता है सामना
अगर किसी को लगता है कि एसिड अटैक से बस चेहरा खराब होता है तो वह भी एक गलतफहमी ही है। एसिड अटैक आपके सुनने की क्षमता कम करता है, वहीं बोलने में परेशानी होती है, कई केस में ऑंखों की रोशनी भी कम हो जाती है।
कई बार एसिड अटैक शरीर के अलग-अलग बाहरी और अंदरूनी हिस्सों को भी खराब करता है। सर्जरी भी हर परेशानी का समाधान नहीं है।
जिस धूप पर हम आसानी से हक जमा लेते हैं, उस धूप में निकलने के लिए सर्वाइवर्स को सोचना पड़ता है और खुद को बचाकर रखना पड़ता है। हम जब चाहे अपनी मर्ज़ी से गैस के सामने आराम से खाना बना सकते हैं, उन्हें उस पर भी पाबंदी लगानी पड़ती है, ऐसी कई छोटी-बड़ी बाते हैं।
मानसिक स्ट्रगल
इन बदलावों का असर बस शरीर तक सीमित नहीं है, यह हमें मानसिक रूप से भी हिलाकर रख देता है, कई बार सर्वाइवर्स के आत्मविश्वास को भी प्रभावित करता है, जिसका बड़ा कारण है समाज का सर्वाइवर्स को देखने का नज़रिया, उन्हें अपनाने का तरीका। कई बार सर्वाइवर्स को ही हम दोषी बनाकर कठघरे में खड़ा कर देते हैं।
नौकरी की बात करें तो वहां भी सर्वाइवर्स के लिए चुनौती ही होती है। चेहरा देखकर नौकरी नहीं मिल पाना हमारे देश में आम बात है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि सर्वाइवर्स को सरकारी नौकरियां मिलनी चाहिए पर अब तो वह भी बहस नहीं हो सकता, क्योंकि नौकरियों पर बहस यानी देशद्रोह, गद्दारी।
मुख्य समस्या पर अभी भी बात नहीं हो रही है
मसले ऐसे कई हैं, उनके अधिकार के, उनके सम्मान के और कुछ बिलकुल सीधे-साधे, जैसे बिना पहचान पत्र के आप रिटेल में एसिड नहीं खरीद सकते हैं। पर हम इसपर बहस क्यों करें, हम तो बहस करेंगे एसिड फेंकने वाला हिंदू था या मुस्लिम। ज़रूरी मसले हैं भाई, आने वाली पीढ़ी का सवाल है, उनकी पढ़ाई, उनकी नौकरी, उनकी आज़ादी और यहां रहने का अधिकार उसी से तो तय होना है।
खैर, इन सबके बीच कुछ लोग हैं जो सही मुद्दों पर काम कर रहे हैं और उसी के चलते लखनऊ और आगरा में खोला गया है शीरोज़ हैंगआउट। यह एक कैफे है, जिसे चलाती हैं एसिड अटैक सर्वाइवर्स। ज़रूरत है हमें ऐसे और कुछ उपक्रमों की, बदलावों की, सहयोग की। ज़रूरत है, बढ़ते एसिड अटैक रोकने की, जहां हम उम्मीद करते हैं, ऐसे घिनौने अपराध ना हो। ज़रूरत बदले की भावना की नहीं है, संवेदना जगाने की है, ज़रूरत है हमें नज़रिया बदलने की।