छत्तीसगढ़ के रायपुर के जयस्तंभ चौक में भी देश की राजधानी दिल्ली की तर्ज पर शाहीन बाग तैयार हो गया है। यहां आज़ादी के नारे गूंज रहे हैं। भाषण के दौरान थोड़ी देर में बज रही तालियों से लोगों के उत्साह का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यह विरोध प्रदर्शन बीते 15-20 दिनों से चल रहा है। बावजूद इसके यहां लोगों का उत्साह देखते बनता है।
यहां जयस्तंभ चौक पर रस्सियों के सहारे एक घेरा बनाया गया है। घेरे के अंदर के इस परिसर में दरी व चटाई बिछी हुई है। इस पर महिलाएं और बच्चे बैठते हैं। घेरे के अंदर ही एक छोटा सा मंच भी है। मंच पर महात्मा गाँधी और बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का चित्र लगा हुआ है। इस मंच पर ही लोग बारी-बारी से अपनी बात रखते हैं।
धरने पर बैठी महिलाएं
प्रदर्शन वाली जगह के चारों ओर पोस्टर लगाए गए हैं। इन पोस्टरों में भारत के संविधान की प्रस्तावना लिखी गई है। इसके साथ ही इनमें सीएए और एनआरसी से प्रदर्शनकारियों को क्या परेशानी है, इसका भी क्रमवार उल्लेख किया गया है। प्रदर्शन स्थल के घेरे के पास ही कुछ दूरी पर लोग चार-पांच की झुंड बनाकर थोड़ी-थोड़ी दूर में खड़े हुए थे और आपस में चर्चा कर रहे थे।
इस प्रदर्शन में महिलाओं-बच्चों के साथ ही आसपास के कामकाजी लोग, प्रदेश के बड़े पत्रकार और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं। महिलाओं-बच्चों को छोड़कर बाकी लोग घेरे के बाहर खड़े होकर इस विरोध की आवाज़ का हिस्सा बनते हैं। इस प्रदर्शन में मुसलमान तो हैं ही, इसके साथ ही समाज के विभिन्न उम्र और वर्गों के लोग सीएए और एनआरसी के खिलाफ यहां अपनी आवाज़ बुलंद करते देखे जा सकते हैं।
93 साल की एक बुजु़र्ग महिला ने सबको जोश से भरा
रात के 10 बजे जब शहर की सड़कें सुनी होने लगती हैं, तब धरना स्थल पर लोगों की संख्या एकाएक बढ़ने लगती है। ऐसे समय में जब शहर के अन्य लोग घरों में सोने की तैयारी कर रहे होते हैं तब जयस्तंभ चौक के प्रदर्शनकारी दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार को इंकलाब के नारों से ललकार रहे होते हैं।
इस प्रदर्शन में दिन पर दिन लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है।
पिछले कुछ दिनों से मैं इस प्रदर्शन को करीब से देख रहा हूं। बीते बुधवार को यहां 93 साल की एक बुजु़र्ग महिला भी पहुंची थीं। उन्होंने भी अपनी बात लोगों के सामने रखने की इच्छा जताई। इस उम्र में भी उनका जज़्बा कमाल का था। अपनी बात रखते हुए वे कहती हैं,
एक समय था जब हमने अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी। अब अपने ही मुल्क में अपनी आज़ादी के लिए फिर से लड़ेंगे क्या?
