देशभर में नागरिकता कानून पर छिड़ी बहस और विरोध के बीच केंद्र सरकार विपक्ष की हर एक आशंका को अफवाह बताने में लगी है। केंद्र की इस प्रक्रिया में समाचार पत्रिकाओं और चैनल के पत्रकारों का खूब सहयोग है।
बहरहाल, सरकार के सभी दावों के बावजूद देशभर में विरोध थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। एक प्रदर्शनकारी के नज़रिये से जानिए क्यों यह विरोध अभी भी उतना ही प्रासंगिक हैं।
विरोध क्यों किया जाए?
सरकार द्वारा मनमाने तरीके से बनाए गए नागरिकता कानून के प्रावधान, भारत की पंथनिरपेक्षता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं। ज्ञात हो कि इस कानून में गैर मुस्लिम धर्म के सभी लोगों को बिना शर्त नागरिकता देने का प्रावधान है। ग्रह मंत्री का कहना है कि इस सूची में मुस्लिम शब्द इसलिए नहीं रखा गया है, क्योंकि इस्लामिक देशों में मुसलमानों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव या शोषण संभव नहीं है।
मगर उन्हीं देशों में शियाओं और अहमदियों के ऊपर हो रहे शोषण के सवाल पर ग्रहमंत्री उसे पाकिस्तान का निजी मसला बता कर टाल देते हैं। उनका कहना है कि यह आंदोलन किसी भी रूप में प्रताड़ना झेल रहे गैर भारतीय लोगो के विरोध में नहीं है।
जबकि मेरी मांग तो इसके विपरीत है कि भारत के द्वार हर एक प्रताड़ित आदमी के लिए सामान्य रूप के खुले हों, क्योंकि मैं हमेशा से सरहदों द्वारा इंसान से इंसान के बंटवारे का विरोधी रहा हूं। कुछ लोगों का मानना है कि मुसलमान भी भारत में प्रमुख रूप से बनाए गए कानून के तहत नागरिकता हासिल कर सकते हैं। परन्तु उसी कानून के तहत हिन्दुओं के साथ-साथ सभी वर्ग समान रूप से नागरिकता पाने योग्य भी हैं।
फिर किसी चुनिंदा वर्ग के लिए अब सख्ती क्यों बरती जाए? और तो और उसके विपरीत किसी चुनिंदा वर्ग के प्रति नरमी से क्यों पेश आया जाए? जब पुराने कानून के तहत भारत में सभी को समान रूप से नागरिकता दी जा सकती है फिर आकस्मात इस नए कानून की क्या आवश्यकता आन पड़ी?
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि जिन 3 देशों को धर्मतंत्र देश मान कर चुना गया है, उन्हीं देशों का नागरिकता कानून धर्मतंत्र होने के बावजूद सभी वर्गों के लिए एक समान है फिर भारत अपने कानून में धर्मों को चिन्हित कर अपने समंविधान की गरिमा को क्यों गिराना चाहता है? अगर आप ऐसा नहीं होने देना चाहते तो विरोध लाज़मी है।
क्या सरकार किसी छिपे हुए उद्देश्य के तहत कर रही है सब कुछ?
सदन में यह मांग रखी गई कि सभी 6 धर्मों के नाम हटाकर “Any Persecuted Minority” अथवा “प्रत्येक प्रताड़ित अल्पसंख्यक वर्ग” शब्द को जोड़ दिया जाए। परन्तु उसे भाजपा ने बहुमत से ठुकरा दिया।
गृह मंत्री के अनुसार जब मुसलमान इन देशों में अल्पसंख्यक ही नहीं हैं फिर इस शब्द को संशोधित करना इतना मुश्किल क्यों था? क्यों जबरन 6 धर्मों के नाम लिखे गए जबकि प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का उद्देश्य बिना धर्मों के नाम लिखे भी पूरा किया जा सकता था।
ग्रहमंत्री और प्रधानमंत्री ने सभाओं में चीख चीखकर कहा कि पूर्वी राज्यों को घबराने की ज़रूरत नहीं है। जबकि सदन में असम को इस विधेयक से दूर रखने का प्रस्ताव भी बहुमत से ठुकरा दिया गया।
क्यों बेमानी है प्रधानमंत्री पर भरोसा
बहुत अच्छे से याद है कि ऐसे ही वादे प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के समय भी देश के साथ किए थे। 50 दिन तक भरोसा करने को कहा, गलत साबित होने पर हर एक सज़ा स्वीकारने का वादा भी किया मगर फिर चोरी छुपे कम्बल में मुंह छिपाकर घुस गए। उस वक्त भी नामचीन अर्धशास्त्रियों ने कहा था कि इससे भारत की आर्थिक स्थिति में गिरावट आ सकती है मगर सभी दावे खारिज़ कर दिए गए और देशभक्ति के नाम पर इसे देश पर रातों रात थोप दिया गया।
इसी का परिणाम है कि आज भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर टूट चुकी है। काला धन वापस लाने और हर साल दो करोड़ रोज़गार देने के वादे मैंने अपनी आखों के सामने चकना चूर होते देखे हैं।
क्या भारतीयों को घबराने की ज़रूरत नहीं है?
