कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के समय सरकार ने कहा था कि यहां के बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, उन्हें बेहतर मौका मिलेगा लेकिन सरकार के इस फैसले ने हमारी पूरी लाइफ बर्बाद कर दी है। 4 महीने से एक जगह बैठने का मतलब आप समझते हैं?
वैसे, कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने के बाद कुछ नहीं हुआ है, कुछ नहीं बदला है। बस, हम कश्मीरी बच्चे पिछले चार महीनों से चारदीवारी के बीच रह रहे हैं, हम बस उन दीवारों को देखते हैं। वजह, 4 अगस्त से बंद हुआ हमारा स्कूल, कॉलेज यूनिवर्सिटी अब तक बंद है। बंद पड़े स्कूल-कॉलेजों में सर्दियों की छुट्टियां घोषित की गई हैं, यह मज़ाक ही तो है।
हां, कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने के बाद कुछ नहीं बदला है, बस हम कश्मीरियों से स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी की पढ़ाई छीनने के साथ ही हमारी शिक्षा के स्त्रोत इंटरनेट को भी हमसे छिन लिया गया है।
4 अगस्त से कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन है। इस दौर में जीने वाला कोई भी इंसान इस बात को बेहतर तरीके से समझ सकता है कि बिना इंटरनेट के जीने का मतलब क्या होता है। इंटरनेट कनेक्शन के साथ स्मार्टफोन हमें पूरी दुनिया से जोड़ने का काम करता है, हमें उस दुनिया से दूर करने का काम किया जा रहा है।
इंटरनेट शटडाउन का सबसे ज़्यादा असर युवाओं और बच्चों की शिक्षा पर
इंटरनेट शटडाउन का सबसे ज़्यादा असर युवाओं और बच्चों पर पड़ा है। वे ना ही स्कूल-कॉलेज जा पा रहे हैं, ना ही ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं। इन दिनों उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले स्टूडेंट्स किताबों के साथ-साथ कई रिसर्च पेपर पर भी निर्भर होते हैं, जो उन्हें PDF के रूप में आसानी से ऑनलाइन उपलब्ध हो जाते हैं। अब आप बस उनकी स्थिति समझ सकते हैं। वे ना ही किताबें ऑर्डर कर सकते हैं, ना ही इंटरनेट पर रिसर्च पेपर पढ़ सकते हैं।
इन युवाओं और बच्चों के पास महंगे-महंगे स्मार्टफोन्स तो हैं मगर उनका अभी कोई मतलब नहीं है। वे उसपर अपना ब्लॉग चलाते थे, कई युवाओं ने अपना स्टार्टअप खोला था, इंटरनेट शटडाउन ने उन सभी को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
इंटरनेट के साथ ही हमारे यहां SMS सर्विस भी बंद कर दी गई है। मैं पिछले कई महीनों से दिल्ली में हूं लेकिन यहां रहते हुए भी मैं ऑनलाइन ट्रांसजेक्शन नहीं कर पा रही हूं। वजह, मुझे किसी भी ट्रांजेक्शन के लिए मेरे कश्मीर के नंबर पर ही OTP आएगा, अब जब वहां की SMS सर्विस ही ठप पड़ी हुई है, तो OTP कैसे आएंगे।
इंटरनेट बंद होने की वजह से यहां के स्टूडेंट्स कोई ऑनलाइन फॉर्म तक नहीं भर पा रहे हैं। अभी हाल ही में जब NEET का फॉर्म आया था, उस वक्त भी स्टूडेंट्स को NEET के सेंटर में जाकर फॉर्म भरना पड़ा था और इसके लिए सिर्फ एक ही सेंटर खोला गया था, अब आप स्थिति खुद ही समझ लीजिए।
जी बिलकुल, कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने से कुछ नहीं बदला है। बस, मेरे भाई, बहन, मॉं-पापा समेत हमारे पूरे घर का रूटीन बदल चुका है। कोई भी अपने काम पर नहीं जा रहा है, कोई भी स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी या लाइब्रेरी नहीं जा रहा है।
मास प्रमोशन एक खतरनाक स्थिति
इस तरह की स्थिति में स्कूलों का बंद किया जाना सबसे खतरनाक स्थिति है। आधिकारिक तौर पर तो स्कूलों को खुला माना जाता है लेकिन कोई भी स्कूल जाने की हिम्मत नहीं करता है। लोगों के अंदर यह डर रहता है कि यदि वे स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाएंगे तो उनके साथ कुछ भी हो सकता है।
अब चारों ओर लगातार बम विस्फोट की घटनाएं हो रही हैं। पिछले महीने भी कश्मीर यूनिवर्सिटी के पास बम विस्फोट हुआ था। जो बच्चे स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी जाते थे, वे अब चार महीने से अपने घरों में बैठे हैं। मुझे भी लगता है कि मेरी 2 साल की मास्टर डिग्री पूरी होने में एक अंतहीन समय लगेगा।
इन स्थितियों में यहां के शिक्षण संस्थानों में निरक्षरता का स्तर बढ़ेगा। हमारे बच्चे अगली कक्षा में प्रमोट तो हो जाएंगे, उन्हें डिग्रियां तो मिल जाएंगी मगर उनकी शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ेगा। बिना क्लास अटेंड किए स्टूडेंट्स के मास प्रमोशन का क्या मतलब है?
मैंने देखा है बाढ़ की वजह से 8वीं क्लास के स्टूडेंट्स को बिना किसी परीक्षा के 9वीं क्लास में प्रमोट कर दिया गया था। जब वे 10वीं कक्षा में थे, तो उनके पाठ्यक्रम को हड़ताल की वजह से आधा हटा दिया गया। जब उस बैच ने 12वीं की परीक्षा दी तो ज़्यादातर बच्चे फेल हो गएं, क्योंकि उनकी पढ़ाई का बेसिक क्लीयर ही नहीं था। कश्मीर में शिक्षा की इस स्थिति को खत्म किए जाने की ज़रूरत है।
मैं अपने प्रोफेसरों और अपने दोस्तों से वापस से मिलने के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रही हूं।
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यह लेख ओरिजनल में अंग्रेज़ी में पब्लिश हुआ था, यह उसका हिंदी अनुवाद है।