जब किसी शिशु का जन्म होता है तो पूरा परिवार, पड़ोसी और दोस्त इस नए जन्में के नाम के लिए उत्सुक रहते हैं। आज-कल लोग नए-नए नामों से जाने जाते हैं जो काफी अलग हैं। पर नाम चाहे जो भी हो, पारिवारिक नाम तो पीढ़ियों से वही चला आता है। भारत में सिंह, पटेल, शर्मा, वर्मा, पांडे इत्यादि तो बहुत सामान्य है लेकिन क्या हम आदिवासियों के पारिवारिक नाम से परिचित हैं?
गैर आदिवासी राज्यों के मेरे दोस्तों को जब मैं अपना पूरा नाम बताती हूं, तो वे मेरे पारिवारिक नाम के बारे में काफी उत्सुक होते हैं। वहीं, अगर किसी दफ्तर में फॉर्म जमा करना होता है, तो फॉर्म चेक करने वाले व्यक्ति मेरा नाम सुनिश्चित करने के लिए दोबारा ज़रूर पूछते हैं। ये आदिवासी लोगों की अदृश्यता और उनके प्रति अज्ञानता की झलक दिखाता है।
पारिवारिक नाम आज भी बहुत महत्वपूर्ण है
आप शेक्सपीयर का प्रसिद्ध प्रश्न पूछ सकते हैं कि “आखिर नाम में रखा क्या है?” पर नाम हमारी पहचान बताता है। कुछ लोग अपने नाम से जुड़े विशेषाधिकार को समझते हैं और अब वे इसे अपने नाम से हटा रहे हैं। पर पारिवारिक नाम आज भी बहुत महत्वपूर्ण है।
आदिवासियों के लिए नाम उनके गोत्र या वंश के बारे में बताते हैं। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि आदिवासी प्रकृति आधारित जीवन जीते हैं। झारखंड के आदिवासी अपने वंश को अलग-अलग पेड़ -पौधे या जीव-जंतुओं पे आधारित नाम देते हैं। इसे टोटेमिसम या गंचिन्हवाद के नाम से जाना जाता है।
इस प्रथा के हिसाब से दिए हुए चिन्ह से समुदाय अपने पूर्वजों या धारणाओं से जुड़े हुए होते हैं। इन चिन्हों को सहायक, दोस्त, रिश्तेदार या पूर्वज माना जाता है। इन चिन्हों की केवल प्रतीकात्मक अहमियत है।
तो चलिए, जानते हैं कुछ पारिवारिक नाम ताकि अगर आप किसी आदिवासी बंधु या बहन से मिले, तो आपको उनका नाम अजीब ना लगे। ये हैं छोटानागपुर क्षेत्र के कुछ प्रमुख पारिवारिक नाम जो पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और जीवित तत्वों पर आधारित है।
लोक कहानियां
इन पारिवारिक नामों के इतिहास के बारे में जानने से आदिवासियों की लोक कहानियों के बारे में जानने को मिलता है। इसके द्वारा हम उनके जीवन, रीति-रिवाज, खान-पान और काम के बारे में भी जान सकते हैं। आदिवासी उनके नाम से संबंधित जानवरों और पौधों को भी संरक्षित करते हैं। जानते हैं कुछ गोत्रों के शुरुआत की कहानियां।
होरो और कच्छप नाम की एक विचित्र कहानी है जो लोक कहानियों में पाई जाती है। माना जाता है कि लोगों को एक बहुत चौड़ी और गहरी नदी को पार करना था लेकिन वे इसे पार करने में असमर्थ थे । तब एक विशाल जादूई कछुए ने इनकी सहायता की और इन्हें नदी पार करने में मदद की। इसलिए वे कछुए का सम्मान करते हैं और उसे अपने अस्तित्व से जोड़ते हैं। इन गोत्रों में कछुए की हत्या करना मना है।
केस्पोत्ता की कहानी कुछ इस प्रकार है,
लोगों ने एक सुअर का वध कर उसे खाया लेकिन उसका मांस खाकर उसके अंतड़ियों को फेक दिया। इसी अंतड़ियों से सुअर एक नए रूप में जगा और जीवित हो गया। इसके बाद सुअर का वध करने वालों ने केस्पोत्ता नाम दिया।
कुजूर गोत्र के लोग खुद को लता के चिन्ह से जोड़ते हैं। माना जाता है,
एक महिला इस लतेदार पौधे के नीचे सो गई। उसे बदमाशों से बचाने के लिए पौधे ने उस महिला को अपने लताओं से सुरक्षित घेर लिया। इसलिए कुजूर गोत्र में इस लते को शुभ और सुरक्षा देने वाला माना जाता है।
