भारत में बिजली की बढ़ती मांग की वजह से कार्बन उत्सर्जन का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है और भविष्य में भी यह एक खतरे के रूप में देखा जा सकता है।
IEA के मुताबिक,
अगर बिजली की बढ़ती मांग की स्थिति वर्तमान जैसी ही रही तो भारत 2030 तक अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए कार्बन डायऑक्साइड का दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश हो जाएगा और 2040 तक भारत में बिजली की खपत आज के मुकाबले 3 गुना बढ़ जाएगी, जिससे कार्बन डायऑक्साइड के उत्सर्जन में करीब 80% तक वृद्धि होगी। हालांकि, इस बीच कार्बन डायऑक्साइड का सबसे बड़ा उत्सर्जक चीन ही रहेगा।
बकौल IEA,
- 2040 तक भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में बिजली की बढ़ती मांग का अधिकतर हिस्सा कोयले से ही पूरा होगा।
- हालांकि, हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि भारत ने 2005 की तुलना में अपनी अर्थव्यवस्था में ‘उत्सर्जन की तीव्रता’ {GDP (प्रति इकाई GDP के मुकाबले ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन) के आधार पर} को 30%-35% तक कम करने का प्रण लिया है लेकिन बढ़ते कोल पावर प्लांट्स के मद्देनज़र सरकार के इस दावे पर संशय होता है।
- साथ ही, कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्यों के तहत, भारत ने 2030 तक अपनी ऊर्जा खपत का 40% हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है और
- 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने का भी वादा किया है।
- इस मामले में वैश्विक विश्लेषक संस्था क्रिसिल ने 2019 में रिपोर्ट जारी कर बताया था कि 2030 तक तय किए गए लक्ष्य के मुताबिक भारत सही दिशा में काम कर रहा है।
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में भारत का कौन सा स्थान है?
नवंबर, 2019 में रिलीज़ हुई संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम की एमिशन्स गैप रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ग्रीनहाउस गैसों का चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है। बीते दशक में 55% ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए शीर्ष चार उत्सर्जक (चीन, अमेरिका, ईयू और भारत) ज़िम्मेदार हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक,
हर साल वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 7.6% गिरावट के बावजूद, दुनिया पेरिस जलवायु समझौते के तहत तय किए गए वैश्विक तापमान बढ़ोतरी 1.5°C (इस सदी के अंत तक) के लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकेगी। इन गैसों के उत्सर्जन में सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी ऊर्जा क्षेत्र और जीवाश्म ईंधन की है। इसके बाद, इंडस्ट्री का सबसे ज़्यादा योगदान है।
भारत में बिजली बनाने का मुख्य स्रोत क्या है?
बीपी स्टैट्सिकल रिव्यू ऑफ वर्ल्ड इनर्जी-2018 के मुताबिक,
- अगर भारत में 1985 से 2017 तक ऊर्जा उत्पादन के स्रोतों की बात की जाए तो कोयला इसमें सबसे आगे है।
- 2015 में, भारत कोयले की खपत के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़कर इस मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया था।
- हालांकि, कोयले की खपत के मामले में चीन पहले स्थान पर है या यूं कहें कि वह कोयला इस्तेमाल के चरम पर पहुंच चुका है।
- अगर 2017 की बात की जाए तो कोयले के ज़रिए 1141 टेरावाट ऑवर्स (twh), हाइड्रोपॉवर के ज़रिए 136 टेरावाट ऑवर्स और सोलर, विंड व बायोमास के ज़रिए 96 टेरावाट ऑवर्स बिजली का उत्पादन हुआ।
- आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में सोलर, विंड, बायोमास और जियोथर्मल के ज़रिए 63 टेरावाट ऑवर्स बिजली बनी जबकि 2017 में यह आंकड़ा 96 टेरावाट ऑवर्स हो गया।
- वहीं, 2017 में भारत में 80% बिजली का उत्पादन कोयले के ज़रिए हुआ और 2000 के बाद से भारत में कोयले से बिजली बनाने में तकरीबन 3 गुना तक वृद्धि हुई है।
द कार्बन प्रोफाइल के मुताबिक,
- जनवरी 2019 तक भारत के पास 221 गीगावाट्स (GW) के सुचारू रूप से चलने वाले कोयला प्लांट थे और सरकारी अनुमान में कहा गया है कि 2027 तक कोयले की क्षमता बढ़कर 238GW हो जाएगी।
- ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर के मुताबिक, भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कोयला फ्लीट है।
भारत में कोयला से क्या-क्या नुकसान हो रहे हैं?
भारत में कोल प्लांट्स से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को लेकर काफी रिपोर्ट्स और विशेषज्ञ चिंता व्यक्त कर चुके हैं। इसका अंदाज़ा लैंसेट प्लैनट हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है कि भारत में होने वाली हर आठ में से एक मौत प्रदूषित हवा के चलते होती है।
अंतरराष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी भी 2016 में यह चुकी है कि यदि ऊर्जा उत्पादन और उपभोग के तरीके को ना बदला गया, तो वायु प्रदूषण के कारण भारत समेत दुनियाभर में 2040 तक लाखों लोगों की मौत होगी।
खराब वायु गुणवत्ता के कारण विश्वभर में प्रतिवर्ष 65 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जो लोगों की मौत के लिए चौथा बड़ा खतरा है। भारत कोयले के निर्माण और आयात के मामले में दुनिया का चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है।
कोयले के इस्तेमाल से होने वाले वायु प्रदूषण को लेकर सरकार पर काफी सवाल उठते रहे हैं। भारत ने 2015 में कोयला संचालित ऊर्जा संयंत्रों से होने वाले वायु प्रदूषण के मद्देनज़र उत्सर्जन के नए मानक बनाए थे, जिन पर साल 2017 से अमल होना था। हालांकि, कंपनियों ने इन मानकों पर अमल नहीं किया और अब इसकी समयसीमा 2022 तक हो गई है।
कोयले से संचालित ऊर्जा संयंत्रों को लेकर भारत की क्या योजनाएं हैं?
