ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में लगी आग से निकले धुएं के कारण न्यूज़ीलैंड के ग्लेशियर और आसमान के भूरे होने की तस्वीरें भी सामने आई हैं। मौसम पूर्वानुमान बताने वाली न्यूज़ीलैंड की ‘मेटसर्विस’ ने कहा,
2000 किलोमीटर दूर से तैस्मन सागर पार करके आया धुआं न्यूज़ीलैंड में साफ-साफ देखा जा सकता है।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि आग के कारण इस सीज़न में ग्लेशियर के पिघलने की दर 30% तक बढ़ सकती है। न्यूज़ीलैंड में 3000 से ज़्यादा ग्लेशियर्स हैं और 1970 के दशक से वैज्ञानिकों ने यह रिकॉर्ड किया है कि ग्लेशियर्स तकरीबन एक-तिहाई तक सिकुड़ चुके हैं। अगर वर्तमान जैसी स्थिति रही तो इस सदी के अंत तक सभी ग्लेशियर्स गायब हो जाएंगे।
कैसे अपना ही मौसम बना रही है ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में लगी भीषण आग?
ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो ने बताया कि स्थानीय जंगलों में लगी भीषण आग अपना मौसम बना रही है। दरअसल, गर्म हवा और धुआं जब काफी ऊपर पहुंचते हैं, तो कम वायुमंडलीय दबाव के कारण ठंडे होकर बादल बनने लगते हैं। इन बादलों से तेज़ हवा के साथ मूसलाधार बारिश भी हो सकती है। वहीं, अस्थिर वातावरण में तूफान उत्पन्न हो सकता है और बिजली कड़कने से आग और बढ़ सकती है।
ऑस्ट्रेलिया में तापमान के कौन-कौन से रिकॉर्ड टूटे?
ऑस्ट्रेलिया के मौसम विभाग ने बताया है कि देश में 1910 के बाद 2019 सबसे गर्म साल साबित हुआ है और इस साल तापमान सामान्य से 1.52 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। 2019 में जंगल की आग का तापमान 2013 की अपेक्षा 0.19 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।
ऑस्ट्रेलिया की एक राजधानी कैनबरा में तापमान का 80 साल का रिकॉर्ड टूट गया। कैनबरा में शनिवार दोपहर को तापमान 43.6 डिग्री सेल्सियस रहा, जबकि पेनरिथ (न्यू साउथ वेल्स में सबअर्ब) का तापमान 48.9 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया।
आग के कारण जंगलों में क्या पौधों की प्रजातियों में भी कुछ अंतर आ रहा है?
यह बात हम सभी को पता है कि सूखा और गर्म हवाओं वाला मौसम आग को कैसे भड़काता है? अगर ऑस्ट्रेलिया की जलवायु की बात की जाए तो यहां मौसम काफी सूखा है। पर्यावरणविद पहले भी ऑस्ट्रेलिया में सूखा और तापमान बढ़ने की आशंका जता चुके हैं। गर्मी से वाष्पीकरण की प्रक्रिया भी तेज़ होती है और सूखा कायम रहता है।
मौसम सूखा होगा तो जंगल सूखेंगे जो आग में घी का काम करेंगे। सूखे मौसम के कारण जंगलों में ईंधन का एक पूरा भंडार हो जाता है और गर्म मौसम में जंगलों में हल्की सी चिंगारी पूरे जंगल को राख कर देती है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, पौधों की नई प्रजातियां मौसम के हिसाब से अपने आपको अनुकूल कर रही हैं और कम पानी की उपलब्धता में उगने वाले पेड़ जैसे-रोजमैरी, वाइल्ड लैवेंडर और थाइ की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
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सोर्स- dw.com, theguardian.com, reuters.com, theguardian.com,newsweek.com, theguardian.com, theguardian.com
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