राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके द्वारा भारत में निवास कर रहे अवैध नागरिकों को चिन्हित करके उनके संबंधित देशों में भेजा जाएगा। इनमें उन नागरिकों को शामिल किया जाएगा, जिनके पास भारत की वैध नागरिकता नहीं है।
नागरिकता रजिस्टर में वैध तरीके से भारत में निवास कर रहे भारतीय नागरिकों का रिकॉर्ड रखा जाएगा। फिलहाल यह व्यवस्था सिर्फ असम राज्य में ही की गई है। किंतु गृह मंत्री के हाल ही में दिए गए बयानों में यह बात सामने आई है कि NRC को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जायेगा।
NRC का इतिहास क्या है?
इस मुद्दे को समझने के लिए सबसे पहले इसके इतिहास को समझ लेना बेहतर होगा। आखिर यह व्यवस्था कब और क्यों अस्तित्व में आई और इसकी आवश्यकता क्या थी कि इसको लागू करना पड़ा। इसको समझने के लिए हमें असम राज्य की स्थापना एवं उससे पहले के घटनाक्रम को समझना होगा।
आज़ादी के बाद 1951 में सर्वप्रथम असम में नागरिकता रजिस्टर की व्यवस्था की गई थी। अंग्रेजों द्वारा किए गए विभाजन में पूर्वी बंगाल और असम दो राज्य बनाए गए थे लेकिन बाद में यह डर पैदा हो गया कि असम को पूर्वी पाकिस्तान जो कि आज का बांग्लादेश है, के साथ ना जोड़ दिया जाए। इस संदर्भ में गोपीनाथ बोर्डोली की अध्यक्षता में असम आंदोलन की शुरुआत हो गई और असम अंततः सुरक्षित रह पाया।
असम राज्य में शुरुआत से ही बाहरी नागरिकों का मुद्दा हावी रहा।
- एक तो वहां के चाय बागानों में बिहार और उत्तर प्रदेश के बहुत से नागरिक रोज़गार की तलाश में जाया करते थे,
- बाद में पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में हुए दमनकारी घटनाक्रम से लाखों बांग्लादेशी असम में आकर बसने लगे।
इन दो वजहों ने हमेशा इस मुद्दे को वहां की राजनीति में जीवंत बनाए रखा। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गॉंधी ने एक सवाल के जवाब में यह कहा था,
इन शरणार्थियों को आखिर में अपने देश में जाना ही होगा, क्योंकि इनकी बढ़ती जनसंख्या भारत पर आर्थिक बोझ बन रही है। वर्ष 1971 में बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद भी बांग्लादेशियों का भारत में आकर बसना जारी रहा।
बहुत समय तक असम में इस मुद्दे को लेकर चुनावों का भी बहिष्कार किया गया लेकिन केंद्र सरकार ने 1983 में असम में चुनाव करवाने का फैसला किया। घोर विरोध के कारण असमिया बहुल इलाकों में 3 प्रतिशत से भी कम मतदान हुए और एक हिंसक घटनाक्रम ने जन्म लिया, जिसमें 3000 से अधिक लोग मारे गए।
असम समझौता-
1979 से 1985 तक राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा। बढ़ते असंतोष और हिंसक आंदोलनों को शांत करवाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गॉंधी और असम आंदोलन के नेताओं के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। असम समझौते की घोषणा राजीव गॉंधी द्वारा लाल किले से की गई।
17 नवंबर 1999 को केंद्र सरकार ने तय किया कि असम समझौते के तहत NRC को अपडेट किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कुछ हिस्सों में कार्य शुरू भी किए गए लेकिन बाद में हिंसा की घटनाओं के बीच इसको रोक दिया गया।
वर्ष 2005 में डॉ. मनमोहन सिंह ने भी इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए NRC को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू की लेकिन हिंसा की वारदातों के बीच इसको पुनः रोक दिया गया।
वर्ष 2013 में असम के पब्लिक वर्क नाम के NGO सहित कई अन्य संस्थाओं के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। 2013 से 2017 के बीच सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई चली और असम सरकार ने कोर्ट को कहा कि 31 दिसंबर 2017 तक असम का NRC पूर्ण कर दिया जायेगा। बाद में इसके लिए और समय मांगा गया।
जिसके बाद राज्य सरकार ने 31 दिसंबर 2017 को NRC का पहला ड्राफ्ट जारी किया। अपडेशन के बाद 30 जुलाई, 2018 को NRC का दूसरा ड्राफ्ट जारी हुआ। 31 अगस्त, 2019 को सरकार ने असम में NRC की आखिरी लिस्ट जारी कर दी, जिसमें 19 लाख से ज़्यादा लोगों को बाहर कर दिया गया।
असम NRC में सामने आए कुछ तथ्य-
असम NRC का अंतिम ड्राफ्ट जारी कर दिया गया है, जिसके आधार पर कुछ आंकड़ें सामने आए हैं।
- लगभग 3.29 करोड़ लोगों ने इस प्रक्रिया में आवेदन किया।
- 3,11,21,004 लोगों को भारतीय नागरिक बताया गया।
- अंतिम सूची से 19,06,657 लोगों को निकाल दिया गया।