सुंदर वही है, जिसके कर्म सुंदर हो। अभी हाल ही में जोजिबिनी टुंजी का मिस यूनिवर्स बनना, हमें संकेत देता है कि सुंदरता को सांवलेपन या गोरेपन के पैमाने पर ही नहीं तौला जा सकता है। सुदंरता हमारे कर्म से निर्धारित होती है।
मिस यूनिवर्स 2019 का ताज पहनने से पहले जोजिबिनी टूंजी ने मंच पर कहा था,
मैं एक ऐसी दुनिया में पली-बढ़ी हूं, जहां मेरी तरह की, मेरी जैसी त्वचा या मेरे तरह के बालों वाली महिलाओं को सुंदर नहीं माना जाता है। मुझे लगता है कि आज वह समय है, जब इसे बंद किया जाना चाहिए। मैं चाहती हूं कि बच्चे मुझे देखें, मेरे चेहरे को देखें और फिर मुझमें झलकने वाले अपने चेहरों को देखें।
अगर हम इतिहास को भी टटोलने की कोशिश करेंगे, तो देखेंगे कि रंगभेद की आग में दक्षिण अफ्रीका हमेशा जलता रहा है, किंतु टुंजी का मिस यूनिवर्स का खिताब अपने नाम करना समाज के लिए ज़रूर एक सकारात्मक संदेश है। उस समाज के लिए जो आज भी कर्म को छोड़कर इंसान का रंग देखकर उनकी काबिलियत तय करता है।
आज भी हमारे समाज में जब शादी की बात आती है, तो समाज का सबसे पहला पैमाना होता है वधू गोरी होनी चाहिए। उस समय हम सारे कर्म को भूल जाते हैं, हमारी पसंद बस उजली चमड़ी हो जाती है।
बाज़ारवाद और रंगभेद
हमारे देश में बाज़ारवाद इस तरह से हावी है कि मार्केट में तमाम तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट्स मिल जाएंगे, जो गोरा बनाने का दावा करते हैं। यह बाज़ार रंगभेद को बढ़ावा देने का काम करता है।
हालांकि, आज भी हमारे देश में कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की है। अभी कुछ समय पहले ही तेलुगू अभिनेत्री साई पल्लवी ने फेयरनेस क्रीम के 2 करोड़ के विज्ञापन का ऑफर ठुकरा दिया था।
क्या साई पल्लवी जैसी सोच समाज के हर नागरिक की हो सकती है?
आज के दौर में गोरे रंग का दावा करने वाली ब्यूटी प्रोडक्ट्स कंपनियों ने बाज़ार पर पकड़ बना ली है। इसकी वजह हम खुद हैं, जो गोरे रंग को ही सुदंरता का पैमाना बना लेते हैं। यह हमारी संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है।
खैर, टुंजी का यह खिताब निश्चित रूप से उन महिलाओं को हौसला देगा, जो अपने डार्क रंग की वजह से खुद को कम आंकती हैं। साथ ही हमारे समाज के लिए भी कड़ा संदेश है कि सुंदरता विचार में भी होनी चाहिए ना कि रंग में। टुंजी ने भी रंगभेद के खिलाफ अपने देश में काफी संघर्ष किए हैं।