भारत दुनिया का सबसे युवा मुल्क है, साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 25 वर्ष तक की आयु वाले लोगों की कुल जनसंख्या 50% है और 35 वर्ष आयु वर्ग वाले लोगों की कुल जनसंख्या का 65% है।
कुल जनसंख्या के मामले में हालांकि भारत चीन से पीछे है लेकिन 10-24 साल की उम्र के 35.6 करोड़ लोगों के साथ भारत को सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश करार दिया गया है। युवा किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय या वर्ग के हों, वे समाज के ट्रेंड सेंटर होते हैं। कारण वे असीम शौर्य और उत्साह से लबरेज होते हैं।
अगर बात LGBTQ+ कम्युनिटी के युवाओं की करें तो वहां ऐसे कई युवा चेंजमेकर्स हैं, जिन्होंने अपने प्रति तमाम तरह की वर्जनाओं और रुढ़ियों का सामना करते हुए अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है। साथ ही समाज को यह संदेश दिया है कि अगर उन्हें सपोर्ट किया जाए, तो वे भी किसी ने कम नहीं हैं।
मैंने कुछ उन्हीं चेंजमेकर्स से बात की है, पढ़िए उनसे बातचीत के कुछ अंश
1. रवीना बारीहा, भारत सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय की राष्ट्रीय सलाहकार
एक मध्यम वर्गीय कृषि परिवार से ताल्लुक रखने वाली ट्रांस एक्टिविस्ट रवीना बारीहा वर्तमान में भारत सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय की राष्ट्रीय सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं।
रवीना कहती हैं,
मैं बचपन से ही यह महसूस करती थी कि मैं आम लड़कों की तरह नहीं हूं, मुझमें कुछ तो अलग है। लड़का होने के बावजूद मेरा व्यवहार लड़कियों की तरह था लेकिन उस वक्त तक मैं ट्रांस कम्युनिटी के संपर्क में नहीं आई थी, इसलिए खुद को आईडेंटिफाई नहीं कर पा रही थी।
साल 2009 में मैं हरिभूमि अखबार के प्रांतीय डेस्क पर बतौर सब एडिटर काम कर रही थी, उसी दौरान ट्रांसजेंडर्स के संपर्क में आई और खुद को वास्तविक तौर पर स्वीकार किया। सबसे पहले मैंने अपने ताम्रध्वज (मेरा पूर्व नाम) के चोले को निकालकर फेंका और रवीना बारीहा का चोला धारण कर लिया।
फिलहाल, मैं भारत सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय में राष्ट्रीय सलाहकार के पद पर कार्यरत हूं। केंद्र स्तर पर सामाजिक न्याय मंत्रालय किन्नरों का नोडल मंत्रालय है। ट्रांसजेंडर्स से जुड़े नियमों एवं कानूनों को बनाने, पारित करवाने और उन्हें लागू करनवाने की ज़िम्मेदारी इसी मंत्रालय की है। राज्य स्तर पर इन मामलों को समाज कल्याण विभाग देखता है।
उन्होंने आगे बात करते हुए बताया, “मैंने तीन साल छत्तीसगढ़ समाज कल्याण विभाग में सदस्य के रूप में भी काम किया और इस दौरान ट्रांसजेंडर समुदाय से हित से संबंधित कई सारे दिशा-निर्देश, सर्कुलर और दिशानिर्देश आदि क्रियान्वित किए। आज ट्रांसजेंडर कल्याण कार्यों की दिशा में छत्तीसगढ़ की गिनती देश के अग्रणी राज्यों में होती है। संभवत: राज्य स्तर पर किए गए बेहतर कामों को देखते हुए भी भारत सरकार ने मुझे केंद्र स्तर पर यह महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी सौंपी है। इसके तहत हमलोग फिलहाल एक अंब्रैला स्कीम तैयार कर रहे हैं, जिसमें ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए रोज़गार, पेंशन, आवास, कौशल विकास प्रशिक्षण तथा किसी अभिभावक द्वारा ट्रांसजेंडर बच्चे को स्वीकार करने पर उसे प्रोत्साहन राशि देने की योजना शामिल है।”
पिछले महीने संसद द्वारा जो ट्रांसजेंडर एक्ट पारित किया गया, उसके निर्माण की पूरी प्रक्रिया में रवीना ने भी अहम भूमिका निभाई। वह इस बारे में बात करते हुए कहती हैं कि यह कानून हमारी कम्युनिटी के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण कदम है। हरेक राज्य में इसे लागू करने और करवाने को लेकर सरकार और ट्रांसजेंडर्स दोनों को गंभीर होना होगा।
अपनी कम्युनिटी के युवाओं के लिए उनका संदेश-