इसके बाद उन्होंने धीमी आवाज़ में इंकलाब ज़िंदाबाद का नारा भी लगाया। भीड़ बुलंद आवाज़ के साथ उस ज़िंदाबाद का हिस्सा बन गई। पूरा जयस्तंभ चौक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रुचिर गर्ग बताते हैं कि इस बुजु़र्ग महिला का नाम शीला भगवानानी है। उनका जन्म 13 जनवरी 1928 को पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था। शीला जी स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय गुलाब भगवानानी की पत्नी हैं।
गुलाब भगवानानी अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ते हुए 17 साल की उम्र में पहली बार जेल गए थे। अलग-अलग समय में वे करीब तीन वर्ष जेल में रहे। आखिरी बार 2 वर्षों तक जेल में रहे थे। उनकी रिहाई आज़ादी के बाद हुई थी।
इसके साथ ही रुचिर गर्ग ने यह भी बताया कि गुलाब भगवानानी के पुत्र अधीर भगवानानी ना केवल व्यवसायी हैं बल्कि रायपुर में हर विरोध में, हर रचनात्मक कार्यक्रम में उनकी सक्रिय भागीदारी होती है। भगवानानी परिवार साल 1957 से रायपुर में रह रहा है।
भाजपा के कार्यकर्ता ने भी माना कि यह कानून गलत
इसी तरह बीते शुक्रवार को प्रदर्शन में शामिल एक अन्य व्यक्ति जिया कुरैशी से मुलाकात हुई। कुरैशी मंच पर अपनी बात रखते हुए कहते हैं,
लोग पूछ रहे थे कि तुम रोज़ यहां आते हो लेकिन कुछ बोलते नहीं हो। तुम कौन हो? मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि मैं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कार्यकर्ता हूं लेकिन मैं पार्टी का गुलाम नहीं हूं। जो गलत है उसे गलत कहने से पीछे नहीं हटूंगा।
भाषण के बाद जिया कुरैशी से मेरी बातचीत हुई। कुरैशी बैजनाथ पारा रायपुर के रहने वाले हैं। उनकी जूते-चप्पल की दुकान है। कुरैशी ने बताया कि उन्होंने भाजपा के टिकट पर ही पार्षद का चुनाव भी लड़ा है। हालांकि वे इस चुनाव में हार गए थे।
यह पूछने पर कि सीएए और एनआरसी पर आपका नज़रिया आपके पार्टी के नज़रिये से अलग है, क्या पार्टी में आपको इससे कोई समस्या होगी, कुरैशी कहते हैं कि उन्हें किसी का डर नहीं है। वे कहते हैं,
मैं पार्टी के लिए अपने ही लोगों पर आई आफत से मुंह नहीं मोड़ सकता। मेरी अंतरात्मा सरकार के इस काले कानून को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।
एक अन्य प्रदर्शनकारी अमित मिश्रा से जब मैंने कहा कि अमित शाह के हालिया बयानों से ऐसा नहीं लगता कि वे इस कानून पर एक इंच भी पीछे हटेंगे। इस पर वे पहले तो हंसते हैं लेकिन फिर गंभीरता के साथ कहते हैं,
हम चुप नहीं बैठ सकते। अमित शाह चालाक हैं। वे लगातार अपने बयान बदल रहे हैं। लगता है नरेंद्र मोदी और अमित शाह में तालमेल नहीं है। अब हमारा इस सरकार पर भरोसा नहीं रहा। लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करना हमारा अधिकार है।
घेरे के अंदर बैठी महिलाओं और लड़कियों ने हाथ में तिरंगा थाम रखा था। कुछ बच्चियों के हाथ में तिरंगे झंडे का चित्र बना हुआ पोस्टर भी था। इस पोस्टर पर मशहूर शायर मुहम्मद इकबाल द्वारा लिखे तराने की पहली पंक्ति “सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा” लिखा हुआ था। पूछने पर बच्चियों ने बताया कि यह चित्रकारी उन्होंने मास्टर जी के कहने पर खुद की है। इसे उन्हें स्कूल में मास्टर जी को दिखाना भी है। इसके साथ ही वे बताती हैं कि प्रदर्शन में आते वक्त उनके पास कुछ भी नहीं था इसलिए वे स्कूल वाला पोस्टर लेकर ही आ गए हैं।
इसके अलावा कुछ प्रदर्शनकारियों के हाथों में तख्तियां भी थीं। इन तख्तियों में सरकार के खिलाफ कड़े संदेश लिखे हुए थे। कुछ तख्तियों में हिंदू-मुस्लिम एकता की बात की गई थी। इनमें लिखा था “तुमसे पहले भी भारत था, तुम्हारे बाद भी भारत होगा”, “खूब कमाया झगड़ों से, मत पहचानों कपड़ों से”, “हम भारत माता की संतान, क्यों दें अपनी कागज़ी पहचान”, “कागज़ नहीं दिखाएंगे।”
प्रदर्शन के अंत में मंच से राष्ट्रगान गाया गया। इस दौरान जो जहां था वहीं सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया। सबने राष्ट्रगान गुनगुनाया। इसके बाद लोग कल फिर आने की बात कहकर अपने-अपने घरों की ओर चल दिए।
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि दिल्ली के शाहीनबाग में संविधान बचाने के लिए बैठीं महिलाओं से प्रेरणा लेकर आज देशभर में जगह-जगह शाहीनबाग तैयार हो रहा है। प्रदर्शनकारियों को यह ताकत देश के संविधान और तिरंगे झंडे से मिल रही है।
देश के गृहमंत्री भले ही कह रहे हों कि वे इस कानून पर एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे पर इधर प्रदर्शन पर बैठी ये महिलाएं भी हार मानने को तैयार नहीं हैं। ऐसा लगता है कि संविधान विरोधी सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ हो रहे इन प्रदर्शनों को सरकार जितना दबाएगी, यह आंदोलन उतना ही मज़बूत होकर उभरेगा।