क्या आपको पता है कि आपका हर महीने या हर सप्ताह कपड़े खरीदने का शौक या फैशन के प्रति आपका प्रेम पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है? क्या आप कपड़ों के मामले में हमेशा लेटेस्ट फैशन के साथ अपडेट रहने की कोशिश करते हैं? यदि ऐसा है तो आप बिना जाने पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
फैशन उद्योग ग्रीन हाउस गैसों का एक प्रमुख स्रोत
ब्रिटिश राजनेताओं और कई अन्य पर्यावरणविदों का कहना है कि फैशन उद्योग ग्रीन हाउस गैसों का एक प्रमुख स्रोत है, जो पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी का एक प्रमुख कारण है। पूर्व ब्रिटिश पर्यावरण मंत्री माइकल गोव ने जुलाई में कहा था, “फास्ट फैशन अब एक बड़ी समस्या बन गई है।”
ब्रिटिश संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स की पर्यावरण लेखा परीक्षा समिति का कहना है कि फैशन उद्योग के साथ आधारभूत समस्या यह है कि यह इंडस्ट्री लोगों को अच्छे कपड़े फेंकने के लिए राज़ी कर लेती है, क्योंकि वे एक साल पुराने हो चुके होते हैं। समिति के मुताबिक,
अगर हम (यूनाइटेड किंगडम) एक देश के तौर पर इसी रफ्तार से कपड़ों का खरीदते और फेंकते रहेंगे, तो 2050 तक जलवायु परिवर्तन के एक चौथाई कार्बन उत्सर्जन के लिए यह इंडस्ट्री ज़िम्मेदार होगी।
रविवार (15 दिसंबर) को विख्यात इनोवेटर और पर्यवरणविद और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्वाधान में I LIVE SIMPLY MOVEMENT लॉन्च किया गया, जिसमें फास्ट फैशन से बढ़ते कार्बन उत्सर्जन पर भी बात की गई।
आखिकार फास्ट फैशन है क्या?
आज फैशन अभिव्यक्ति का ज़रिया बनने के साथ-साथ स्टेटस सिंबल का भी प्रतीक बन गया है। आप कैसे कपड़े पहनते हैं, यह आपके बारे में कुछ कहता है। फैशन हमारी संस्कृति का एक बड़ा हिस्सा है, जिसे पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता है। फास्ट फैशन का मतलब ट्रेंडी क्लॉथ्स बनाना जो सस्ते दाम में जल्दी बन सके।
अगर पहले की बात की जाए तो दुकानों या बड़े-बड़े स्टोर में कपड़ों के नए सीज़न कई महीनों में आते थे लेकिन अब ऑनलाइन फैशन स्टोर्स और ज़ारा जैसी नामी-गिनामी कंपनियां एक ही साल में कपड़ों की कई डिज़ाइन पेश कर देती हैं। इन नई डिज़ाइनों का उत्पादन बहुत जल्दी होता है और ये कुछ-कुछ महीनों में आने वाले कपड़ों से ज़्यादा सस्ते होते हैं।
उपभोक्ताओं के बीच बढ़ती कपड़ों की नई डिज़ाइन के चलते अब कपड़ों की खरीदारी पहले की अपेक्षा ज़्यादा हो रही है। इस नए सिस्टम को ही फास्ट फैशन कहते हैं।
दुनियाभर में कई बड़े फास्ट फैशन रिटेलर्स हैं लेकिन ज़ारा, फैशननोवा, टॉपशॉप और एचएनएम बहुत बड़े रिटेलर्स हैं। फास्ट फैशन इसलिए लोकप्रिय है, क्योंकि यह हाई फैशन को किसी एक वर्ग का अधिकार ना बनाकर इसे लोकतांत्रिक बनाता है।
आम भाषा में कहें तो बढ़िया और अमीर लोगों के डिज़ाइन वाले कपड़ों की पहुंच आम जन तक फास्ट फैशन के ज़रिए ही हो रही है। फास्ट फैशन अब फैशन बन गया है। अगर हम अपने आसपास देखें तो बहुत लोग ज़ारा और एचएनएम ब्रैंड के कपड़े पहने हुए दिख जाएंगे।
आज के समय बढ़ा कपड़े खरीदने का ट्रेंड पर्यावरण के लिए नुकसानदेह
हसन मिनहाज़ के शो के मुताबिक,
कपड़ों की बिक्री के मामले में अगर ज़ारा और एचएनएम की बात की जाए, तो यह लिवाइस और गैप से काफी आगे निकल चुके हैं। ज़ारा की पेरेंट कंपनी inditex दुनिया में कपड़ों की सबसे बड़ी रिटेलर है।
