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क्या पशुपालन के ज़रिए भी होता है ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन?

साल 2013 में संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट में बताया गया था कि ग्रीनहाउस गैसों का 14.5 प्रतिशत उत्सर्जन पशुधन उत्पादन के ज़रिए होता है। यह आंकड़ा कार, ट्रेन, जहाज और एयरक्राफ्ट से होने वाले उत्सर्जन के बराबर ही है।

असल में खान-पान की आदतें धरती पर मुख्तलिफ सभ्यताओं में मुख्तलिफ तरीके से विकसित हुई हैं। कहीं इनका सांस्कृतिक महत्त्व है, तो कहीं भौगोलिक। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जा रही है, उसके सामने खाने की प्लेट भरने की चुनौती गंभीर होती जा रही है।

खाने की इसी परपंरा में शाकाहार व मांसाहार शाखाएं विकसित हुई हैं, इनमें एक नई कड़ी वीगन समाज की जुड़ने लगी है, जो पशुधन से निकले किसी भी खाद्य पदार्थ का सेवन वर्जित मानते हैं।

ऑक्सफोर्ड मार्टिन विद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया शोध भी पशु धन से उत्सर्जित कार्बन उत्सर्जन में कमी की नुमाइंदगी करता है। द गार्जियन में छपे शोध के मुताबिक शाकाहार या मांसाहार में कमी लाकर ही इस आंकड़े को 2050 तक एक तिहाई किया जा सकता है। अगर इस बदलाव की हवा समाज के हर तबके में चलने लगी, तो इससे 63% तक कम कार्बन उत्सर्जन होगा।

मीथेन गैस छोड़ते हैं जुगाली करने वाले जानवर

पशुपालन के व्यवसाय में सबसे बड़ी लागत ज़मीन, चारे, बिजली, पानी इत्यादि का बंदोबस्त करने में आती है। इनमें लाल मांस (बीफ) सर्वप्रमुख है।

जुगाली करने वाले जानवर मीथेन गैस छोड़ते हैं, जो कि CO2 से बीस गुना अधिक खतरनाक है। इनके मल व डकार से निकलने वाली मीथेन हवा में लगातार ज़हर घोले जा रही है।

मशीनीकरण के इस दौर में मांस प्रसंस्करण के बड़े-बड़े संयंत्र लगाने पड़ते हैं। इनमें जानवरों का रख-रखाव, उनका भोजन, उनका परिवहन, बिजली, वातानुकूलन, पानी व भंडारण आदि में बहुत ऊर्जा ज़ाया होती है।

सामान्य ज्ञान भी कहता है कि आलू, चावल, दाल आदि अनाज उगाकर खाना कहीं आसान है, बनिस्बत एक चारा पैदा करके किसी जानवर की हड्डियां मज़बूत करना और फिर उसके मांसल शरीर का नोश फरमाना। इस तरह शाक-सब्ज़ी की पैदावार में 3-5 प्रतिशत कम कार्बन का उत्सर्जन भी होता है।

परिवहन क्षेत्र से भी ज़्यादा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करता है पशुधन उत्पादन

पशुपालन से होने वाला ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन जहां 14-18% है, तो वहीं परिवहन क्षेत्र का आंकड़ा 13.5% ही है।

अमेरीकी लोगों की अगर बात करें तो अगर हर साल उनके बर्गर में मांस की जगह मशरूम डाल दिया जाए तो इससे वैसा ही असर होगा जैसे 23 करोड़ गाड़ियों को सड़क से हटाए जाने पर होगा।

हालांकि मांसाहार छोड़ना एक व्यक्तिगत मसला है और सिर्फ इसमें कमी लाकर ही कार्बन उत्सर्जन काम नहीं किया जा सकता परन्तु समंदर की गहराई नापने के लिए उसमें उतरना तो पड़ेगा ही। मुद्दा मांसाहार छोड़ना नहीं है, पर्यावरण के प्रति जागरूक व संवेदनशील होने का है।

चलते-चलते- यूरोप में शाकाहारी खाने का विचार पुरातन ग्रीस से उभरा है। यहां पायथागोरस ने इसको काफी प्रचारित किया। पायथागोरस को हम सभी गणित में दी गई पायथागोरस थ्योरम की वजह से जानते हैं।
उन्होंने कहा था,

किसी अन्य जीव का मांस अपने मांस में निगलना, अपनी भूख के लिए किसी अन्य को मार देना किसी दानव जैसा काम है। यहां तक कि जब तक लोगों को वेजिटेरियन शब्द के बारे में नहीं मालूम था, तब तक वो इसे खाने को ‘पायथागोरियन डाइट’ ही कहते थे।

This post has been written by a YKA Climate Correspondent as part of #WhyOnEarth. Join the conversation by adding a post here.
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