9 दिसंबर को UNDP ने अपनी 2019 की रिपोर्ट जारी की। अगर रिपोर्ट में भारत की स्थिति की बात की जाए तो भारत एक पायदान ऊपर पहुंच गया है, यानि 130 से 129 पर। इस रिपोर्ट में अलग-अलग इंटरसेक्शन की बातें की गई हैं, उनकी स्थिति को बताया गया है, उनकी समस्याएं क्या हैं उनपर बात की गई है।
विभिन्न इंटरसेक्शन में LGBTQ+ समुदाय को भी शामिल किया गया है। हालांकि LGBTQ+ कम्युनिटी के कुछ लोगों से बातचीत के अनुसार, भारत में उनकी समस्याओं को सही तरीके से अड्रेस नहीं किया है। जेंडर सेक्शन में भी सिर्फ महिलाओं की समस्याओं को शामिल किया गया है, जबकि अब जेंडर को महिला-पुरुष से ऊपर उठकर देखने की ज़रूरत है।
रिपोर्ट में LGBTQ+ समुदाय के बारे में जहां अलग से बात की गई है, वहां उनकी सामाजिक स्थिति/स्वीकृति के साथ ही रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं की बात तो ज़रूर की गई है लेकिन उन मुद्दों को बहुत ही जल्दबाज़ी में निपटाया गया है। उसपर विस्तार से बात नहीं हुई है।
इस सिलसिले में मैंने बिहार की सामाजिक कार्यकर्ता रेश्मा प्रसाद, जो खुद LGBTQ+ समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और इस समुदाय के लिए लगातार काम कर रही हैं, उनसे बात की। उनका कहना है कि इस समुदाय के लिए कई स्तरों पर विस्तार से काम करने की ज़रूरत है। उन्होंने UNDP की रिपोर्ट में कुछ ज़रूरी मुद्दों को शामिल करने की सलाह दी, जो इस प्रकार हैं-
1. कानून में कई इंटरसेक्शन को शामिल करने के लिए पहल- रेश्मा के अनुसार, भारत में हमारे समुदाय को लेकर जो कानून आया है, उसमें सिर्फ हमारे जेंडर एकस्पेटेंस पर बात है लेकिन हमें अन्य जिन अधिकारों की ज़रूरत है, जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है उसपर बात नहीं है। जैसे- शादी, एडॉप्शन।
हम चाहते हैं कि UN अपना एक चार्टर लेकर आए, जिसमें इन सब बातों को शामिल किया जाए। UN उस चार्टर को भारत सरकार के सामने पेश करे।
2. स्वास्थ्य पर विस्तार से बात- भारत में अभी भी LGBTQ+ कम्युनिटी के लिए स्वास्थ्य सुविधा एक गंभीर मुद्दा है, जैसे हमारी सर्जरी की ही जब बात आती है तो कई डॉक्टर्स इसको लेकर अभी भी अवेयर नहीं हैं। UN को इस मुद्दे को उठाना बेहद ज़रूरी है। कुछ ऐसा प्रोग्राम का आयोजन करे, जिसमें डॉक्टरों की तकनीकी ट्रेनिंग के साथ ही सोशल ट्रेनिंग का भी आयोजन हो।
3. रोज़गार का मुद्दा- सिर्फ रोज़गार के आंकड़े देने से कुछ नहीं होगा, हमारे समुदाय के रोज़गार के प्रतिशत में कमी की वजह क्या है, इसको आइडेंटिफाइ करने की ज़रूरत है। जैसे- पहले तो सामाजिक सोच की वजह से रोज़गार मिलना ही चुनौति है, जिन्हें मिल भी रहा है, उनके लिए वर्क स्पेस में क्या स्थिति है यह एक गंभीर मसला है। इसको लेकर अवेयरनेस प्रोग्राम पर बात हो, या फिर किन दूसरे उपायों से इस समस्या को अड्रेस किया जा सकता है। साथ ही रोज़गार मेले जैसे कार्यक्रम लगाए जा सकते हैं।
इसके अलावा भी कई मुद्दों को शामिल करना ज़रूरी है
UNDP रिपोर्ट में LGBTQ+ समुदाय की मुख्यत: सभी समस्याओं पर बात की गई है लेकिन उनकी क्या-क्या परतें भारत में देखने को मिलती हैं, उनको कैसे अड्रेस किया जा सकता है, इसपर विस्तार से बात नहीं है। जैसे एक बड़ी समस्या पारिवारिक स्ट्रक्टर की है, उसपर रिपोर्ट में बात नहीं है।
UNDP रिपोर्ट में पारिवारिक स्ट्रक्चर में LGBTQ+ समुदाय की स्थिति पर बात होनी चाहिए। वजह जब हम बात सामाजिक स्थिति की करते हैं तो हम यह नहीं भूल सकते हैं कि समाज परिवार से ही बनता है। अगर इस समुदाय को सामाजिक स्वीकृति दिलानी है तो पारिवारिक स्ट्रक्चर में भी उस तरह बदलाव की ज़रूरत है। उसपर काम कैसे हो, अभी क्या स्थिति है, इन सब पर बात बेहद ज़रूरी है।
जब रिपोर्ट के लिए विश्वभर के आंकड़ों को एकत्र करने के लिए गहराई से परिवारों में मौजूद परंपराओं, संस्कृति और मनोवृत्ति का अध्ययन किया जाता है, तब रिपोर्ट उन मनोवृत्तियों का अध्ययन क्यों नहीं कर सकता है, जिनमें इस समुदाय को नकारा जाता है?
ज़ाहिर है LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों को लेकर दुनियाभर के देशों में सहमति-असहमतियों का गहरा विरोधाभास है, इस विरोधाभास को कम करने या खत्म करके सहमती के दायरे में लाने के लिए UN को कई स्तरों पर काम करने की ज़रूरत है, जिसकी शुरुआत राष्ट्र या समाज के संस्थाओं के पहले परिवार के स्तर पर ही करनी होगी।
संपत्ति का अधिकार
LGBTQ+ समुदाय की संपत्ति के अधिकार पर बात ज़रूरी है, क्योंकि यहां उन्हें परिवार में स्वीकृति मिलना ही चुनौति होती है तो संपत्ति के अधिकार की बात तो दूर की है। लेकिन यह उनका अधिकार है, इसके लिए UN इस दिशा में बात कर सकता है, एक ज़रूरी पहल कर सकता है।
दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले LGBTQ+ समुदाय के लोगों पर अलग से बात
LGBTQ+ समुदाय से ताल्लुक रखने वाले वे लोग जो दलित समुदाय से आते हैं उनपर अलग से बात होनी चाहिए। आपने यह बात ज़रूर सुनी होगी कि एक समाज में एक महिला की स्थिति दलित के समान होती है और जब बात दलित महिला की हो तो उसकी स्थिति की कल्पना करना ही बेइमानी है। अब यहां महिलाओं के साथ ही LGBTQ+ समुदाय की स्थिति पर भी बात होनी ज़रूरी है, इसलिए UNDP रिपोर्ट में इस मुद्दे को भी शामिल किया जाना चाहिए था।