एलेन मैकआर्थर फॉउंडेशन के मुताबिक,
- साल 2000 में 50 अरब नए गारमेंट्स बने और आज यही आंकड़ा दोगुना हो गया है।
- इसके अलावा, साल 2000 की अपेक्षा आज एक व्यक्ति औसतन 60% ज़्यादा कपड़े खरीद रहा है।
फॉउंडेशन के मुताबिक,
इस्तेमाल हुए कपड़ों का 1% से कम भी रिसाइकल नहीं किया जाता है और हर साल 35,618 अरब रुपए के मूल्य के कपड़े नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि इन्हें मुश्किल से ही दान या रिसाइकल किया जाता है और अंत में ये सभी कपड़े लैंडफिल साइट्स पर फेंके जाते हैं।
हसन मिनहाज के शो ‘द अगली ट्रुथ ऑफ फास्ट फैशन’ के मुताबिक,
1980 के दशक में एक सामान्य अमेरिकावासी एक साल में 12 कपड़े खरीदता था लेकिन अब एक अमेरिकावासी हर साल 68 नए कपड़े खरीदता है और इसके पीछे सीधेतौर पर फास्ट फैशन इंडस्ट्री ज़िम्मेदार है। इससे यह साफ हो रहा है कि फैशन इंडस्ट्री का मतलब अब फास्ट फैशन ही हो गया है।
फैशन इंडस्ट्री या फास्ट फैशन किस तरह से हवा, जल और भूमि को प्रदूषित कर रहा है?
फास्ट फैशन से बेशक शॉपिंग किफायती दाम में लोगों के पास कपड़े पहुंच रहे हैं लेकिन इसकी कीमत पर्यावरण भी चुका रहा है। विश्वबैंक की रिपोर्ट के मुताबिक,
- मानव द्वारा किए जा रहे कार्बन उत्सर्जन में फैशन इंडस्ट्री 10% के लिए ज़िम्मेदार है, जो इंटरनैशनल फ्लाइट्स और समुद्री नौवहन (मैरीटाइम शिपिंग) के संयुक्त से भी अधिक है।
- अगर फैशन इंडस्ट्री की यही रफ्तार रही तो इंडस्ट्री से होने वाले ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 2030 तक 50% तक की वृद्धि होगी।
- बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, फैशन इंडस्ट्री के कारण हर साल तकरीबन 1.2 अरब टन कार्बन उत्सर्जन हो रहा है।
- विश्वबैंक के अनुसार, अगर अभी की तरह डेमोग्राफिक और लाइफस्टाइल पैटर्न जारी रहेगा, तो वैश्विक स्तर पर कपड़ों की खपत 10 साल में 6.2 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़कर 10.2 मीट्रिक टन हो जाएगी।
- फैशन इंडस्ट्री से होने वाले जल प्रदूषण के मामले में विश्वबैंक का कहना है कि इसके चलते महासागरों-नदियों में हर साल 10 लाख टन प्लास्टिक माइक्रोफाइबर्स जा रहे हैं, जो 50 अरब प्लास्टिक बोतल के बराबर हैं।
इसका सबसे बड़ा खतरा यह है कि पानी से माइक्रोप्लास्टिक को अलग नहीं किया जा सकता है और यह हमारे शरीर के अंदर पेयजल और खाने में मिलकर पहुंच रहा है, जो बहुत ही खतरनाक है।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, एक घरेलू धुलाई (वॉशिंग मशीन से कपड़े धुलने पर) में तकरीबन 7 लाख प्लास्टिक फाइबर समुद्र या नदियों में पहुंचते हैं। माइक्रोप्लास्टिक किस कदर समुद्री जीवों को नुकसान पहुंचा रहा है, इसकी बानगी कई रिपोर्ट्स में देखी जा सकती है। बीते कुछ समय में कई ऐसी खबरें आईं, जिनमें बताया गया कि व्हेल मछली के पेट से कई किलोग्राम प्लास्टिक निकला।
- यूनाइटेड नेशन्स एन्वायरमेंट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर पानी को प्रदूषित करने के मामले में कपड़ों पर रंग चढ़ाने की प्रक्रिया दूसरे नंबर पर है।
- विश्वबैंक के अनुसार, दुनियाभर में वेस्ट वॉटर के 20% हिस्से का कारण फैब्रिक डायिंग (कपड़ों पर रंग चढ़ाना) प्रक्रिया है।
- वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल डायिंग प्रक्रिया में 5 लाख करोड़ लीटर पानी खर्च होता है जो ओलंपिक साइज़ के 20 लाख स्विमिंग पूल को भरने के लिए काफी है।
- यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक कमीशन फॉर यूरोप के मुताबिक, फैशन इंडस्ट्री दुनियाभर में पानी का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- यूनाइटेड नेशंस एन्वायरमेंट के मुताबिक, दुनियाभर में सालाना 20% वेस्टवॉटर के लिए फैशन इंडस्ट्री ज़िम्मेदार है।
- यूनाइटेड नेशंस एन्वायरमेंट के मुताबिक, हर एक सेकेंड में कपड़ों के कचरे का एक ट्रक या तो ज़मीन (लैंडफिल साइट्स) पर फेंक दिया जाता है या जला दिया जाता है।
2050 तक दुनियाभर के कार्बन बजट में 25% योगदान फैशन इंडस्ट्री का होगा
अगर कुछ बदलाव नहीं होता है तो 2050 तक दुनियाभर के कार्बन बजट में 25% योगदान फैशन इंडस्ट्री का होगा। एलेन मैकआर्थर फॉउंडेशन के मुताबिक,
- इस्तेमाल हुए कपड़ों का 1% से कम भी रिसाइकल नहीं किया जाता है और हर साल 35,618 अरब रुपए के मूल्य के कपड़े नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि इन्हें मुश्किल से ही दान या रिसाइकल किया जाता है और अंत में ये सभी कपड़े लैंडफिल साइट्स पर फेंके जाते हैं।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक,
- क्लॉथिंग प्रक्रिया में इस्तेमाल हुए कुल फाइबर में से 87% या तो लैंडफिल साइट में फेंक दिया जाता है या जला दिया जाता है।
वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट का इस मसले पर कहना है
- हर साल 85% टेक्सटाइल्स (21 अरब टन कपड़े) लैंडफिल साइट्स पर फेंके जा रहे हैं जो सिडनी हार्बर को सालाना भरने के लिए काफी है।
इसे कम करने के क्या उपाय हैं?
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप कपड़े खरीदना बंद कर दीजिए लेकिन इतना तो कर ही सकते हैं कि एक साल में जो 12 जोड़ी कपड़े खरीदे जा रहे हैं वो कम कर दीजिए। मैं यह नहीं कह रहा कि आप हॉट पैंट्स नहीं पहन सकते, आप पहनिए लेकिन लंबी अवधि के लिए।
एनबीसी न्यूज़ के मुताबिक,
अगर आप एक जोड़ी कपड़े 9 महीने ज़्यादा पहन लेते हैं, तो इससे कार्बन फुटप्रिंट 30% तक कम हो जाता है।
इस इंडस्ट्री को अधिक सस्टेनेबल बनाने के लिए, जनता, अभिनेताओं, मैनुफेक्चरर्स और सरकार सभी को इसमें अपना सहयोग देना होगा। अगर हर कोई इस साल एक नए कपड़े की बजाय एक रिसाइकल कपड़ा खरीदता है तो इससे तकरीबन 2.7 किलोग्राम कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन बच सकता है। अगर व्यक्तिगत तौर पर लोग इस पर काम करें तो हम सभी एक बड़ा बदलाव कर सकते हैं।
उपभोक्ता या ग्राहक इसके लिए लाइफ स्टाइल में ये बदलाव कर सकते हैं-
- अगर आपको कपड़ों का इस्तेमाल नहीं करना है, तो उसे डोनेट कर दीजिए। इस मामले में गूंज संस्था काफी अच्छा काम कर रही है।
- अगर कपड़ा (जींस या टी-शर्ट) कहीं से थोड़ा-बहुत फट जाता है तो उसे फेंकिए नहीं बल्कि उसमें रफू करा लीजिए या अगर कपड़ा ज़्यादा फट गया है तो उसका डोरमेट या बैग बना लीजिए। इससे गैर-इस्तेमाल वाले कपड़े रिसाइकल हो सकेंगे और लैंडफिल साइट्स में जाने से बचेंगे।
- उतना ही सामान खरीदिए जितने की ज़रूरत हो। कई ऐसे देश हैं जहां 40% खरीदे गए कपड़ों का कभी इस्तेमाल नहीं होता है।
- स्मार्ट लॉन्ड्री मैनेजर बनिए, एक बार में अधिक-से-अधिक कपड़े धुलें ताकि प्रदूषण कम हो सके।