हमारे समाज को अहमियत तभी मिलेगी, जब हम समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर काम करें, अपनी एक बेहतर पहचान साबित करें।यह सच है कि इसके लिए हमें बाकी लोगों से थोड़ा ज़्यादा संघर्ष करना पड़ेगा, क्योंकि हमें हमारी पहचान और हक भी तो देरी से मिली है। ज़रूरी है कि हम शिक्षा के महत्व को समझें और खुद को शिक्षित और जागरूक करें। सवेरा हो चुका है, बस अब धूप निकलने का इंतज़ार है। इसके लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा।
रवीना मनोविज्ञान विषय से पोस्ट ग्रेजुएट हैं। साथ ही, इन्होंने डिजिटल वीडियोग्राफी में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया है। वह छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के कई कार्यक्रमों से जुड़ी हैं। साल 2018 में उन्हें भारतीय साहित्य अकादमी की ओर से ट्रांसजेंडर लेखक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा रिलायंस फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2012 में रियल हीरो अवॉर्ड और इंडिया अलायंस की तरफ से लीडरशिप अवॉर्ड भी मिल चुका है।
अमरजीत सिंह, LGBT एक्टिविस्ट,
लैंगिकता- गे
झारखंड के रहने वाले अमरजीत सिंह, LGBTQ+ कम्युनिटी के अधिकारों के प्रति जागरूकता का काम कर रहे हैं। खुद की पहचान गे के रूप में बताने वाले अमरीजत का कहना है कि LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों में टैलेंट की कमी नहीं है, बॉलीवुड, फैशन, मीडिया, सलून सहित कई इंडस्ट्रीज़ में उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करवाई है। हमारी कम्युनिटी के लोग सरकार और समाज से ज़्यादा कुछ नहीं, बस सपोर्ट चाहते हैं। वे इस बात को समझे कि हम उनकी ही तरह इंसान हैं, बस हमारा सेक्सुअल ओरिएंटेशन उनसे मैच नहीं करता है लेकिन यह किसी भी इंसान का बहुत ही व्यक्तिगत मुद्दा है। बस इसे स्वीकारने की ज़रूरत है, संविधान ने भी छह साल पहले इस बात को स्वीकार कर लिया है।
2014 में जो नालसा (NALSA) जजमेंट आया था, उसमें भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर राज्य में एक किन्नर कल्याण बोर्ड का गठन होना चाहिए लेकिन झारखंड सरकार ने आज तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। हमारे पड़ोसी राज्य बिहार में ट्रांसजेंडर्स की स्थिति बेहतर है, इसकी वजह है कि उस राज्य की सरकार द्वारा उन्हें सपोर्ट करती है।
अमरजीत आगे बातचीत करते हुए बताते हैं, “झारखंड में ट्रांसजेंडर्स की स्थिति जमशेदपुर में थोड़ी ठीक है, उसका कारण रांची की तुलना में यहां के लोग अधिक शिक्षित और संपन्न हैं। विभिन्न मुद्दों को उनके देखने का नज़रिया बेहतर है। यहां ट्रांसजेंडर्स के प्रति उनका नज़रिया उतना बुरा नहीं है, जितना कि रांची में है। वहां के टांसजेंडर्स ना तो शिक्षित हैं और ना ही अपने अधिकारों के प्रति जागरूक।
हम लोग हर साल 1 दिसंबर को रांची में और 6 तथा 7 अप्रैल को जमशेदपुर में लोगों को ट्रांस मुद्दों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से प्राइड परेड निकालते हैं। जमशेदपुर के इस परेड में ट्रांसजेंडर्स के अलावा समाज के अन्य वर्गों के लोग भी शामिल होते हैं। अब यहां टाटा कंपनी के लोग हमारे सपोर्ट में आगे आए हैं। इसके विपरीत रांची में खुद ट्रांसजेंडर्स भी प्राइड परेड में शामिल होने से परहेज़ करते हैं, जबकि यह उनके हित में है। इसका क्या कारण है, मुझे भी समझ नहीं आता, संभवत: उनमें शिक्षा का अभाव और समाज का उनके प्रति उपेक्षित दृष्टिकोण है।”
डिंपल मिथिलेश चौधरी, लेखक, कवि, प्रोफेशनल बाइकर और फोटॉग्राफर
लैंगिकता- लेस्बियन
एक लेखक, बाइकर, फोटोग्राफर के रूप में अपनी पहचान वाली डिंपल आज दूसरों को भी प्रेरित करने का काम कर रही हैं। उन्होंने इस दिशा में बातचीत करते हुए बताया, ”
मैं मूल रूप से हाथरस, यूपी के जाट परिवार से ताल्लुक रखती हूं और जाट का नाम सुनते ही कठोरता और कट्टरता ही सबसे पहले दिमाग में आती है। कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी था, मुझे सबसे ज़्यादा कोफ्त इस बात से होती है कि लोग LGBTQ+ कम्युनिटी से संबंध रखते हैं, उन्हें लोग अलग कैटेगरी में क्यों रख देते हैं? क्या सारे हेट्रोसेक्सुअल्स एक जैसे होते हैं? नहीं ना, तो फिर उनकी कितनी कैटेगरी बनाई है इस समाज ने?
