राहुल बजाज भारतीय उद्योगपतियों में एक मशहूर नाम हैं जिनके द्वारा सार्वजनिक तौर पर कही गई बातों का काफी महत्व है। कुछ महीने पहले उन्होंने भारत के आर्थिक हालातों पर खास करके ऑटोमोबाइल सेक्टर के संबंध में सरकार पर निशाना साधा था। बाद में राजीव बजाज ने उस पर सफाई देते हुए कहा था कि ऑटोमोबाइल सेक्टर अपनी ही गलतियों की वजह से संकट में है।
हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सामने उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। राहुल बजाज ने कहा,
जब यूपीए सरकार सत्ता में थी, तब हम किसी की भी आलोचना कर सकते थे। अब हम अगर आपकी खुले तौर पर आलोचना करें तो इतना विश्वास नहीं है कि आप इसे पसंद करेंगे। मौजूदा सरकार ने देश में डर और अनिश्चित्ताओं का माहौल बना दिया है जिसके चलते लोग खुलकर अपनी बात नहीं रख पा रहे हैं।
राहुल बजाज ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर का भी ज़िक्र करते हुए याद दिलाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था मैं प्रज्ञा ठाकुर को कभी मन से माफ नहीं कर पाऊंगा फिर भी उन्हें संसदीय समिति का सदस्य बनाया गया।

मॉब लिंचिंग की घटनाओं का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अब तक मॉब लिंचिंग के मामले में कोई दोषी नहीं पाया गया है। राहुल बजाज के सवालों का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “किसी को भी किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है और जैसा आप कह रहे हैं कि डर का एक ऐसा माहौल बना है, तो हमें इस माहौल को बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए।”
प्रज्ञा ठाकुर के मसले पर सफाई देते हुए अमित शाह ने कहा,
उन्होंने और राजनाथ सिंह जैसे भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने तुरंत प्रज्ञा ठाकुर के बयान की निंदा की थी। ना ही भाजपा और ना ही सरकार इस तरह के बयानों का समर्थन करती है। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं।
अमित शाह ने मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर कहा, “लिंचिंग पहले भी होती थी और आज भी होती है। शायद आज पहले से कम ही होता है मगर यह भी ठीक नहीं है कि किसी को दोषी सिद्ध नहीं किया गया है। लिंचिंग के वाले बहुत सारे मामले चले हैं और समाप्त भी हो गए हैं। सज़ा भी हुई है मगर मीडिया में छपते नहीं हैं।”
मामला बजाज और शाह के सवाल-जवाब तक ही सीमित नहीं है
अपने सवालों के माध्यम से राहुल बजाज ने जिन बातों का ज़िक्र किया है, वह सामाजिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है। हमें यह समझना होगा कि कुछ दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री और जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने “द हिंदू” अखबार में लेख लिखते हुए कहा था,
किसी भी मुल्क की अर्थव्यवस्था उसके समाज की कार्यप्रणाली को भी दर्शाती है। कोई भी अर्थव्यवस्था लोगों और संस्थाओं की भागीदारी से चलती है। पारस्परिक भरोसा और आत्मविश्वास आर्थिक वृद्धि के लिए मूल तत्व हैं लेकिन आज के समय में सामाजिक विश्वास की बनावट और भरोसे को संदिग्ध बना दिया गया है।
उद्योगपति राहुल बजाज की बात और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा लिखा गया पत्र दोनों ही चीज़ों में सामाजिक स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठाया गया है। इन बातों को देखते हुए हमें समझना होगा कि अर्थव्यवस्था समाज से अलग नहीं हो सकती है। आर्थिक वृद्धि के लिए निजी क्षेत्रों का योगदान भी महत्वपूर्ण है।
सरकार की आलोचना करने में पूंजीपतियों ने देर क्यों लगाई?
यह सवाल ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि सरकार की आलोचना करने में आपने इतनी देर क्यों लगाई? जब नोटबंदी का निर्णय लिया गया उसी वक्त बहुत से कारोबारियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
आधे-अधूरे जीएसटी का विरोध बड़े-बड़े पूंजीपतियों द्वारा क्यों नहीं किया गया? जब अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे गिर रही थी, तब कोई आवाज़ सरकार की आलोचना नहीं कर ही थी। अब जीडीपी 4.5 फीसदी पहुंच गई है, तब राहुल बजाज ने कुछ सवाल खड़े किए हैं। हालांकि इन सवालों के जवाब भी राहुल बजाज दे गए। उन्होंने कहा हमारे उद्योगपति दोस्त कुछ नहीं कहेंगे फिर भी मैं कह रहा हूं।
सरकार की हालत एक पेशेंट जैसी हो गई है, जो अपनी बीमारी को स्वीकार नहीं करना चाहती है फिर इलाज कैसे हो पाएगा? सरकार भी अर्थव्यवस्था में मंदी होने की चीज़ को नकार रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो चीजे़ं नहीं बदली जा सकती हैं।