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नागरिकता कानून से क्यों डरा हआ है अफसर से लेकर आम आदमी?

नागरिकता संशोधन बिल पर पूर्वोत्तर राज्यों में बड़ी संख्या में आंदोलन हो रहे हैं। कई शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। सुरक्षा बलों की भारी तैनाती है। सुरक्षाबलों की फायरिंग में कुछ लोगों के मारे जाने की भी खबर है। देश के अन्य क्षेत्रों में भी इसको लेकर प्रदर्शन चल रहे हैं।

आईपीएस ऑफिसर अब्दुर्रहमान

महाराष्ट्र कैडर में 21 साल से अपनी सेवा देने वाले आईपीएस ऑफिसर अब्दुर्रहमान नें नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। अब्दुर्रहमान ने कहा,

यह विधेयक भारत के धार्मिक बहुलवाद के खिलाफ है। मैं सभी न्यायप्रिय लोगों से अनुरोध करता हूं कि वे लोकतांत्रिक तरीके से इसका विरोध करें। यह संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।

पहले भी हुआ है सरकार का विरोध

यह पहली बार नहीं है कि किसी बड़े अफसर ने सरकार का विरोध किया है। इसके पहले भी कश्मीर मसले पर आईएएस ऑफिसर कन्नन गोपीनाथ ने अपने पद से इस्तीफा दिया हैं। तब उन्होंने कहा था,

बोलने की और सवाल करने की आज़ादी खत्म हो गई है।

कन्नन गोपीनाथ से पहले जम्मू कश्मीर से आईएएस बने शाह फैसल ने भी अपना विरोध दर्ज कराते हुए इस्तीफा दे दिया हैं। शाह फैसल 2009 बैच के अधिकारी हैं।

आईएएस अफसर कन्नन गोपीनाथ

आपको बता दें कि अब्दुर्रहमान ने 4 महीने पहले ही व्हीआरएस(VRS)  के लिए अर्जी दाखिल की थी जिसे गृह मंत्रालय ने अस्वीकार कर दिया था। यह जानकारी उन्होंने अपने एक ट्वीट में बताई है। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ कोई भी विभागीय जांच नहीं चल रहा है फिर भी ऐसा क्यों किया गया?

शरीन दलवी नें पुरस्कार लौटा दिया

ऐसा नहीं है कि सरकार का विरोध सिर्फ बड़े अफसर ही कर रहे हैं। बल्कि उर्दू की मशहूर पत्रकार शिरीन दलवी ने भी अपना पुरस्कार वापस किया है। शिरीन ने अपने पोस्ट में लिखा,

मुझे बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार के नागरिकता संशोधन बिल के पास कराए जाने की खबर से दुख हुआ है। नागरिकता बिल के ज़रिए हमारे संविधान और धर्मनिरपेक्षता पर हमला किया गया है और इस अमानवीय कानून के विरोध में मैं अपना राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर रही हूं।

शिरीन दलवी

बड़े-बड़े लोगों में अगर नागरिकता कानून को लेकर इतना भय है, तो आम लोगों के मन में क्या चल रहा होगा? कर्नाटक में कई मस्जिदों में नागरिकता केंद्र लगाए गए हैं। जहां पर लोगों को अपने डॉक्यूमेंट बनवाने को लेकर मदद की जा रही है।

एक बात नागरिकता कानून से स्पष्ट हो गई है कि वंश एवं भाषा की संस्कृति धर्म की संस्कृति से बढ़कर होती हैं।

जिस असम आंदोलन ने एनआरसी की मांग की थी, वह वंश और भाषा के आधार पर थी। वह सभी घुसपैठियों को असम से बाहर कर देना चाहते थे। घुसपैठिए हिंदू हैं या मुस्लिम इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है।

इस वक्त पूर्वोत्तर में हालात काफी नाजु़क बने हुए हैं। पूर्वोत्तर भी क्या दूसरा कश्मीर बन जाएगा? इस सवाल का जवाब आने वाला वक्त ही देगा।

एक बात और साफ है हर किसी मसले को हिंदू मुस्लिम चश्मे से नहीं देखा जा सकता हैं और ना ही हल किया जा सकता है।

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