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“इन 71 सालों में हमने सपेरों से मंगल तक का सफर तय किया है”

स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हमारी भविष्यवाणी की गई कि हम बहुत जल्द बिखर जाएंगे। क्लॉउड ऑचिनलेक (ब्रिटिश भारत सेना के पूर्व कमांडर इन चीफ) के 1948 में परोसे गए विचारों पर गौर करें,

पंजाबी ठीक उसी प्रकार मद्रासी से भिन्न है, जैसा कि स्कॉटिश किसी इटालियन से। अंग्रेज़ों ने इसे एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन उसे स्थाई तौर पर कुछ हासिल नहीं हुआ। अनेक राष्ट्रों के किसी महाद्वीप से किसी राष्ट्र का निर्माण नहीं किया जा सकता।

आज हम 71वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं, जो महात्मा गाँधी जी के 150वीं जन्म शताब्दी वर्ष के कारण और भी विशेष है। गणतंत्र की हमारी उपलब्धियां कम नहीं हैं, बल्कि इतने वर्षों में हम और भी मज़बूत हुए हैं और पश्चिम के तमाम विचारकों के सिद्धांत को हमने बौना साबित किया है।

आज बापू होते तो

आज जब देश 71वां गणतंत्र दिवस मना रहा है, तो इस अवसर पर बापू को भी याद कर लें। वह एक व्यक्ति के रूप में भले ही नश्वर हों परंतु एक विचार व आदर्श के रूप में शाश्वत हैं। किन्तु आज इस महत्वपूर्ण अवसर पर देश के बड़े हिस्से में सरकार के खिलाफ क्रोध है, आग है व कुछ उन्माद भी। सरकार के गलत निर्णयों के खिलाफ बोलना एक मज़बूत लोकतंत्र के लिए अच्छा ही है। आज बापू होते तो वो भी यही करते, चाहे कोई अंजाम क्यों न भुगतना पड़ता।

बापू ने लिखा भी है कि यदि आमजन को लगे कि सरकार उसके हित में कार्य नहीं कर रही, तो लोकतंत्र में राजद्रोह धर्म बन जाता है।

लोकतंत्र में जनता का कर्तव्य इससे कठोर शब्दों में बापू के अलावा कोई स्कॉलर नहीं बता सकता है। किंतु, बापू ने इस ओर इंगित नहीं किया कि सरकार के विरोध के आड़ में आप राष्ट्र तोड़ने की बात करें। विरोध करते समय यह ध्यान रखें कि देश के अभिन्न अंग जम्मू कश्मीर व असम को आज़ाद करने की मांग आपके बीच से न उठे। वरना जिस प्रकार चौरीचौरा कांड के बाद बापू ने दुःखी होकर आंदोलन वापस ले लिया था, आज फिर राजघाट पर सोए बापू के आंखों से आंसू निकल आएंगे।

बापू ने विरोध के समय में सबसे ज्यादा साधन की शुचिता पर बल दिया है। इस गणतंत्र दिवस पर “संविधान की प्रस्तावना” पढ़ने से पहले बापू की साधन शुचिता की बातों का स्मरण करें और आत्मवलोकन करें।

सपेरों से मंगल तक का सफर

71 वर्षों के इस गणतांत्रिक सफर में सपेरों के इस देश ने मंगल तक का सफर तय किया है। हमनें बुद्ध के विश्व शांति का संदेश व महात्मा गांधी के अहिंसा का संदेश पूरे विश्व में सबसे ऊंची आवाज बुलन्द किया है। हम इन वर्षों में राजनैतिक कुशलता के कारण परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बने। हमने ओलंपिक व राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन किया है। हम हर दिन एक नए आकाश को छूते जा रहे हैं।

किन्तु आज भी बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जिनमें अभी और मेहनत की ज़रूरत है। आज भी सामाजिक गैर बराबरी मजबूती से समाज में कायम है। यह चिंताजनक है, पर लोकतांत्रिक राष्ट्र होने के कारण हमें इस पर गंभीर होना पड़ेगा।

संविधान ने छुआछूत खत्म कर दिया है (अनुच्छेद 17) और सभी समुदाय को बराबर का दर्जा दिया है। परंतु आज भी भारत में कार्यस्थल और घरों में महिलाओं को अक्सर असमान्य व्यवहार का सामना करना पड़ता है। महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए मशीनरी को दुरुस्त करना होगा।

गणतंत्र में महिलाओं की उपलब्धियां कम नहीं हैं, मतदान प्रतिशत में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी इसका सबूत है किंतु हमें और कार्य करने की ज़रूरत है।

संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में भीमराव अम्बेडकर ने टिप्पणी की थी,

26 जनवरी,1950 को हम अंतर्विरोध भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमें समानता होगी और सामाजिक जीवन में हमारे पास विषमता होगी

यह टिप्पणी सत्य साबित होती मालूम होती है। गाँधी जी के प्रार्थना सभा में हर कोई जा सकता था, किन्तु आज हमारे मंत्रियों व राजनेताओं के इर्द गिर्द घूमते सुरक्षा के प्रोटोकॉल के कारण गण और तंत्र के बीच की दूरी इसका प्रमाण हैं।

