प्रकृति हमेशा बिना स्वार्थ और प्रेम सहित अपनी सारी अमूल्य सुख-सम्पदा मानव जीवन के लिए न्यौछावर करती रही है। सवाल यह है कि क्या इंसानों ने भी उतनी ही शिद्दत से इसकी हिफाज़त की है? क्यों लोग भौतिक संसाधनों को पाने की भूख में इतने मशगूल हो गए हैं कि उन्हें इस बात का अंदाज़ा तक नहीं है कि आने वाला समय उनकी आगामी पीढ़ियों के लिए कितना चुनौतिपूर्ण होगा?
भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017 के अनुसार,
- हिमाचल प्रदेश के 55,673 वर्ग किलोमीटर भौगोलिक क्षेत्र में से 15,100 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र हैं,
- इसमें 3,110 वर्ग किलोमीटर अत्यधिक सघन वन क्षेत्र,
- 6,705 वर्ग किलोमीटर मध्यम सघन वन क्षेत्र व
- 5,285 वर्ग किलोमीटर खुला वन क्षेत्रफल शामिल है।
हालांकि भारतीय वन सर्वेक्षण 2017 की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार,
- हिमाचल प्रदेश ने 393 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की है, जिससे मालूम चलता है कि पिछले गत वर्षों से सरकारों ने पर्यावरण के प्रति अपनी संजीदगी दिखाई है।
- अतः इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रदेश के वर्तमान वन मंत्री के अनुसार हिमाचल प्रदेश आने वाले समय में अपने वन आवरण को 30 प्रतिशत तक बढ़ायेगा।
अब सवाल यह उठता है कि क्या पर्यावरण संरक्षण की ज़िम्मेदारी केवल सरकार की ही है? जो हम अक्सर चर्चा करते हैं कि एक नागरिक होने के नाते इसमें हम भी अपना योगदान दे सकते हैं, तो क्या असल में व्यवहारिक तौर पर हम इसके लिए समय दे पा रहे हैं?
सरकार के साथ ही वे समाधान जो आपको और हमें करने होंगे
मैं पिछले कई वर्षों से नियमित तौर पर पौधारोपण करता हूं, जिसमें मेरे कुछ मित्र प्रतिवर्ष इसके लिए अपना बहुमूल्य समय देते रहे हैं। इतने वर्षों से कुछ ऐसी चीज़ें हैं, जो मैंने अनुभव की हैं और यह समझने की कोशिश की है कि कुछ समाधान हैं, जो केवल सरकार कर सकती है और कुछ ऐसे हैं, जो हमें और आपको भी करने ही होंगे।
पहला सुझाव- पिछले कुछ सालों से सरकारें बड़ी इमारतें, हाइवे बनाती रही हैं, ताकि लोगों का जीवन सरल हो सके लेकिन विकास के नाम पर जिस तरह से प्रकृति का दोहन हो रहा है, वह भी किसी से छुपा नहीं है।
मुझे लगता है कि अब समय आ गया है जब सरकार (केंद्र स्तर पर हो या राज्य स्तर पर) को इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट देते समय यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि जितने भी पेड़-पौधों की क्षति इस दौरान होगी, उतने तो कम-से-कम उसी क्षेत्र के आस-पास या फिर अन्य जगह पर लगाए जाने अनिवार्य हों, तभी कॉन्ट्रैक्ट स्वीकृत होगा। अगर ऐसा सिस्टम बनेगा, तो जवाबदेही सबकी होगी और कहीं-ना-कहीं इस अमूल्य धरोहर का संरक्षण संभव हो पायेगा।
दूसरा सुझाव- मुझे लगता है कि पर्यावरण संरक्षण में वन विभाग का रोल बहुत ज़्यादा अहम है। अहम इसलिए नहीं है कि सारी ज़िम्मेदारी केवल उन्हीं की ही है, बल्कि इसलिए कि आम-जन को पर्यावरण और उसके संरक्षण के लिए प्रेरित करना, यह उनका सबसे बड़ा दायित्व है।
यह बहुत मुश्किल काम नहीं है, बल्कि अगर मंशा और योजना सही हो तो यह सब करना आसान है। अगर वन विभाग के अधिकारी समय-समय पर अन्य विभागों के अधिकारियों, सामाजिक क्षेत्र में कार्य कर रही संस्थाओं, स्टेंड्टस, महिला मंडलों, युवक मंडलों तथा ग्राम सभाओं में इसके लिए आह्वान करें तो निश्चित रूप से लोग इस अभियान में जुड़ेंगे, क्योंकि वर्तमान में प्लास्टिक भी एक बड़ी समस्या उभरकर सामने आई है। अतः सरकार द्वारा लोगों को बेकार प्लास्टिक पैकेट्स को घरेलू चीज़ों के रूप में तैयार करने से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, जिससे प्लास्टिक का निपटान भी होगा और उनकी आमदनी भी होगी।
तीसरा सुझाव- समाज में शिक्षकों का दर्जा हमेशा ही सर्वोच्च माना गया है, क्योंकि वे हमें एक सभ्य एवं गुणी नागरिक होने की प्रेरणा देते रहे हैं। बच्चे हमेशा अपने शिक्षकों का अनुसरण सबसे अधिक करते हैं, तो क्या एक ऐसा सिस्टम नहीं होना चाहिए, जहां बच्चों की प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत से ही उन्हें पौधारोपण और उनके संरक्षण के बारे में प्रैक्टिकल रूप से समझाया जाए?
क्या यह इतना मुश्किल है? जहां संभव है, विद्यालय के आस-पास बच्चों से पौधारोपण करवाया जाएं और जितना संभव हो, उन्हें ही इनके संरक्षण की ज़िम्मेदारी भी सौंपी जाए।
अगर इस तरह की शिक्षा को प्रैक्टिकल से जोड़कर बच्चों को समझाया जाए और उन्हें इसके प्रति ज़िम्मेदार बनाया जाए, तो आगे चलकर यह सब उनके स्वभाव में स्वतः ही शामिल हो जाएगा। इससे भविष्य में सरकार पर पड़ने वाला दबाव भी कम होगा, क्योंकि अगर नागरिक इस तरह की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर उठा लेंगे, तो समझ लीजिए कि सभी का भविष्य काफी सुरक्षित होगा।
अंत में मैं बस यही कहना चाहता हूं कि हम-आप सभी जिस रफ्तार भरी ज़िन्दगी में जी रहे हैं, उसमें हम खुद के लिए एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल सुख संसाधनों को जुटाने में ही व्यस्त हैं। बात कड़वी ज़रूर है लेकिन सच है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए बड़े घर, गाड़ियां एवं अन्य भौतिक संसाधन तो होंगे, बस अगर नहीं होगा तो स्वच्छ पानी, स्वच्छ हवा जिसमें वे चैन से अपना जीवन जी सकें।
अतः हम सभी को एक जागरूक नागरिक होने के नाते अब गंभीरतापूर्वक यह सोचना होगा कि बाकि भौतिक संसाधनों के अलावा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना भी हमारा ही दायित्व है।
नोट- यह लेख पहले Accountability Initiative की वेबसाइट्स पर प्रकाशित हो चुका है।