बेक गोत्र में नमक का केवल पकाने के दौरान उपयोग किया जाता है। इसे खुले या कच्चे से नहीं खाया जाता। मान्यता है कि नमक का अध-पक्के उपयोग से शरीर को ज़्यादा हानि पहुंचती है। इसलिए यह नमक का समझदारी से उपयोग करते हैं।
बहुत सारे गोत्रों में संबंधित पेड़-पौधों या पक्षियों को हानि पहुंचाना मना है। जैसे मिंज गोत्र, जिसको मछली से जोड़ा जाता है, उनके लिए मछली मारना वर्जित है। इसी प्रकार केरकेट्टा गोत्र, जिनका गौरैया चिड़िया से सम्बंध है, उनके लिए चिड़िया मारने की सख्त मनाई है।
ऐसी मान्यता है कि इन चिड़ियों को बारिश के आने का अहसास होता है। इसलिए इन्हें संरक्षित रखना ज़रूरी है। बारा और बरला गोत्र, जो बरगद पेड़ के चिन्ह से जुड़े हैं, वे बरगद की सुरक्षा करते हैं और वे इस पेड़ की ना लकड़ियां काटते हैं और ना ही फल खाते हैं।
इन नामों के द्वारा पूर्वज अपने आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान भी देते थे। जैसे, तिर्की गोत्र को अमलतास पेड़ से जोड़ा जाता है।
इसके पीछे यह कहानी है कि एक औरत ने इस पेड़ के नीचे अपने बेटे को जन्म दिया। वह अपनी गर्भनाल को वहां कुछ समय छोड़ अपने नवजात को घर ले गई और उसका पति लकड़ी इकठ्ठा करने चला गया। पुरुष के भाइयों ने इस गर्भनाल को देख सोचा की यह किसी जानवर का गोश्त है और उसे घर लेकर पका लिया लेकिन, जब उन्हें इसकी असल बात मालूम हुई, तब उन्हें बहुत पछतावा हुआ। तब से तिर्की गोत्र में अमलतास के पेड़ की अहमियत है और गोश्त को उलझने से बचने के लिए उनमें चूहे खाना वर्जित है।
खालको गोत्र के पूर्वज भी आने वाली पीढ़ियों के लिए सीख देते गए।
एक आदमी ने मछली पकड़ने के लिए जाल लगाया। उसने मछली पकड़ी, लेकिन मछली जाल से भाग निकली। उसने समझा कि इस मछली को पकड़ना मुश्किल है। इसलिए, इस मछली पर बेकार समय और ताकत खर्च नहीं करना चाहिए। तब से ये मछली को पकड़ना खलखो गोत्र के लिए वर्जित हो गया।
इन पारिवारिक नामों की प्रसिद्ध हस्तियां
1958 में जन्में मनोहर टोपनो प्रसिद्ध भारतीय पुरुष हॉकी खिलाड़ी रहे हैं। उन्होंने 1984 समर ओलंपिक्स में भाग लिया है जहां भारत 5वें स्थान पर आया।
वर्जीनियुस खाखा जाने माने विद्वान हैं। इनका जन्म छत्तीसगढ़ में हुआ था। इन्होंने आईआईटी कानपुर से उत्तर भारत में कृषि और आर्थिक वर्गों के सम्बन्ध पर पीएचडी हासिल की है और नॉर्थ ईस्ट हिल्स यूनिवर्सिटी (नेहू) और दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स जैसे प्रसिद्ध संस्थानों में पढ़ाई की है।
वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़, गुवाहाटी के उप – डायरेक्टर भी रहे हैं। वे यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और लंदन यूनिवर्सिटी में भी प्रॉफेसर रहे हैं। वे भारत सरकार के नेशनल एडवाइज़री बोर्ड के सदस्य भी रहे हैं।
माइकल किंडो इस पारिवारिक नाम के प्रसिद्ध हस्ती हैं। झारखंड में जन्में माइकल किंडो ने 1972 समर ओलंपिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। वे 1975 में वर्ल्ड कप जीतने वाले भारतीय पुरुष टीम का भी हिस्सा थे। उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है।
