शिक्षा मंत्री
शिक्षा विभाग
राजस्थान
विषय- माहवारी व प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में सरकारी स्कूल के किशोर बालक-बालिकाओें को जानकारी देने हेतु।
महोदय,
किशोरावस्था एक व्यक्ति के जीवन में ऐसा समय है जब वो अपने शरीर में बहुत बदलाव देखने लगता है, लड़कों-लड़कियों के शरीर की बनावट में फर्क दिखाई देने लगता है। इस नाज़ुक समय में एक लड़के व लड़की को अपने शरीर को समझनें में किसी की मदद की आवष्यकता होती है, जो उनके शरीर में होने वाले बदलाव के कारणों को समझा सके। खासकर किशोर उम्र की बालिकाऐं जिनको इस समय पर माहवारी शुरू होती है। मानसिक तौर पर वह इस स्थिती से अकेले निपटने के लिए तैयार नहीं होती है।
जानकारी के अभाव में किशोर बालिकाऐं खून को देखकर डर जाती है व समझ नहीं पाती कि वे क्या करें व इस बारे में किससे बात करे, अपने शरीर की कैसे साफ-सफाई करें व खून से उनके कपड़े खराब ना हो इसके लिए वे क्या इस्तेमाल करें। आमतौर पर हमारे आस-पास, व घर में किशोरियाँ ये सुनती व देखती आई हैं कि माहवारी के समय एक लड़की या महिला अछुत होती है। माहवारी को हमारे समाज में अपवित्र व गंदा माना जाता है इस कारण से वे और डर जाती है। वे अपनी बात कहने में शर्म या झिझक महसूस करती है और वह स्वयं भी धीरे-धीरे इन रूढीवादी मान्यताओं को मानने लग जाती हैं।
सिर्फ मान्यताऐं ही नहीं उनके स्वस्थ्य पर भी इसका असर दिखाई देता है। उन्हें स्कूलों में सेनेटरी पेड मिलता तो है परन्तु उनके इस्तेमाल करने का तरीका उन्हें पता नहीं होता। घर पर एकांत नहीं मिलने के कारण वो चाहकर भी उसे घर पर ले जाने में शर्म महसूस करती है। अकसर स्कूल के बाहर आपको पेड के नए पैकेट फेंके हुए मिलेंगें। ना चाहते हुए भी किशोरियों को गंदा कपड़ा ही इस्तेमाल करना पड़ता है। हम स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं व गाँव में हम बहुत सारी किशोरियों व महिलाओं से मिलते हैं जो सफेद पानी, योनिमार्ग में जलन व खूजली की शिकायत हमसे करती हैं। हम उन्हें स्वास्थ्य केन्द्र लेकर जाते हैं।
किशोर उम्र की अधिकांश बालिकाएं सरकारी स्कूल जाती है। उन्हें स्कूल में हिन्दी, अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान के बारे में जरूर पढ़़ाया जाता है, परन्तु प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में पढ़ाने व पढ़ने में शायद शिक्षक व बालिकाएं दोनों ही शर्म महसूस करते हैं। शायद यही कारण है कि राज्य सरकार ने इस विषय को महत्वपूर्ण न मानते हुए अपने पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया है।
हम राजस्थान राज्य में उदयपुर जिले के एक ऐसे गाँव के निवासी हैं जहाँ कि लगभग 75% आबादी अनुसूचित जाति व जनजाति की है। हमारा गाँव मोरवल जिला मुख्यालय उदयपुर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ के अधिकतर युवा रोजगार के लिए बड़े शहर जैसे- मुंबई, अहमदाबाद, राजकोट, सूरत के लिए पलायन कर जाते हैं। वहाँ पर वह अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य करते हैं। शिक्षा के अभाव व दूर-दराज के क्षेत्र में स्थित होने के कारण स्कूल ही एक उचित माध्यम है जहाँ पर इस प्रकार की शिक्षा दी जा सकती है।
इस लेख के माध्यम से आपको इस क्षेत्र की वास्तविक स्थिती के बारे में अवगत कराते हुए आपसे अनुरोध करते हैं कि आप प्रजनन स्वास्थ्य को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करें व शिक्षकों को इस पाठ्यक्रम को पढ़ाने के लिए प्रेरित करें।
भवदीय,
गीता लोहार व हेमंत मेघवाल
स्वास्थय कार्यकर्ता