द कार्बन प्रोफाइल के मुताबिक,
- भारत में 36GW के कोयला प्लांट्स का निर्माण किया जा रहा है और 58GW कोल प्लांट्स अभी शुरुआती चरण में हैं।
- बकौल कार्बन प्रोफाइल, भारत में नए कोल प्लांट्स लगाने की गति धीमी हो रही है।
अब सवाल यह उठ रहा है कि भारत में अक्षय ऊर्जा के गिरते दामों के बीच नए कोयला प्लांट्स बनाना कितना उचित होगा? कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा जा रहा है कि भारत के मौजूदा कोल प्लांट्स कब तक चल पाएंगे? इसके अलावा, भारत में कोयले की मांग के अनुमान भी बार-बार बदले जाते रहे हैं।
वहीं, क्लाइमेट ऐक्शन ट्रेकर (कैट) का कहना है कि कोयला संचालित बिजली उत्पादन की योजनाओं को ठंडे बस्ते में डालने से भारत की नीतियां 1.5 डिग्री सेल्सियस (इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान बढ़ने का पेरिस जलवायु समझौते का लक्ष्य) के अनुकूल हैं।
फोर्ब्स पत्रिका में छपे आर्टिकल के मुताबिक,
- भारत में पिछले कुछ वर्षों में अक्षय ऊर्जा स्रोतों की लागत 50% तक गिर गई है और आगे भी ऐसा रहने का अनुमान है।
- मौजूदा कोयले से संचालित ऊर्जा के औसतन होलसेल पावर प्राइस के मुकाबले नई पवन और सौर ऊर्जा अब 20% सस्ती है।
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स ऐंड फाइनेंसियल एनालिसिस (आईईईएफए) के मुताबिक,
- अक्षय ऊर्जा के गिरते दाम के बीच अमेरिका की तरह भारत में भी आर्थिक तौर पर कोयला संयंत्रों का टिक पाना मुश्किल है।
फोर्ब्स मैगज़ीन के मुताबिक,
- मौजूदा भारतीय कोयला उत्पादन का दो-तिहाई हिस्सा अब सौर या पवन उत्पादन से अधिक महंगा है।
IEEFA के मुताबिक,
- भारत में कुल ऊर्जा ज़रूरत का 25% देने वाली एनटीपीसी भारत में क्लीन एनर्जी के लिए एक बड़ा प्लेयर हो सकती है।
- वहीं, भविष्य में अक्षय ऊर्जा से सबसे बड़ा खतरा NTPC जैसी कंपनियों को है, जो अब भी बिजली का उत्पादन मुख्य तौर पर कोयले से कर रही हैं।
- 2017 में विदेशी कोयला आयात बंदकर NTPC ने अपना कोल ऑपरेटिंग कॉस्ट घटा लिया है लेकिन इसके बिजली के दाम अब भी सोलर और विंड ऊर्जा से पैदा होने वाली बिजली से अधिक हैं।
यह भी बात गौर करने लायक है कि भारत में अक्षय ऊर्जा बढ़ाने के लिए मुख्य चालकों में NTPC शामिल है और यह देश के सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा ऑफ टेकर्स में से एक है। यह भारत में मौजूदा 12 गीगावाट सौर क्षमता में से 3.6 गीगावाट के लिए ज़िम्मेदार है।
सौर ऊर्जा की लगातार गिरती कीमतों से यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि बिजली वितरक कंपनियां अब कोयला आधारित बिजली के वितरण को लेकर ज़्यादा उत्साहित नहीं हैं।
हालांकि, भारत से कोल संयंत्रों को हटाना इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि झारखंड जैसे कुछ राज्यों को हासिल होने वाले कुल राजस्व का आधा हिस्सा कोयले से ही प्राप्त होता है। ऐसे में हमें ऐसी वैकल्पिक नीतियां तलाशनी होंगी, जिससे इस सेक्टर में लगे हज़ारों मज़दूरों की रोज़ी-रोटी भी बच सके।
हमें यह बात हमेशा ध्यान में रखनी होगी कि जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से भारत की गिनती उन चुनिंदा देशों में होती है, जिन पर इसका सबसे ज़्यादा विपरीत असर होगा, क्योंकि भारत की अधिकतर आबादी कृषि और हिमालयी इलाकों से निकलने वाले पानी पर निर्भर है।
विश्व बैंक के मुताबिक,
- जलवायु परिवर्तन के चलते 2050 तक भारत को 1.2 ट्रिलियन डॉलर का ‘GDP घाटा’ हो सकता है और इसके लिए सबसे बड़े कारण बढ़ता तापमान और बेमौसम बारिश होंगे।
- वहीं, भारत ने यह भी कहा है कि उसे अपने पेरिस जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रण पर अमल करने लिए 2.5 ट्रिलियन डॉलर आर्थिक सहायता की आवश्यकता पड़ेगी।
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