ट्रांस राइट्स एक्टिविस्ट एम.सुमन का एक सवाल है, यह प्रथम जेंडर, द्वितीय और तृतीय जेंडर कौन हैं? आप सुप्रीम कोर्ट के 2014 में दिए गए इस न्याय को देखें, उन्होंने किस तरह का वर्गीकरण किया है और ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर घोषित किया है, ट्रांसजेंडर प्रथम या द्वितीय जेंडर क्यों नहीं हैं?
एम.सुमन ने यह बात दिल्ली के डॉ अंबेडकर इंटरनैशनल सेंटर में आयोजित Youth Ki Aawaaz Summit के पैनल डिस्कशन में की। यह पैनल डिसक्शन जेंडर और हेल्थ पर चर्चा के लिए आयोजित किया गया था। जहां एम.सुमन के साथ ही Adolescent Health Division, MOHFW की डिप्टी कमिश्नर डॉ ज़ोया अली रिज़वी, राइजिंग फ्लेम्स की संस्थापक और स्टैंड अप कॉमेडियन निधि गोयल और हिडन पॉकेट की संस्थापक जैस्मीन जॉर्ज एवं संचालिका के तौर पर हफपोस्ट इंडिया की संपादक रितुपर्णा चटर्जी मौजूद रहीं।
एम सुमन ने इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अपने साथ हुई एक घटना का ज़िक्र करते हुए बताया कि समाज के सबसे शिक्षित वर्गों से आने वाले डॉक्टर ने उनके साथ जो व्यवहार किया, वह बेहद ही शर्मनाक है। उन्होंने मेडिकल क्षेत्र में कमी को उजागर करते हुए बताया कि मैं UTI इन्फेक्शन के लिए डॉक्टर के पास गईं। उन्होंने मुझे स्कैनिंग के लिए भेजा और वह लगातार अपना सर खुजाते हुए स्कैनिंग करती रहीं।
फिर मैंने पूछा, मैडम क्या हुआ? तब उन्होंने जो जवाब दिया वह बिलकुल चकित करने वाला था। उन्होंने बोला कि आपके पास तो यूट्रस ही नहीं है। फिर मैंने उनको बताया कि मैडम मैं एक ट्रांस महिला हूं। फिर वह मझसे पूछती हैं, यह ट्रांस महिला क्या होती है? आपको मासिक चक्र आते हैं?
एक डॉक्टर के लिए मरीज़ का जेंडर ना पहचानना और ऐसे सवाल करना, मेडिकल क्षेत्र की एक बड़ी खाई को ज़ाहिर करता है।
वहीं जैस्मीन जॉर्ज ने गर्भपात को लेकर समाज की सोच पर चिंता जताते हुए अपनी बात रखी। उनका संगठन देश के 25 शहरों में युवाओं को गर्भपात सेवा प्रदान करवाता है और समूचे भारत से उनके पास क्लांइट आते हैं। जैस्मीन बताती हैं कि जब उन्होंने ‘हिडन पॉकेट’ शुरू किया था, तो सबसे ज़्यादा पुरुष ही उनके क्लाइंट थे, जो कोहिमा, लखनऊ आदि शहरों से थे।
उन्होंने अपनी कहानी भी बताई,
उन्हें एक दिन लगा कि वह गर्भवती हैं, तो वह गायनेकोलॉजिस्ट के पास गईं, वहां उस डॉक्टर का व्यवहार जैस्मीन के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा। जैस्मीन वहां बिना अपने पार्टनर के गई थीं और उन्हें अच्छा खासा भाषण सुनने को मिला कि वह अकेले कैसे आ गईं?
