इक्कीसवीं सदी के मसलों में से एक महत्वपूर्ण मसले पर बनी हालिया फिल्म ‘छपाक’ को लोग विषय की गंभीरता के लिए पसंद कर रहे हैं। ज़्यादातर फिल्में व्यवसायिक हितों के लिए बनाई जाती हैं। किंतु ‘छपाक’ किस्म फिल्म हिम्मत से बनाई जाती है। इनके पीछे वजह होती है और वह वजह है समकालीन समस्याओं के ऊपर लोगों का ध्यान आकर्षित करना।
लक्ष्मी की कहानी है छपाक
मेघना गुलज़ार की फिल्म समाज के एक ऐसे ही स्याह पहलू को रेखांकित करने वाली महत्वपूर्ण फिल्म है।
एसिड पहले दिमाग में घुलता है तभी तो हाथ में आता है
मतलब अपराध दिमाग में जन्म लेकर अपराध का रूप लेता है। फिल्म का यह संवाद ना सिर्फ एसिड अटैक बल्कि किसी भी खतरनाक अपराध को अंजाम देने के पीछे की बड़ी वजह है।
छपाक लक्ष्मी अग्रवाल के संघर्ष की कहानी है। लक्ष्मी अग्रवाल पर 2005 में एसिड से हमला हुआ था। जिसके बाद उन्होंने इंसाफ की लम्बी लड़ाई लड़ी। यह लड़ाई निजी ना होकर सामाजिक स्तर की थी।
IPC के प्रावधानों में एसिड अटैक के मामले जुड़े
आपने तमाम एसिड अटैक पीड़िताओं की आवाज़ बनकर सामने आई। आज महिला समाज उनपर गर्व कर सकता है। लक्ष्मी के संघर्ष ने तेज़ाब की खुली बिक्री पर रोक लगा दी। साथ ही भारतीय दण्ड संहिता यानी आईपीसी के प्रावधानों में एसिड अटैक के मामलों को जोड़ने में बड़ी सफ़लता पाई। हालांकि पुलिस प्रशासन, कोर्ट एवं मीडिया से उन्हें कोई विशेष सहयोग नहीं मिला।
मालती के किरदार को अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने हौसले से निभाया है। ऐसे किरदार के लिए बहुत हिम्मत चाहिए। मालती भी सभी लड़कियों की तरह सपने देखने वाली एक लड़की थी। गायक बनने का सपना संजोय हुई थी। लेकिन एक मनचले युवक के विकृत चरित्र ने उस पर तेज़ाब फेंक दिया।
लड़की होना आसान नहीं है। वह रोज़ ना जाने कितनी बातों का सामना करती हैं। लेकिन हर किसी से बता नहीं पाती। मन में डर सा होता है। रेप से डर सभी को लगता है। छेड़खानी का डर बाहर निकलने से रोकता है। लेकिन उससे भी गंभीर अपराध एसिड अटैक के मामले होते हैं। किसी की शक्ल के साथ समूची ज़िंदगी तबाह कर देने वाला यह दुष्कर्म ना जाने कितनी लड़कियों के साथ हुआ है। जिनके साथ भी हुआ वे कहानी बन गईं।
छपाक’ में मील का पत्थर होने की ख़ासियत
लक्ष्मी अग्रवाल को हम सब ऐसी ही कहानी के लिए जानते हैं। मेघना गुलज़ार ने लक्ष्मी की ही कहानी को मालती के माध्यम से दिखाया है।भावुकता और नाटकीयता के अतिरेक से दूर रही हैं। संवेदनशील फिल्म बनाई है।
मेघना जी की ‘छपाक’ स्त्री सौंदर्य का प्रतिमान गढ़ने की साहसिक कोशिश है। मेघना की पहल उन्हें हिंदी सिनेमा में अपने दर्जे का बनाती है। बहुत पहले राज कपूर ने ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में नायिका (ज़ीनत अमान) की कुरूपता को को अलग अंदाज़ में शक्ति देने का प्रयास किया था।
मगर कहना होगा ‘छपाक’ का अंदाज़ ही कुछ अलग है। जोकि उसकी सबसे बड़ी ताकत भी है। छपाक’ में मील का पत्थर होने की खासियत नज़र आती है। यह सिर्फ़ त्रासद कहानी भर नहीं, बल्कि उससे आगे जाकर साहसपूर्ण संघर्ष की कहानी भी है। यही इस फ़िल्म की शक्ति है।
इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देने का गलत इल्ज़ाम
मेघना गुलज़ार को इस बात का श्रेय भी दिया जाना चाहिए कि कामयाब बनाने के प्रचलित फार्मूलों से एक तरह से परहेज़ रखा गया है । एसिड अटैक जैसे भयावह हादसे की शिकार मालती को एक सिम्पथेटिक पीड़िता नहीं बल्कि एक सहज सरल संघर्षशील स्त्री की तरह देखना सुंदर अनुभव बनाता है।
फिल्म को लेकर कई दुष्प्रचार चल रहे हैं। इस पर इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देने का गलत इल्ज़ाम भी लग रहा है। इस एंगल पर आलोक दीक्षित से बातचीत के बाद पूरा मामला समझ आया। फिल्म पर युवा की धर्म व जाति बदलने का आरोप भी बेबुनियाद साबित हुआ। आलोक ने बताया कि फिल्म एसिड फेंकने वाले को केवल एक अपराधी तरह देखती है ना कि हिंदू मुसलमान की दृष्टि में रखती है।
अक्सर इस किस्म के गंभीर अपराध को आपका कोई अपना या जानकार ही अंजाम देता है। लक्ष्मी के साथ भी वही कहानी दोहराई गई। युवक का उनके घर आना जाना था। बदकिस्मती से वह मुस्लिम था। लेकिन इसका मतलब बिल्कुल भी नहीं पूरे समुदाय को बदनाम किया जा रहा। इसे महज़ इत्तेफाक ही कहना चाहिए कि मूल युवक मुस्लिम था।
लक्ष्मी के मामले को वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की ज़रूरत है। एसिड अटैक एक सामाजिक विकृति का रूप है। जाति सम्प्रदाय की समस्या नहीं है। युवाओं की मिली व्यक्तिगत शिक्षा- दीक्षा ही दरअसल उनके चरित्र का निर्माण करती है। महिलाओं पर होने वाले अपराधों को जड़ से मिटाने का समाधान केवल जागरूकता के माध्यम से होने वाले चरित्र से सम्भव है।