पिछले कुछ सालों से हमारे देश में हो रहे दंगे और लोगों में फैलती आपसी नफरत को देखते हुए कभी-कभी मुझे लगता है कि हमारा देश गृह युद्ध की ओर अग्रसर हो रहा है। कोई जाति, धर्म और मज़हब तो कोई आरक्षण को लेकर लड़ रहा है।
हिंदुओं को लग रहा है कि आने वाले कुछ वर्षों में भारत मुस्लिम राष्ट्र बन जाएगा और भारत में औरंगज़ेब शासन आ जाएगा। मुस्लिमों को लग रहा है कि आरएसएस कुछ ही दिनों में आईएसआईएस जैसा खूंखार संगठन बन जाएगा और आतंकवाद का रंग भगवा हो जाएगा।
दलितों को लग रहा कि जल्द ही नई संविधान सभा गठित होने वाली है, जिसमें मनुस्मृति के नियमों को लागू किया जाना है जिससे उनके विकास में रिवर्स गियर लग जाएगा जो उन्हें सीधे उत्तर वैदिक काल में ले जाएगा। सवर्णों को लग रहा है कि आरक्षण की वजह से उसकी युवा पीढ़ी बेरोज़गार और बेचारी होती जा रही है।
मज़हबी नफरत की वजहें क्या हैं?
बीजेपी, काँग्रेस वाले तो एक-दूसरे के इतने कट्टर दुश्मन बने हुए हैं कि एक दूसरे को मारने पर उतारू हैं। हम भारत में कितने ही सालों से यहां रह रहे हैं। पहले तो कभी ऐसे दंगे और लोगो में इतनी नफरत नहीं हुई है। ये लोग कहीं बाहर के देश से तो आए हुए नहीं हैं कि यहां आकर दंगे फसाद करेंगे। बीजेपी, काँग्रेस और बाकी सारी पार्टियां सालों पहले भी थी, तो क्यों ये आज के टाइम ही एक दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं?
क्या हमने कभी सोचा है कि ये सारी नकारात्मकता लोगों में कहां से आ रही है और दिनों दिन क्यों बढ़ती ही जा रही है? क्या कभी हमने बैठकर सोचा है कि आखिर ये सारी कल्पनाएं कहां से उपज रही हैं? क्या वास्तव में हमारे आसपास ऐसे हालात पनप रहे हैं या सच्चाई कुछ और ही है?
अगर हम ईमानदारी से विश्लेषण करें तो पाएंगे कि असल में ये सारी अवधारणाएं व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर अंधाधुंध फैलाए जा रहे उन्मादी कॉपी पेस्ट का नतीजा हैं। ये कापी पेस्ट, लंबे-लंबे मैसेज, भड़काऊ फोटो और तमाम वीडियो की शक्ल में बहुतायत से प्रचलित हैं। इसलिए कहीं पर भी दंगे होते हैं तो सबसे पहले वहां की इंटरनेट सेवा बंद कर दी जाती है।
न्यूज़ के नाम पर नफरत फैला रही है मीडिया
दूसरी ओर हमारी मीडिया सच्ची न्यूज़ के नाम पर नफरत फैलाने में माहिर है। आप कभी भी देख लीजिए, न्यूज़ चैनल्स पर ये एक साथ सुपरफास्ट 100 न्यूज़ जो दिखाते है, उनमें से 50 से ज़्यादा खबरें सिर्फ मरने-मारने, डकैती, किडनेप, बलात्कार, लूटमार, छेड़छाड़, दंगे, विरोध प्रदर्शन और चक्का जाम जैसी नकारात्मक खबरें मिलेगी।
तो सवाल यह है कि क्या हमारे देश में सिर्फ यही सब कुछ हो रहा है? क्या कहीं पर भी कुछ पॉज़िटिव नहीं हो रहा है? आज की तारीख में हम पूरी तरह से नेताओं के झूठे भाषणों के जाल में फस चुके हैं, जो सारी नफरतों की ज़ड़ है। हम रोज़ाना फेसबुक पर हिंदू मुस्लिम, बीजेपी और काँग्रेस की लड़ाईयां देखते हैं। फालतू की पोस्ट शेयर की जा रही है।
लोग फर्ज़ी अकाउंट्स बनाकर एक दूसरे को गालियां दे रहे हैं। भगवान के नाम पर लड़ रहे हैं और नफरत फैला रहे हैं। यह तो सच है कि जो बातें हम रोज़ाना देखते और सुनते हैं, उसी तरह के विचार हमारे दिमाग में आते हैं और जैसे विचार हमारे दिमाग में आते हैं, उसी तरह के हमारे कर्म होते हैं। ऐसी स्थिति में हमारी सोसायटी में नफरत नहीं फैलेगी तो और क्या होगा?
सोशल मीडिया की खिड़की से बाहर निकलने की ज़रूरत
अगर हम सोशल मीडिया की काल्पनिक दुनिया से बाहर निकलकर अपने आसपास लोगों को देखेंगे तो यकीनन एक सौहार्दपूर्ण भारत नज़र आएगा। आप व्हाट्सएप्प और फेसबुक के बजाय अपने परिवार को टाइम दीजिए, उनके साथ कहीं घूमने जाइए। आपको नज़र आएगा कि हमारा देश बहुत तरक्की कर रहा है। भारत देश बहुत शांतिप्रिय है।
अभी हाल ही में भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। सब कुछ बहुत अच्छा हो रहा है। बहुत से लोग अपनी लाइफ से संघर्ष कर रहे हैं और लोगों के लिए मिसाल बन रहे हैं। काफी कुछ अच्छा हो रहा है।
इसलिए कृपया आज से ही फेसबुक और टीवी पर न्यूज़ चैनल्स देखना कम कर दीजिए। अगर हम अभी भी नहीं चेते और इन्हीं वाहियात मैसेजेज़ के आधार पर दूसरों के लिए अपनी अवधारणाएं बनाते रहें, तो यह भी संभावना है कि पास में खड़ा आदमी अचानक हमला कर बैठे। यह सब राजनीति से प्रेरित है, जिसमें उलझने से हमारी जानें जाएंगी, हमारे घर जलेंगे और यहां तक कि पुलिस भी हमें ही धुनेगी।
हम आए दिन इंसानियत को भूलते जा रहे हैं ओर खुद ही नफरत की आग में जल रहे हैं। चलो मान लिया कि किसी नेता ने हमें हिंदू, मुस्लिम और दलित में बांट दिया लेकिन हमें इस बात को सोचने से किसने रोका है कि तू भी इंसान है, मैं भी इंसान हूं। हमें यह समझना बेहद ज़रूरी है कि देश में फैल रही नफरत नेताओं द्वारा तैयार की गई साज़िश का परिणाम है।
इसलिए सावधान रहिए और नफरत फैलाने वाली कोई भी पोस्ट शेयर ना करें। हम अभी भी अजनबियों को चाचा, ताऊ, भैया और दद्दा कहने वाली संस्कृति के वाहक हैं। हममें से कोई नहीं है जो जाति पूछकर संबोधन करता हो।
सोशल मीडिया से फैलती आग में जलने और समाज को जलाने से बचें और जातिगत व धार्मिक नफरत फैलाने वाले ग्रुप्स को एक्ज़िट करें फिर देखिए हमारा परिवेश कितना सौहार्दपूर्ण होगा।