किसी ने उनसे पूछा तक नहीं कि यह सब कैसे हुआ, बल्कि सामने से उल्टे-उल्टे सवाल आने लगे। तब उन्हें एहसास हुआ कि देश में जहां 1972 से गर्भपात कानूनी है, बावजूद यहां गर्भपात कराना आसान नहींं है। इसके लिए आपको शक की निगाहों से देखा जाता है।
वह बताती हैं कि अकसर क्लाइंट्स का कहना होता है कि मैं गलत तरीके से गर्भवती हूं। इसपर मैं जवाब देती हूं कि जब इस देश में गर्भपात कानूनी है तो कोई गलत तरीके से गर्भवती कैसे हो सकती है? इसपर उन्हें उनके क्लाइंट का जवाब मिलता है कि हमें पता है कि गर्भपात कानूनी है लेकिन हमें डॉक्टर तो बातें सुनाएंगे ही।
जैस्मीन ने बताया कि मनिपाल यूनिवर्सिटी से एक बार उनके पास एक क्लाइंट का फोन आया कि मैं ज़्यादा-से-ज़्यादा पैसे देने को तैयार हूं लेकिन गर्भपात कराने के लिए मनिपाल यूनिवर्सिटी में ही कोई डॉक्टर बता दो। मतलब यह है कि युवा आज भी गर्भपात कराने से डरते हैं। इस डर की वजह से वह ज़्यादा-से-ज़्यादा पैसे देने को भी तैयार हो जाते हैं।
वह बताती हैं कि लोगों को लगता है कि गर्भपात एक भावनात्मक चयन है जबकि यह एक शारीरिक चयन है। लड़कियों को डर लगता है कि अगर उन्होंने गर्भपात कराया, तो लोग कहेंगे, “देखो कैसी है, गर्भपात कराकर घूम रही है”।
पर्सन विथ डिसेबिलिटी के प्रति समाज का गलत नज़रिया
वहीं चर्चा में शामिल निधि गोयल ने पर्सन विथ डिसेबिलिटी के जीवन में हरेक स्तर पर आने वाली परेशानियों को उजागर किया। उन्होंने बताया कि किस तरह समाज पर्सन विथ डिसेबिलिटी को दया की नज़रों से देखता है, लोग उन्हें लैंगिक निष्क्रिय समझते हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में लैंगिक अपराध एक बड़ी समस्या
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की सहायक आयुक्त डॉ ज़ोया रिज़वी ने स्वास्थ्य क्षेत्र में लैंगिक अपराध पर अपनी चिंता जताई कि किस तरह इस क्षेत्र में धड़ल्ले से लैंगिक अपराध की घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय अपने निर्देशों में बताता है कि कैसे चिकित्सा पेशेवर को यौन संबंधी अपराधों से निपटना चाहिए।
इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए एम.सुमन ने ट्रांसजेंडर बिल पर भी बात की। उन्होंने कहा कि हम लोगों को सरकारी अधिकारियों के सामने अपने जेंडर के प्रमाण देने पड़ते हैं, जिसके लिए हमें उनके सामने नग्न होना पड़ता है।
उन्होंने मौजूद लोगों से पूछा,
क्या आप लोगों को जेंडर के प्रमाण देने पड़ते हैं?
NRC से सबसे ज़्यादा ट्रांस समुदाय को नुकसान
NRC के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि इसके आने के बाद ट्रांसजेंडर सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे, क्योंकि हमारे अपने हमें अपनाने से इनकार कर देते हैं और हमें अपने परिवार को छोड़कर अपने समुदायों में रहना पड़ता है। अगर अपने दस्तावेज़ों को मांगने जाएंगे तो वे बोलेंगे कि यह हमारा बच्चा है ही नहीं। कैसे साबित करेंगे हम अपनी नागरिकता?
वहीं, जैस्मीन ने अपनी बात खत्म करते हुए युवाओं से अनुरोध किया कि परिवार नियोजन ना सही लेकिन सेहत नियोजन के बारे में ज़रूर सोचे। युवा कृपया करके सेहत एवं गर्भपात संबंधी सूचनाओं के बारे में जागरूक हो।
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रिपोर्ट- आदिल रियाज़, सावन कनौजिया