संविधान से पर्यावरण तक को बचानो की ज़रूरत

एक और समस्या, जिसे शायद आज हम नहीं समझ पा रहे किन्तु आने वाले समय में वह दैनिक जीवन में महसूस होगी, वह है पर्यावरण की समस्या। पर्यावरण के दूषित होने का सबसे ज़्यादा प्रभाव गरीबों पर पड़ता है। इसीलिए शायद देश के किसी राजनैतिक दल की नजर इस मुद्दे पर नहीं पड़ती है।

आज हमारे पास आधुनिक तकनीक उपलब्ध हैं, हमारे पास विशेषज्ञ लोग हैं किंतु उनकी बातों को अनसुना किया जा रहा है, यह गाडगिल रिपोर्ट व हाल-फिलहाल में हुई दैवीय आपदाओं के समय महसूस किया जा सकता है।

एक और विषय जिसपर गंभीर चर्चा की आवश्यकता है, वह है हमारे लोकतांत्रिक व सार्वजनिक संस्थाओं के मूल्यों व आदर्शों में कमी। इन संस्थाओं का निर्माण आमजन के हित के लिए किया गया था, किंतु बीते तीन-चार दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो इनका उपयोग राजनैतिक गलियारों ने अपने मन मुताबिक किया है।

हमें कमान संभालनी पड़ेगी

इस देश में सार्वजनिक संस्थाओं पर सबसे ज़्यादा नियंत्रण करने की कोशिश इंदिरा गाँधी ने की थी। उन्होंने जो शुरुआत की थी, उसे अन्य दल आगे बढ़ा रहे हैं। आज भी आरटीआई एक्ट से छेड़छाड़, पुलिस का राज्य के प्रति झुकाव व सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग आये दिन देखने को मिलते हैं।

आज हम तय करें कि जिन संस्थाओं का निर्माण स्वायत्त रूप से कार्य के लिए बना हो, वो अपना काम ठीक से कर सकें।
आज इस भारत के राजनैतिक दलों द्वारा निर्मित लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण हो गया है कि हम सरकार के साथ साथ राजनैतिक दलों पर भी नियंत्रण रखें। राजनैतिक दलों के चुनावी चंदों में पारदर्शिता नहीं है।

चुनावी दल, संज्ञेय अपराध के अपराधियों को चुनाव में उतार रहे हैं, उनके चुने जाने से हमारे सदन दूषित हो रहे हैं, जिसका भारत के दैनदिन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा विरोधी आवाजें दबाई जा रही हैं। लोकतंत्र में आलोचकों और सभ्य समाज की अत्यंत आवश्यकता होती है। लोकतंत्र में आलोचना का स्वागत किया जाना चाहिए, दमन नहीं। किसी भी सरकार को कभी भी अपने आलोचकों का चयन नहीं करना चाहिए।

महिला सुरक्षा के लिए विरोध प्रदर्शन

न्याय होना ही पर्याप्त नहीं

एक विषय, जिसपर मैं निजी रूप से विशेष सरोकार रखता हूं, वह है धीमी न्याय व्यवस्था। धीमी न्यायव्यवस्था के बावजूद आम जनमानस का आज भी न्यायालय पर भरोसा कायम है। न्यायिक व्यवस्था का कार्य salus populi est suprema lex (the welfare of the people is supreme law) है।

अमेरिकी न्यायमूर्ति हेवर्ट ने कहा था कि न्याय का होना मात्र ही पर्याप्त नहीं होता, अपितु ज़रुरी है कि जनमानस को यह लगे भी कि न्याय हुआ है। हम भी रोज़ सुनते आ रहे हैं “Justice delayed is justice denied”।

टाटा ट्रस्ट व विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की ओर से जारी “इंडिया जस्टिस रिपोर्ट” की मानें तो न्याय में देरी का एक महत्वपूर्ण कारक है, पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर का ना होना। विधयिका यह सुनिश्चित करे कि न्यायालय को अपना काम-काज निपटाने के लिए पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर मिले। जब कार्य करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध होंगे तो न्यायमूर्ति हेवर्ट के शब्दों में कहें तो जनमानस को न्याय महसूस होगा।

अगस्त 1947 में हम उपनिवेशवादी शासन से आज़ाद हुए और आज के दिन 1950 में गणतांत्रिक संविधान को अंगीकृत किया। अंग्रेज हमें जैसा छोड़ कर गए थे, उससे हम बहुत आगे निकल आये हैं, और शायद आने वाले वर्षों में उनसे भी आगे निकल जाएंगे। लेकिन अभी भी हम पूर्ण रूप से अभी भी संविधान निर्माताओं के सपनों के भारत को साकार करने में असफल रहे हैं। उन्होंने जिस मानक को बनाया था, अभी हम उससे कई कोस पीछे हैं।

यदि हम उनके द्वारा बनाये गए मानकों को प्राप्त करना चाहते हैं, यदि बापू ने जिस “रामराज्य” की परिकल्पना की थी, उस “रामराज्य” को सिद्ध होते देखना चाहते हैं तो आज 71वें गणतंत्र दिवस पर हम इन कमियों पर गौर करें और इन्हें दुरुस्त करने के लिए कदम बढ़ाएं।

एक बार फिर आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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