खैर, इस मुद्दे पर हमारा समाज कितना जागरूक और संवेदनशील है, यह तो हम सभी जानते हैं, इसलिए उनकी समझ के लिहाज़ से कहूं, तो मैं खुद को लेस्बियन कैटेगरी में रखती हूं। मुझे लड़कियों के साथ रहना और उनके साथ टाइम स्पेंड करना ज़्यादा अच्छा लगता है।
उन्होंने अपने सफर के बारे में बताते हुए कहा, “साल 2009 में मैं मास कॉम का डिप्लोमा करने के बाद दिल्ली आई, जॉब की तलाश में। यहां मुझे एक न्यूज़ चैनल में इंटर्नशिप का मौका मिला था, फिर यहीं जॉब हो गई, तो यहीं सेटल हो गई।
यहां आने के बाद से लेकर अब तक मैं तीन रिलेशनशिप में रह चुकी हैं, उन तीनों की अब शादी हो चुकी है। अभी पिछले पांच महीने से मैं अपनी नई पार्टनर के साथ हूं। उससे मेरी मुलाकात एक बिज़नेस फर्म में हुई थी, जिससे मैं एक कंसल्टेंट के तौर पर जुड़ी थी, वह भी वही जॉब करती थी। आज हम दोनों एक-दूसरे के साथ काफी खुश हैं। मेरी फैमिली शुरुआत में मेरे इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करती थी लेकिन अब उन्होंने भी स्वीकार कर लिया है।”
उन्होंने आगे बात करते हुए बताया कि मैं अब इतनी सक्षम हूं कि अपने रिश्ते या अपनी लाइफ के लिए मुझे किसी से सर्टिफिकेट लेने की ज़रूरत नहीं है, जो मुझे पसंद करते हैं, वे मेरे साथ हैं और नहीं पसंद करते हैं, उन्हें मैं भाव भी नहीं देती। अपनी जेनरेशन के बाकी लोगों से बस इतना कहना चाहती हूं कि खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा तुझसे पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है।
सुमन मित्रा, मॉडल और ट्रांस एक्टिविस्ट
लैंगिकता- ट्रांसजेंडर
पेशे से मॉडल और ट्रांस एक्टिविस्ट सुमन मित्रा ने अपने बारे में बताते हुए कहा, “मेरे परिवार में सब लोग मेरी वास्तविक पहचान से परिचित हैं लेकिन बावजूद इसके उन्होंने हमेशा मुझे सपोर्ट किया। हां, शुरुआत में उन्हें इस बात को स्वीकार करने में थोड़ी परेशानी ज़रूर हुई लेकिन अब सब ठीक है। मुझे हमेशा से ही सजना-संवरना पसंद रहा है इसलिए मैंने मॉडलिंग में अपना करियर आज़माने का सोचा। कई साल इस क्षेत्र में संघर्ष करने के बाद आज मेरे पास कई सारे मॉडलिंग ऑफर्स हैं।
मैं अपने साथियों से यही कहना चाहती हूं कि चाहे आपका सेक्सुअल ओरिएंटेशन कुछ भी हो, आप सपने देखना ना छोड़ें। साथ ही इन्हें पूरा करने के लिए भी पूरी ईमानदारी से प्रयास करें, क्योंकि जिस दिन आप अपने सपनों को पूरा कर लेंगे, दुनिया खुद-ब-खुद आपके साथ-साथ आपकी लैंगिकता को भी स्वीकार कर लेगी।”
जाह्नवी तमंग, क्लासिकल डांसर
पेशे से क्लासिकल डांसर जाह्नवी ने अपने सफर के बारे में बताते हुए कहा, “मैं एक ट्रेंड क्लासिकल डांसर हूं। हमारा ग्रुप कई कार्यक्रमों में भाग भी लेता है। मैंने कभी अपनी पहचान नहीं छिपाई। खुद को खुशकिस्मत मानती हूं कि मेरी फैमिली ने भी मुझे फुल सपोर्ट किया है। बाकी लोग भी अपनी सच्चाई के साथ जीना सीखें। जब तक हम खुद को स्वयं स्वीकार नहीं करेंगे, समाज हमें कैसे स्वीकारेगा़?
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नोट- यह आलेख एनएफआइ फेलोशिप प्रोग्राम (2019-20) के तहत लिखा गया है।