आखिरकार बुधवार की शाम नागरिकता संशोधन अधिनियम राज्यसभा से भी पारित हो गया। अब यह कानून बनने से महज़ एक कदम दूर रह गया है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह एक कानून का रूप धारण कर लेगा।
बुधवार को जब राज्यसभा में इस बिल पर बहस हो रही थी तब पूरा उत्तर पूर्व इसके विरोध में सड़कों पर उतरा हुआ था। उत्तर पूर्व की जनता की आवाज़ दबाने के लिए उसी अर्द्धसैनिक बल को भेजा जा रहा था, जिसके बल पर अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर के लोगों की आवाज़ दबाई गई थी।
This is last night in Assam, where thousands protested India’s new citizenship bill.
India media is barely covering the opposition because they want to mask the truth.
People of conscience across the world are resisting Modi. Join us.pic.twitter.com/as9PkAWMHm
— Arjun Sethi (@arjunsethi81) December 11, 2019
सबके विरोध की अलग-अलग वजहे हैं। उत्तर पूर्व के लोग यह विरोध संविधान और अपनी संस्कृति बचाने के लिए कर रहे हैं, तो उत्तर भारत के लोग संविधान के धर्मनिरपेक्ष और मूल ढांचे को बचाने के लिए सड़कों पर उतरे हुए हैं।
सिर्फ उत्तर भारत के लोगों का नहीं, देश के मुसलमानों का अस्तिव भी आ सकता है खतरे में
लेकिन यह लड़ाई संविधान बचाने की तो है ही साथ ही यह मुसलमानों के अस्तित्व की भी लड़ाई है। इससे सिर्फ उत्तर पूर्व के नागरिकों का अस्तित्व ही नहीं, देश के मुसलमानों का अस्तित्व भी संकट में आ सकता है।
1930 के दशक में जब दुनियाभर में यहूदियों के साथ अत्याचार हो रहा था, तो ब्रिटिश हुकूमत ने अत्याचार का सामना कर रहे यहूदियों को अरब देश के फिलिस्तीन के पास बसाया और उस समय यहूदियों को रहने के लिए एक छोटी सी जगह दी गई।
लेकिन जब अरब देशों और इज़राइल के बीच मतभेद हुआ तो फिलिस्तीन और वहां रह रहे लोगों की हालत खराब हुई। बेशक संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को नॉन ऑबज़र्वर देश मान लिया है लेकिन कई राष्ट्रों ने अभी भी इसे संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी है।
यहां तक कि इज़राइल में भी अरब मूल के लोगों के साथ दोयम दर्ज का व्यवहार होता है। फिलिस्तीन के लोगों की हालत तो किसी से छुपी नहीं है। एक ऐसा देश जिसके पास सबकुछ था, अब उन्हें ही उजाड़ दिया गया। वहां के अरब आज एक स्टेटलेस सिटिज़न या राज्यविहीन नागरिक की तरह रह रहे हैं। ऐसा ही करने की साज़िश यह भाजपा कर रही है।
Union Home Minister Amit Shah tweets, As the Citizenship Amendment Bill 2019 passes in the Parliament, the dreams of crores of deprived & victimised people has come true today. Grateful to PM Narendra Modi ji for his resolve to ensure dignity & safety for these affected people.’ pic.twitter.com/cfBOtFJ9Ib
— ANI (@ANI) December 11, 2019
नागरिकता संशोधन अधिनियम के ज़रिये भारत के पड़ोसी देशों के हिन्दुओं को भारत की नागरिकता मिलेगी, जिससे भारत के मुसलमानों के अस्तित्व पर तो संकट मंडराने ही लगेगा।
खुद को भारतीय साबित नहीं कर पाएंगे देश के कई लोग
लोकसभा में इस बिल को पेश करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि वह पूरे भारत में एनआरसी लागू करेंगे। इससे ना जाने सभी धर्मों के कितने लोग एनआरसी से इसलिए बाहर नहीं रह जाएंगे कि वे विदेशी हैं, बल्कि इसलिए बाहर रह जाएंगे क्योंकि वे अपने सभी डॉक्यूमेंट पेश नहीं कर पाएं, जिनसे वे अपने आपको भारतीय साबित करें। इसमें सबसे ज़्यादा देश के मुसलमान राज्यविहीन हो जाएंगे।
एनआरसी के बाद राज्यविहीन मुसलमानों को शायद डिटेंशन कैम्प भेजा जाए, जैसे कि असम में भेजे गए। क्योंकि उनको बांग्लादेश तो भेजा नहीं जाएगा, जैसा हमारे प्रधानमंत्री और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री कहती हैं।
हम क्या आज से लगभग साढ़े सात दशक पहले जर्मनी के डिटेंशन कैम्पों में जो यहूदियों के साथ हुआ वह भूल जाएं? कौन गारंटी देता है कि यहां के डिटेंशन कैम्पों में वैसा नहीं होगा?
पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए चिंता जताने वाली भाजपा का मुसलमानों के प्रति ऐसा रवैया क्यों?
भाजपा का एक तरफ यह कहना है कि कैब से वह पड़ोसी राज्यों में होने वाले अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित है, तो दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी के नेता मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगलते हैं।
पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यक रहते थे उनकी आबादी में निरंतर कमी हुयी।
कहाँ गए ये लोग?
या तो वो मार दिए गए या धर्म परिवर्तन हो गया या वो शरणार्थी बनकर अपने धर्म और सम्मान को बचाने के लिए भारत आ गए।
ये बिल उन सभी लोगों को उनके अधिकार देने का बिल है। pic.twitter.com/GlrMpkNscl
— Amit Shah (@AmitShah) December 11, 2019
अपने देश के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की चिंता नहीं है, बल्कि दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की चिंता है। इसी देश में दिन दहाड़े अल्पसंख्यकों को जय श्री राम ना बोलने पर या उनके खाने की वजह से उनकी मॉब लिंचिंग हो जाती है और भाजपा को दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों की चिन्ता है।
अगर भाजपा को पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों की चिन्ता है तो बताए कि प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय ने इसके लिए कितनी बार पड़ोसी देशों पर दबाव बनाया है? सिर्फ तीन पड़ोसी देश ही क्यों चुने गए जिनका राजधर्म इस्लाम है। यही भाजपा के लोग म्यांमार से धार्मिक कारणों से प्रताड़ित होकर आए रोहिंग्या मुसलमानों को घुसपैठिया कहते थे। ऐसी हिपोक्रेसी यह भाजपा के लोग जाने कैसे कर लेते हैं।
- रही बात पाकिस्तान की तो वहां तो अहमदिया मुसलमानों पर भी ज़ुल्म होता है, तो उनको भी शामिल करना चाहिए इस कानून में।
- राज्यसभा में जैसा कि गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि अफगानिस्तान में तो सबसे ज़्यादा ज़ुल्म मुसलमान औरतों पर होता है तो उनको भी शामिल कीजिए इस कानून में।
- बांग्लादेश और पाकिस्तान के दो लेखकों ने भी धार्मिक प्रताड़ना की वजह से ही भारत में शरण ली दोनों ही मुसलमान थे। पाकिस्तान से तारिक फतेह और बांग्लादेश से तस्लीमा नसरीन।
- ‘अमरीकी न्यूज एजेंसियों’ के मुताबिक चीन में उईगुर मुलसमानों पर भी अत्याचार हो रहा है, तो भाजपा ने उनको क्यों छोड़ दिया?
भाजपा को अगर पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों की चिंता होती तब तो उनको भी शामिल करते ना। भाजपा का इस बिल में मुसलमानों को शामिल ना करना यह साबित करता है कि वह यह मानते हैं कि हिन्दुस्तान सिर्फ हिन्दुओं के लिए है। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद हिंदू राष्ट्र की ओर यह दूसरा कदम साबित होगा।