दयामनी बरला प्रसिद्ध पत्रकार हैं जिन्होंने आदिवासियों के हित के लिए न्यूज़ रिपोर्टिंग की हैं। गरीबी के बावजूद उन्होंने पढ़ाई की और प्रभात खबर के साथ काम शुरू किया। फिर उन्होंने सरकार और प्राइवेट कंपनियों द्वारा आदिवासियों का अवैध रूप से ज़मीन छीने जाने का विरोध किया और बड़ा मूवमेंट बनाया। अपने काम और जज़्बे के लिए उन्हें आयरन लेडी ऑफ झारखंड के नाम से भी जाना जाता है।
अल्बर्ट एक्का इस पारिवारिक नाम के जाने माने हस्ती हैं, जिनको परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया है। वे भारत पाकिस्तान जंग 1971 में शहीद हो गए थे। भारत सरकार ने वर्ष 2000 में उनकी याद में पोस्टल स्टैम्प भी जारी किया है। रांची के फिरायालाल दुकान के चौराहे को अल्बर्ट इक्का चौक से जाना जाता है। यह रांची का प्रमुख स्थान है जहां इनकी मूर्ति भी है।
बा गोत्र यानी धान से नाता रखती हैं कांति बा। वे भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा रही हैं और इन्होंने 2002 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण भी दिलाया है।
हांसदा जिसका मतलब हनसनी के रूप में “गले में पहनने की माला” होता है, इसके दिगम्बर हांसदा एक आदिवासी एक्टिविस्ट हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और झारखंड के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए काम किया है। इसके लिए उन्हें 2018 में पद्मश्री सिविलियन ऑनर से भी नवाजा गया है।
इन पारिवारिक नामों का महत्व क्या है?
छोटा नागपुर के ओराओं, मुंडा और खडिया आदिवासी इन चिन्हों से अपने अस्तित्व और इतिहास को ज़िंदा रखते हैं। इन जानवरों, पशु-पक्षियों या तत्वों ने आदिवासियों के विभिन्न समुदायों को किसी ना किसी प्रकार से मदद की है।
चिन्ह में विश्वास आदिवासियों का धर्म नहीं है और ना ही वे इन्हें पूजते हैं, लेकिन वे इन चिन्हों का सम्मान करते हैं क्योंकि वे उनके पूर्वजों की याद से जुड़े हैं। इसी प्रकार जब आदिवासी अपना नाम लिखते हैं, तो वे अपने पूर्वजों को ज़िंदा रखते हैं।
इन पारिवारिक नामों से आदिवासियों की लोक कहानियों का धनी साहित्य और संस्कृति जुड़ा है। एक प्रकार से इन नामों से जरिए हम आदिवासियों के इतिहास के बारे में भी सीखते हैं। साथ ही, इन चिन्हों का सम्मान कर वे प्रकृति के विभिन्न पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को संरक्षित कर रहे हैं। इसलिए इन नामों से परिचित होना, उनके मतलब जानना और उनके इतिहास या महत्व के बारे में जागरूक रहना बहुत ज़रूरी है।
हम उम्मीद करते हैं कि इन नामों के ज़रिए हम आदिवासियों की संस्कृति को थोड़ा ज़्यादा समझेंगे। इन पारिवारिक नामों से हम आदिवासी भाषाओं की एक छोटी झलक भी देख सकते हैं। हम कोशिश कर रहे हैं कि देश के विभिन्न आदिवासियों के पारिवारिक नामों के बारे में भी जाने। अगर आप अपने राज्य या क्षेत्र के आदिवासी नाम और उनके महत्व के बारे जानते हैं तो हमें ज़रूर बताएं।
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लेखिका के बारे में: दीप्ती मेरी मिंज (Deepti Mary Minj) ने जेएनयू से डेवलपमेंट एंड लेबर स्टडीज़ में ग्रैजुएशन किया है। आदिवासी, महिला, डेवलपमेंट और राज्य नीतियों जैसे विषयों पर यह शोध और काम रही हैं। अपने खाली समय में यह Apocalypto और Gods Must be Crazy जैसी फिल्मों को देखना पसंद करती हैं। फिलहाल यह जयपाल सिंह मुंडा को पढ़ रही हैं।)