प्रधानमंत्री का यह तर्क भी नोटेबंदी के समय दिए गए उसी तर्क के समान है, “ईमानदार आदमी को घबराने की ज़रूरत नहीं है।” मगर असिलियत इसके एकदम विपरीत है। सच्चाई यह है कि केवल ताकतवर और पैसे वालों को घबराने की ज़रूरत नहीं है, ना नोटेबंदी के वक्त थी और ना ही नागरिकता बांटने के वक्त होनी चाहिए।
यदि इसका शिकार बनेंगे तो बस लाचार गरीब और मज़दूर वर्ग। नोटेबंदी के समय 100 से ज़्यादा लोगों की मृत्यु हुई, CAA के लागू होने के बाद जब NRC पर काम शुरू किया जाएगा, तब लोग मारे नहीं जाएंगे इसकी क्या गारंटी है? जैसे असम में 17 लोगों ने इस डर के साये में देह त्याग दिए कि कागज़ ना होने के कारण उनकी नागरिकता छिन ली जाएगी। प्रधानमंत्री के भरोसे उस समय भी दिखावटी साबित हुए और आज भी दिखावटी साबित होंगे।
क्या खतरनाक होगी देशभर में NRC की प्रक्रिया?
NRC का उद्देश्य उन सभी लोगों को समान रूप से चिन्हित करना है, जिनके पास अपने भारतीय होने का प्रमाण नहीं है मगर इसका मतलब यह कतई नहीं कि वे अवैध नागरिक हैं।
इसका मतलब केवल यही है कि नागरिकता साबित करने के उनके पास पूरे दस्तावेज़ नहीं हैं। यदि हैं भी तो आपस में मेल नहीं खाते अर्थात कुछ संदेह पैदा करते हैं। अब यदि आप इस संदेह के चलते सूची से बाहर हो जाते हैं, तो सारा दारोमदार आप पर डाल दिया जाएगा खुद को भारतीय नागरिक साबित करने का।
जबकि यह सरकार का काम होना चाहिए था क्योंकि वह मुझे अवैध मानती है, मैं नहीं! इसके बाद एक लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुज़रकर वकीलों का खर्चा उठाकर खुद को भारतीय घोषित करना पड़ेगा। यह पूरी प्रक्रिया गरीब और मज़दूर वर्ग के ऊपर बिजली की तरह गिरेगी।
क्या है नागरिकता कानून का पेंच?
गौर करने की बात यह है कि NRC के तहत जितने भी लोगों को अवैध घोषित किया जाएगा, उसमें से सरकार मुसलमानों को छोड़कर चुने गए बाकी 6 धर्म के लोगों के लिए CAA के तहत एक दरवाज़ा खोल दोगी, क्योंकि इस कानून में बिना किसी शर्त इन 6 मज़हब के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है।
इसलिए किसी को यह साबित करने की ज़रूरत नहीं है कि वे प्रताड़ित किए गए हैं या नहीं। अगर आप मुसलमान नहीं हैं, तो यह मान लिया जाएगा कि आपको प्रताड़ित किया जाता होगा या किया जा सकता है। इस तरह हर भारतीय मुसलमान जो अपने कागज़ों के आभाव में NRC में आने से वंचित रह गया है, उसे अवैध घोषित कर दिया जाएगा। जबकि अन्य धर्म के लिए नागरिकता पाने का एक पिछला दरवाज़ा नागरिकता कानून के तहत खोल दिया जाएगा।
क्या है मांग और कैसे पूरी की जाए?
कानून में हो बदलाव
- भारत में नागरिकता का आधार धर्म को ना बनाया जाए।
- सभी 6 धर्मों के नाम हटाकर “Any Persecuted Minority” अथवा “प्रत्येक प्रताड़ित अल्पसंख्यक वर्ग” शब्द को जोड़ा जाए।
- नॉर्थ ईस्ट को इससे बाहर रखा जाए।
सरकार को सुझाव
- नागरिकता कानून में उचित संशोधनों के बावजूद इस वक्त देशभर में NRC एक गैरज़रूरी और आर्थिक रूप से भारत को गंभीर चोट पहुंचाने वाली प्रक्रिया है। इसी के साथ ये गरीब व मज़दूर वर्ग के ऊपर जबरन ज़ुल्म करने जैसा है। इसलिए देशभर में NRC ना लागू करने का लिखित आश्वासन दिया जाए।
- पुरानी प्रक्रिया के चलते जितने भी लोग उत्तर पूर्वी राज्यों में अवैध पाए गए हैं, उन्हें डिटेंशन सेंटर में ना रखा जाए। यदि बांगलादेश और पाकिस्तान उन्हें लेने से इनकार करते हैं, तो उन्हें भी भारत में मानवीय तौर पर शरण दी जाए। साथ रहने की अविवादित जगह और रोज़गार की सुविधा भी दी जाए।