आज जहां देखो बस दीपिका पादुकोण की ही बात हो रही है। कुछ लोग उनको सपोर्ट कर रहे हैं, तो कुछ विरोध। ज़रूरी मुद्दों को हटाकर फिल्म को ही मुद्दा बना दिया गया है। JNU की घटना वाकई बेहद शर्मनाक है।
अगर आप रात के अंधेरे में नकाब ओढ़कर हाथो में हथियार लिए यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स पर हमला करने जा रहे हो, तो आपसे कायर और कोई नहीं हो सकता है। अगर JNU के स्टूडेंट्स ने कुछ गलत किया था, तो उसके लिए प्रशासन और सरकार की जवाबदेही है।
अगर उन्होंने गलत किया है, तो वहां पुलिस को जाना चाहिए था ना कि नकाब ओढ़े उन गुंडों को। उन गुंडों की फौज ने जो किया है, वह तो गलत है ही, उसके बाद उनके समर्थन में बोलने वालों को भी शर्म आनी चाहिए।
छात्राओं के ऊपर भी जिस तरीके से हमला करके उन्हें घायल किया गया, वह भी बेहद शर्मनाक है। इन सबके बावजूद सरकार और मीडिया अपने समर्थकों के ज़रिये इस कुकृत्य को जायज़ ठहराने में लगी हुई है।
दीपिका JNU गईं, इसमें दिक्कत क्या है?
अगर दीपिका उन घायल स्टूडेंट्स से मिलने चली जाती हैं, तो इसमें गलत क्या है? चाहे दीपिका अपने मतलब के लिए भी अगर JNU गई थीं, तो इसमें गलत क्या है? ना उन्होंने वहां अपनी फिल्म का प्रमोशन किया और ना कोई भाषणबाज़ी की। वो सिर्फ स्टूडेंट्स से मिलकर आ गईं। अंधभक्तों के साथ-साथ बीजेपी के प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के नेता भी दीपिका और पूरी फिल्म के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं।
हर तरफ दीपिका को बायकॉट करने का अभियान छेड़ा हुआ है। फिल्म छपाक एक सामाजिक विषय पर बनी हुई संवेदनशील फिल्म है। वह फिल्म सिर्फ दीपिका की नहीं है, इसमें एसिड अकैट के बाद संघर्ष कर उठ खड़ी होने वाली लक्ष्मी के साथ-साथ हर उस लड़की की कहानी है।
हज़ारों लोग उस फिल्म से जुड़े हुए हैं। लक्ष्मी ने ना सिर्फ अपनी लड़ाई लड़ी, बल्कि उन सर्वाइवर्स के लिए भी प्रेरणा बनीं, जिन्होंने इन सबका सामना किया है। पता नहीं मूर्ख लोगों को क्या परेशानी है कि सिर्फ दीपिका की वजह से लक्ष्मी की कहानी को रोक रहे हैं। इस फिल्म का विरोध यानी कि एसिड अटैक सर्वाइवर्स के प्रति असंवेदनशीलता।
बरहाल, शुक्रवार को फिल्म रिलीज़ हो गई है और लोग जाकर देख भी रहे हैं। मुद्दा JNU हमले से हटाकर फिल्म को बना दिया गया है। पूरा देश इस हमले का विरोध कर रहा है कि हमला भी उन पर हुआ और केस भी उनके खिलाफ दर्ज़ किया गया है।
अगर JNU में देश विरोधी लोग हैं, तो सरकार उनको पकड़ती क्यों नहीं?
कभी गृहमंत्री जी के काफिले को काला झंडा दिखाने पर छात्राओं को बुरी तरह पीटा जाता है, तो कभी यूनिवर्सिटी में घुसकर पुलिस स्टूडेंट्स को बुरी तरह से पीट देती है। अब तो हद ही हो गई कि रात के अंधेरे में गुंडे भेजकर हमला कराया गया। उनके खिलाफ कार्रवाई तो बहुत दूर की बात है, अभी तक यह भी नहीं बता पाए हैं कि वे थे कौन?
मीडिया और सरकार ने माहौल ही ऐसा बना दिया है कि JNU राष्ट्र विरोधी संस्थान है और वहां पढ़ने वाले सभी स्टूडेंट्स देशद्रोही हैं। अगर JNU में देश विरोधी लोग हैं, तो सरकार उनको पकड़ती क्यों नहीं है? क्यों कारवाई नहीं होती है? वहां ऐसा माहौल बनाया जाता है जिससे राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक सके।
अगर सरकार ऐसा सोचती है कि सरकार का विरोध देश का विरोध है, तो आधी से ज़्यादा जनसंख्या देशद्रोही मानी जाएगी। लोकतंत्र में आलोचना को सहन करना पड़ता है मगर सरकार तो आलोचकों से चुन चुनकर बदला लेती है।
सरकार ने पूरा ध्यान हिन्दू-मुस्लिम और स्टूडेंट्स को कुचलने में लगा रखा है। अच्छा होता कि सरकार अपना ध्यान देश की समस्याओं पर लगाती! तो हम बहुत समस्याओं से छुटकारा पा चुके होते। महंगाई, बेरोज़गारी और गिरती अर्थव्यवस्था अपने चरम पर है लेकिन सरकार के हिसाब से सब अच्छा है। अगर सरकार ने आने वाले दिनों में इस पर ध्यान नहीं दिया, तो देश एक आंतरिक गृह युद्ध की तरफ बढ़ने लगेगा।