हमारे देश में 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ और तब से इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। गणतंत्र का शाब्दिक अर्थ है गण का तंत्र, मतलब आम आदमी का शासन। यह भी कह सकते हैं कि देश के नेत्रृत्व के लिए अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार सिर्फ जनता के पास है।
गणतंत्र में राष्ट्र प्रमुख निर्वाचित होता है
गणतांत्रिक प्रणाली में राष्ट्र का मुखिया वंशानुगत नहीं हो सकता है। वह सीधे तौर पर या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित किया जाता है। आधुनिक अर्थों में गणतंत्र का मतलब सरकार के उस रूप से है जहां राष्ट्र का मुखिया राजा नहीं होता है लेकिन यह भी कड़वी सच्चाई है कि हमारे देश का संविधान आज तक व्यावहारिक रूप में पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाया है।
भारत में दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। भारतीय संविधान में देश के हर एक नागरिक को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का स्पष्ट व्याख्या किया गया है जिसके बल पर हर नागरिक पूरी स्वतंत्रता और सम्मान के साथ अपनी ज़िन्दगी जी सकता है। इन सबके बीच अफसोस यह है कि कुछ लोगों के पास सारे संवैधानिक अधिकार होने के बावजूद भी जीवन जीने का अधिकार नहीं है।
समस्याओं से जूझता देश
देश में अभी भी अपराध, भष्टाचार, हिंसा और आंतकवाद जैसी चीज़ों के सामने आम नागरिक घुटने टेक देता है। भले ही इनसे लड़ने की कोशिश जारी है लेकिन अभी भी हमें आशातीत सफलता नहीं मिली है। हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष की बात पर ज़ोर देते हुए समानता की बात करता है।
एक ऐसे समाज निर्माण की बात करता है जिसमें सभी देशवासी समान हों, सब को अपना अपना हक मिले लेकिन हमारा देश आज मज़हब, जाति और समुदाय के नाम पर बांट दिया गया है। आज भी देश भूख और गरीबी से उबर नहीं पाया है।
आज भी फुटपाथ पर लोग ठंग से कांपते दिख जाएंगे। देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तक में बहू-बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही है।
कुछ लोग हमारे सिस्टम को दीमक की तरह खा रहे हैं। भ्रष्ट लोगों की वजह से लोग अपने परिजनों की लाश अपने कंधों पर ढोने को विवश हैं। गुनहगारों को सलाखों के पीछे भेजने के बजाय हमारा कानून व्यवस्था मूकदर्शक बन गया है।
गण को नहीं मिला उसके हिस्से का हक
गणतंत्र का मतलब है कि गण की इच्छा के अनुसार तंत्र फैसले ले मगर क्या वास्तव में गण के मन मुताबिक फैसले लिए जा रहे हैं? जब हम देश के तंत्र का अवलोकन करते हैं तब पता चलता है कि यहां नेताओं का तंत्र मज़बूत हुआ है लेकिन जनता की हालत वैसी ही है।
सत्ता पाने के लिए देश में नेताओं द्वारा गैर कानूनी और गैर संवैधानिक तरीके अपनाए जाते हैं। भोली भाली जनता ने हमेशा सत्ता की कुंजी उसी को सौंपी जिसने गरीबों और दबे कुचले लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करने के वादे किए थे।
खैर, गरीबी-अमीरी के बीच खाई घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। संविधान में दर्ज लोकतंत्र की जमकर धज्जियां उड़ाई गई हैं। आपातकाल का दौर भी देश ने देखा और समय-समय पर अघोषित सेंसरशिप भी देखा।
बुनियादी सुविधाओं की कमी
आज देश में शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी तक बिकने लगा है। खनिज संसाधनों और वन संसाधनों की लूट मची हुई है। भूखी जनता का पेट भरने का नारा दिया जाता है मगर लोगों ने सत्ता चुनने वालों को जाति धर्म, अमीरी और गरीबी में बांट दिया है।
व्यक्ति बदल जाता है मगर सत्ता एक वोट के सौदागर से दूसरे वोट के सौदागर के पास चला जाता है। गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाएं पार्टियों के मैनिफेस्टो से बाहर कभी निकलती ही नहीं है। सत्ताधारियों ने पूंजीपतियों को निशाने पर लेकर गरीबों की बात की लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ खास असर दिखाई पड़ रहा है।
हमारे गणतांत्रिक प्रणाली में लगातार सुधार की गुंजाइश है। धर्म और जाति से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण की बात करने की ज़रूरत है। भारत में सच्चा गणतंत्र तभी धरातल पर उतर पाएगा जब हर नागरिक अपना कर्त्तव्य सच्ची निष्ठा से निभाएगा।