राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर फिलहाल केंद्र सरकार की ओर से कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं किए गए हैं लेकिन असम में लागू NRC के आधार पर यहां कुछ दस्तावेज़ प्रस्तुत किए गए हैं।
इकोनॉमिक टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक इन दस्तावेज़ों की दो लिस्ट बनाई गई है। लिस्ट A एवं लिस्ट B जो कि निम्नलिखित हैं –
लिस्ट A-
- 1951 NRC
- नगरिकता प्रमाण पत्र
- मूल निवास प्रमाण पत्र
- शरणार्थी पंजीकरण प्रमाण पत्र
- सरकार द्वारा जारी किया गया कोई भी दस्तावेज़
- सरकारी नौकरी अथवा रोज़गार प्रमाण पत्र
- बैंक या पोस्ट ऑफिस दस्तावेज़
- राज्य शिक्षा बोर्ड अथवा विश्वविद्यालय प्रमाण पत्र
- न्यायालय रिकॉर्ड
- पासपोर्ट
- कोई भी LIC दस्तावेज़
- मतदाता पहचान (24 मार्च, 1971 मध्यरात्रि तक की)
- भूमि रिकॉर्ड
- जन्म प्रमाण पत्र
ये सभी दस्तावेज़ 24 मार्च, 1971 के बाद के जारी किए हुए नहीं होने चाहिए। जिन नागरिकों के पास उक्त दस्तावेज़ ना हो वे लिस्ट B में दिए गए कोई भी दस्तावेज़ पेश कर सकते हैं, जिनसे उनका संबंध उनके पूर्वजों के साथ सिद्ध हो सके।
लिस्ट B-
- जन्म प्रमाण पत्र
- भूमि संबंधित दस्तावेज़
- बोर्ड/विश्वविद्यालय दस्तावेज़
- बैंक या पोस्ट ऑफिस रिकॉर्ड
- विवाहित महिला के संबंध में ग्राम पंचायत सचिव द्वारा जारी सर्टिफिकेट
- राशन कार्ड
- निर्वाचक नामावली
- अन्य कोई भी वैध दस्तावेज़
कुछ महत्वपूर्ण सवाल-
NRC को लेकर कुछ बुनियादी सवाल उठने लगे हैं,
- जो व्यक्ति दस्तावेज़ पेश नहीं कर पाएंगे, तो क्या उन्हें डिटेंशन सेंटर्स में रखा जायेगा?
- यदि कोई देश अपने नागरिक को नहीं अपनाता है, तो क्या ये लोग ताउम्र डिटेंशन सेंटर्स में ही रहेंगे?
- बांग्लादेश एवं पाकिस्तान ने तो पहले ही अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए हैं, तो उन परिस्थितियों में सरकार कैसे निपटेगी?
- यह एक बहुत ही जटिल एवं खर्चीली प्रक्रिया है, तो सरकार क्या इतना बड़ा वित्तीय भार सहन करने की स्थिति में है? जबकि देश पहले ही खराब वित्तीय हालातों से गुज़र रहा है।
- क्या भारत जैसे करोड़ों जनसंख्या वाले देश में NRC करना व्यावहारिक है।
- इन सबसे इतर लोगों के मन में जन्मे अविश्वास एवं रोष को सरकार कैसे शांत कर पाएगी?
बहरहाल, मैंने सभी तथ्य एवं जानकारियां जुटाकर यह आर्टिकल लिखा है, अब मैं यह पाठकों के विवेक पर छोड़ता हूं कि वे इस मुद्दे पर अपना क्या दृष्टिकोण रखते हैं।